पांच दिवसीय दशहरा नाट्य उत्सव: रावण ने राम को किया प्रणाम, फिर त्यागे अपने प्राण

जयपुर। जवाहर कला केन्द्र की ओर से आयोजित पांच दिवसीय दशहरा नाट्य उत्सव के अंतिम दिन मंगलवार को 17 प्रसंगों को मंच पर साकार किया गया। राम दरबार की झांकी के बाद हर्षोल्लास के साथ पांच दिवसीय उत्सव का समापन हुआ। दर्शकों की भीड़ व उत्साह ने जवाहर कला केंद्र के प्रयास और युवा कलाकारों की मेहनत पर सफलता की मुहर लगायी। वरिष्ठ नाट्य निर्देशक अशोक राही की परिकल्पना और निर्देशन में तैयार केन्द्र की यह स्वगृही नाट्य प्रस्तुति दर्शकों को सुनहरी यादें और नीतिगत सीख दे गयी।

कुंभकरण की मौत से मचा कोहराम

अंतिम दिन का मंचन कई मायनों में खास रहा। ‘रोष-होश-जोश राम, भावना का कोष राम, प्रेम परितोष राम, राम गुणधाम हैं।’ श्री राम के गुणों के बखान के साथ प्रस्तुति की शुरुआत हुई। कुंभकरण को जगाने के दौरान जहां कलाकारों ने दर्शकों को गुदगुदाया वहीं कुंभकरण व रावण की वार्ता ने नीतिगत सिद्धांतों पर प्रकाश डाला। विभीषण के संवादों के जरिए धर्म की उचित व्याख्या का प्रयास किया गया, वहीं कुंभकरण ने भाइयों के बीच संबंधों का वर्णन किया। भीषण युद्ध के बाद कुंभकरण की मौत लंका में कोहराम मचा देती है। लक्ष्मण और इंद्रजीत के बीच युद्ध के दौरान इंद्रजीत के दिव्य रथ को बड़ी बखूबी दिखाया गया। अंततः तलवारों के टकराव से निकली चिंगारियों ने इंद्रजीत को लील लिया।

राम नाम के साथ रावण चले हरि धाम…

राम और रावण का युद्ध देखकर दर्शक रोमांचित हो उठे। विजयादशमी के दिन रावण के वध के साथ अधर्म पर धर्म की जीत का संदेश दिया गया। ‘शुभ कार्य शीघ्र करना अच्छा, दुष्कर्म टले जितना टालो।’ रावण ने इसी संदेश के साथ राम नाम लेकर अपने प्राण त्यागे। राम सिया के मिलन पर सभी के आंसुु छलक गए। राम के राज्याभिषेक के साथ लोक नृत्य व शास्त्रीय नृत्य का अनूठा संगम भी देखने को मिला। पारंपरिक घूमर नृत्य, फिर भरतनाट्यम और कथक से महफिल सजी।
गौरतलब है कि जवाहर कला केन्द्र की ओर से 20 से 24 अक्टूबर तक दशहरा नाट्य उत्सव का आयोजन किया गया।

इस स्वगृही नाट्य प्रस्तुति को लगभग 150 लोगों की सक्रीय भागीदारी ने सफल बनाया। परिकल्पना व निर्देशन अशोक राही का रहा, महानायक राम की जीवन गाथा से जुड़े 90 प्रसंगों का मंचन किया गया। वहीं मंच पर 14 शहरों के 65 अभिनेता-अभिनेत्रियों ने सभी पात्रों को साकार किया। इनमें से 25 नए कलाकार रहे। सभी कलाकारों का चयन ऑडिशन के बाद किया गया था। वहीं 40 से अधिक नृत्यांगनाओं ने कथक, भरतनाट्यम व लोकनृत्य की प्रस्तुति से उत्सव की शोभा बढ़ाई। मुख्य किरदारों में नितिन सैनी, जय सोनी, अंजलि सक्सेना, आधार कोठारी, राहुल कुमार बैरवा, राहुल शर्मा, प्रेरण पूनिया, अभिषेक कुमार, प्रियांशु पारीक, आयुश शर्मा और चारु भाटिया ने क्रमश: राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान, परशुराम, दशरथ, कैकेई, भरत, मंथरा, रावण और शूर्पणखा की भूमिका निभाई। प्रस्तुति का संगीत पक्ष बेहद प्रभावी रहा। प्रियांशु पारीक, अमित झा, हिमांशु, अभिषेक, अक्षत, रिमझिम, झनक और मनु शर्मा ने चौपाइयां, दोहे और घनाक्षरी का गायन किया। वहीं मयंक शर्मा ने हारमोनियम, महेन्द्र डांगी ने तबला, हरिहर शरण भट्ट ने सितार, अमीरुद्दीन ने सारंगी और मुकेश खांडे ने ऑक्टोपैड पर संगत की। मिनाक्षी लखोटिया, स्वाति गर्ग ने नृत्य संयोजन की भूमिका निभाई। राजीव मिश्रा और विमल मीणा ने प्रकाश संयोजन संभाला।

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