नौ देवियों के लिए नौ दिन तक अलग-अलग मंत्र

जयपुर। शारदीय नवरात्रि में नौ दिन तक अलग-अलग देवी को पूजा जाता है। दौ दिन तक अलग -अलग माताओं को प्रसन्न करने के लिए अलग-अलग मंत्रो का जाप बताया गया है ।ऐसा करने से घर में खुशहाली और समृद्धि आती है। पहले दिन घट स्थापना से मां की आराधना शुरू होती है और 9वें दिन हवन के बाद पूर्ण होती है।

पहला दिन

इस दिन कन्या एवं धनु लग्न में अथवा अभिजिन्मुहूर्त में घटस्थापना की जाएगी। पहले दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की उपासना की जाती है। शैलपुत्री के पूजन के साथ उनके इस  ॐ शैलपुत्र्यै नम: मंत्र का जाप करना चाहिए । ऐसा करने से माता रानी प्रसन्न होती है ।

दुर्गा की उपासना में दुर्गा सप्तशती का पाठ अत्यन्त लोकप्रिय है। यह नवरात्र में ही संपन्न हो जाता है। इसमें कुल 13 अध्याय होते हैं। नवरात्र में श्रीमद देवीभागवत पुराण के पाठ का भी प्रचलन है। यह पुराण सभी पुराणों में अतिश्रेष्ठ होता है।

दूसरा दिन

नवरात्र के दूसरे दिन मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की उपासना की जाती है।ब्रह्मचारिणी की पूजा के साथ ही उनके  ॐ ब्रह्मचारिण्यै नम: मंत्र का जाप करना चाहिए। प्रथम दिन की तरह दुर्गासप्तशती का पाठ करें। साथ ही श्रीमद् देवीभागवत का पाठ और मां भगवती का ध्यान करने के बाद देवीभागवत के तृतीय स्कन्ध से चतुर्थ स्कन्ध के अष्टम अध्याय तक पाठ करना चाहिए। अन्त में श्रीमद् देवीभागवत पुराण की आरती करनी चाहिए।

तीसरा दिन

तीसरे दिन मां दुर्गा के चन्द्रघंटा स्वरूप की उपासना की जाती है।जिसके बाद माता रानी का ध्यान करते हुए । ॐ चंद्रघण्टायै नम: मंत्र का जाप करना चाहिए।  मां चंद्राघण्टा को दूध से बने व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। इस दिन देवीभागवत के चतुर्थ स्कन्ध के नवम अध्याय से आरंभ करते हुए पंचम स्कन्ध के 18वें अध्याय तक पाठ करना चाहिए।

देवीभागवत के छठें स्कन्ध के 19वें अध्याय से आरंभ करते हुए सातवें स्कन्ध के 18वें अध्याय तक पाठ करना चाहिए। अन्त में मां भगवती की आरती करें।

चौथा दिन

नवरात्र के चतुर्थ दिन मां दुर्गा के कुष्मांडा स्वरूप की उपासना की जाती है। माता रानी का पूजन करने के बाद ॐ कूष्माण्डायै नम: मंत्रो का जाप करना चाहिए। मां भगवती का ध्यान करने के बाद देवीभागवत के पंचम स्कन्ध के 19वें अध्याय से आरंभ करते हुए छठे स्कन्ध के 18वें अध्याय तक पाठ करना चाहिए। 

पांचवा दिन

पांचवें दिन मां स्कन्दमाता स्वरूप की उपासना की जाती है। मां का ध्यान करते हुए ॐ स्कन्दमात्रै नम: मंत्र का जाप करना चाहिए ।

छटवां दिन

नवरात्र के छठे दिन मां कात्यायनी स्वरूप की पूजा करने के बाद माता रानी का ध्यान करते हुए । ॐ कात्यायन्यै नम: मंत्र का जाप करना चाहिए । मां भगवती का ध्यान करने के उपरान्त देवीभागवत के सातवें स्कन्ध के 19वें अध्याय से आरंभ करते हुए आठवें स्कन्ध के 17वें अध्याय तक पाठ करना चाहिए। मां कात्यायनी के विशेष पूजन के लिए कुमकुम और हल्दी का अर्चन श्रेष्ठ बताया गया है। मां को दूध से बनी मिठाई जैसे पेडे, खीर आदि का भोग लगाया जाता है।

सातवां दिन

नवरात्र के सातवें दिन मां दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की पूजा करने के बाद ॐ कालरात्र्यै नम: मंत्र का जाप करना चाहिए और मां भगवती का ध्यान करने के उपरान्त देवीभागवत के आठवें स्कन्ध के 18वें अध्याय से आरंभ करते हुए नवें स्कन्ध के 28वें अध्याय तक पाठ करना चाहिए। देवी कालरात्रि को व्यापक रूप से माता देवी काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, चामुंडा, चंडी आदि रूपों में से माना जाता है।

आठवां दिन

नवरात्र के आठवें दिन मां दुर्गा के महागौरी स्वरूप की उपासना के बाद  ॐ महागौर्ये नम: मंत्र का जाप करते हुए  मां भगवती का ध्यान करने के उपरान्त देवीभागवत के नवें स्कन्ध के 29वें अध्याय से आरंभ करते हुए दसवें स्कन्ध की समाप्ति तक पाठ करना चाहिए।

नवां दिन

नवरात्र के नवम दिन मां दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप की उपासना  के बाद ॐ सिद्धिदात्र्यै नम: मंत्र का जाप करने के बाद देवी भागवत के 11वें स्कन्ध के प्रथम अध्याय से आरंभ करते हुए 12वें स्कन्ध की समाप्ति तक पाठ करना चाहिए। अंतिम दिन पाठ समाप्ति के पश्चात् हवन करना चाहिए।

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