जयपुर। क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) व्यक्तियों और समाज पर इसके प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल नवंबर के तीसरे बुधवार को विश्व सीओपीडी दिवस मनाया जाता है। भारतीय संदर्भ में, यह दिन महत्वपूर्ण स्थान रखता है क्योंकि देश में सीओपीडी मामलों की संख्या बहुत है। इस बीमारी के प्रबंधन में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
सीओपीडी फेफड़ों की एक प्रगतिशील बीमारी है जो श्वसन मार्ग के सीकुडने के कारण सांस लेना मुश्किल कर देती है। यह मुख्य रूप से धूम्रपान, घर के अंदर और बाहर वायु प्रदूषण के संपर्क में आने, बार-बार होने वाले फेफड़ों के संक्रमण, अनियंत्रित अस्थमा और आनुवंशिक कारकों के कारण होता है। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी के अनुसार, भारत में सीओपीडी की प्रसार दर दुनिया में सबसे अधिक है, जिससे लगभग 55 मिलियन लोग प्रभावित हैं।
कोरोना महामारी ने फेफड़ों के रोगों के बारे में जागरूकता बढा दी है। और साबित कर दिया है कि फेफड़ों की उचित देखभाल बहुत महत्वपूर्ण है। सीओपीडी एक ऐसी बिमारी है जो की फेफडों को प्रभावित करती है।
इस दिन को मनाने का उद्देश्य स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा देकर, धूम्रपान बंद करने को प्रोत्साहित करना और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं को सभी की पहुंच में लाकर सीओपीडी के बोझ को कम करना है।
भारत में, सीओपीडी के मुख्य जोखिम कारकों में तम्बाकू धूम्रपान, बायोमास ईंधन के धुएं के संपर्क में आना, बाहरी वायु प्रदूषण, बार-बार फेफड़ों में संक्रमण और अनियंत्रित अस्थमा शामिल हैं। भारत में धूम्रपान का प्रचलन चिंताजनक रूप से अधिक है, लगभग 10 प्रतिशत आबादी धूम्रपान करने वालों की है। धूम्रपान की दर को कम करने और सीओपीडी मामलों को रोकने के लिए सख्त तंबाकू नियंत्रण नीतियों को लागू करने के प्रयास केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा किए जा रहे हैं।
इसके अलावा, खाना पकाने और हीटिंग के लिए बायोमास ईंधन के उपयोग से होने वाला इन्डोर वायु प्रदूषण भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में सीओपीडी में एक प्रमुख कारण है। हानिकारक धुएं के जोखिम को कम करने के लिए एलपीजी जैसे स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन और प्रौद्योगिकियों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए पहल की जा रही है।
बाहरी वायु प्रदूषण भारत में एक और महत्वपूर्ण चुनौती है, खासकर घनी आबादी वाले शहरों में। वाहनों से होने वाला उत्सर्जन, औद्योगिक प्रदूषण और निर्माण गतिविधियाँ खराब वायु गुणवत्ता में योगदान करती हैं, जिससे सीओपीडी जैसी श्वसन संबंधी स्थितियाँ बिगड़ जाती हैं। सरकारी निकाय सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रभाव को कम करने के लिए प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित करने और टिकाऊ परिवहन को बढ़ावा देने के उपाय लागू कर रहे हैं।
सीओपीडी के लक्षण, पुरानी खांसी, सांस लेने में तकलीफ, घरघराहट और सीने में जकड़न। शीघ्र निदान और समय पर उपचार से सीओपीडी से पीड़ित व्यक्तियों के जीवन की गुणवत्ता में काफी सुधार हो सकता है।
जीवन रेखा सुपरस्पेशलिटी अस्पताल जयपुर में पल्मोनरी, क्रिटिकल केयर और स्लीप मेडिसिन विभाग के वरिष्ठ सलाहकार और प्रमुख डॉ. शुभ्रांशु ने बताया की सीओपीडी को प्रबंधित करने के लिए जीवनशैली में बदलाव करें जो सीओपीडी की बढने से रोकता है।
- धूम्रपान छोड़े
- नियमित रूप से व्यायाम करें
- स्वस्थ आहार लेवे
- ट्रिगर से बचें पर्यावरणीय ट्रिगर की पहचान करें और उनसे बचें जो सीओपीडी के लक्षणों को खराब करते हैं, जैसे वायु प्रदूषण, मजबूत रासायनिक गंध,
श्वसन संक्रमण का समय पर और पूर्ण उपचार।
टीकाकरण – विशेष रूप से फ्लू और न्यूमोकोकल
डॉक्टर की सलाह के अनुसार इनहेलेशन थेरेपी सहित नियमित उपचार
उन्होंने आगे कहा कि बीमारी और इसके जोखिम कारकों के बारे में जागरूकता बढ़ाकर, भारत सीओपीडी के बोझ को कम करने और अपने नागरिकों के श्वसन स्वास्थ्य में सुधार करने की दिशा में काम कर सकता है।