एक ही दिन इंदिरा व पितृ एकादशी

जयपुर। अश्विन मास कि कृष्ण पक्ष की एकादशी पर इंदिरा एकादशी व पितृ एकादशी 10 अक्टूबर को एक साथ मनाई जाएगी। पितृ पक्ष के चलते ये बहुत खास एकादशी मानी जा रही है। पितृ पक्ष पर भगवान विष्णु को शालग्राम के रूप में पूजने और व्रत रखने का खास महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से पितृ प्रसन्न होते है और मनोकामना पूर्ण होने का आशिर्वाद देते है।

पंडित विपिन शर्मा ने कहना है कि इस एकादशी पीपल,अशोक ,तुलसी का पेड़ लगाने से भगवान विष्णु के साथ पितर अधिक प्रसन्न् होते है। बताया जाता है कि इस एकादशी का व्रत करने से पूर्वज से जाने -अनजाने में किसी वजह से किए गए पाप से यमराज के पास दंड भोग रहे पितरों को मुक्ति मिलती है।

इस दिन ब्राह्मण भोजन करवाने और तर्पण,पिंडदान करने से मृतात्माओं को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए इंदिरा एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा ,व्रत और दान का संकल्प लेना चाहिए साथ ही पूजा ,दान का पुण्य पितरों को मिले इसके लिए प्रार्थना करनी चाहिए।

इस दिन पूर्वजों के लिए  किए गए दान से पितरों को मोक्ष मिलता है और व्रत करने से उन्हे बैकण्ठ की प्राप्ति होती है।

पद्म पुराण के अनुसार इस एकादशी का व्रत करने वाले भक्त के सात पीढियों तक के पितृ तर जाते है और इस एकादशी का व्रत करने वाला भी स्वय मोक्ष को प्राप्त हो जाता है।

पुराणों में बताया गया है कि जितना पुण्य कन्यादान, हजारों वर्षों की तपस्या और उससे अधिक पुण्य एकमात्र इंदिरा एकादशी व्रत करने से मिल जाता है।

इंदिरा एकादशी व्रत की कथा

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इंदिरा एकादशी के बारे में बताते हुए कहा कि ये व्रत आश्विन महीने के कृष्णपक्ष की एकादशी को होता है। इससे सभी पाप खत्म हो जाते हैं और नरक में गए हुए पितरों का भी उद्धार हो जाता है। इस व्रत की कथा सुनने से ही अनंत फल मिलता है। सतयुग में महिष्मती नगर के राजा इंद्रसेन ने नारदजी के कहने पर ये व्रत किया था।

नारद जी राजा की सभा में गए और उन्होंने राजा को बताया कि आपके पिता जब जीवित थे तब उनसे एकादशी का व्रत बिगड़ गया था और अब वो यमलोक में परेशान हैं। उन्होंने कहा कि मेरा बेटा इंदिरा एकादशी व्रत कर के उसका पुण्य मुझे देगा तो मैं स्वर्ग चला जाउंगा।

ये सुनकर राजा इंद्रसेन ने नारद जी से व्रत की विधि पूछी। तब नारद जी ने राजा को पूरा विधि-विधान बताया। तब राजा ने पूरी विधि से व्रत किया और भगवान शालग्राम की पूजा की। इसके बाद ब्राह्मण भोजन करवाकर जरुरतमंद लोगों को दान दिया।

इस तरह राजा ने इंदिरा एकादशी पर पूरे विधान से व्रत किया तो आकाश से फूलों की बारिश हुई और राजा के पिता यमलोक से रथ पर चढ़कर स्वर्ग चले गए। इस व्रत के प्रभाव से राजा इन्द्रसेन भी सुख भोगकर स्वर्ग लोक गया।

ऐसे करें एकादशी का व्रत व पूजन

1. इस एकादशी व्रत की पूजा विधि बाकी एकादशी व्रतों की तरह ही है, लेकिन सिर्फ अंतर ये है कि इस व्रत में भगवान शालग्राम की पूजा की जाती है।
2. इस दिन स्नान आदि से पवित्र होकर सुबह भगवान विष्णु के सामने व्रत और पूजा का संकल्प लेना चाहिए। अगर पितरों को इस व्रत का पुण्य देना चाहते हैं तो संकल्प में भी बोलें।
3. इसके बाद भगवान शालग्राम की पूजा करें। भगवान शालग्राम को पंचामृत से स्नान करवाएं। पूजा में अबीर, गुलाल, अक्षत, यज्ञोपवीत, फूल होने चाहिए। इसके साथ ही तुलसी पत्र जरूर चढ़ाएं। इसके बाद तुलसी पत्र के साथ भोग लगाएं।
4. एकादशी की कथा पढ़कर आरती करनी चाहिए। इसके बाद पंचामृत वितरण कर, ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिए। इस दिन पूजा तथा प्रसाद में तुलसी की पत्तियों का (तुलसी दल) का प्रयोग अनिवार्य रूप से किया जाता है।

 इन वस्तुओं का करें दान
अश्विन महीने की एकादशी पर घी, दूध, दही और अन्न दान करने का विधान ग्रंथों में बताया गया है। इस तिथि पर जरुरतमंद लोगों को खाना खिलाया जाता है। ऐसा करने से पितर संतुष्ट होते हैं। इन चीजों का दान करने से सुख और समृद्धि बढ़ती है। धन लाभ होता है और सेहत अच्छी रहती है।

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