तेजी से बढ़ रही स्ट्रक्चरल हार्ट विशेषज्ञों की जरूरत

जयपुर: हार्ट डिजीज में सिर्फ नसों में ब्लॉकेज ही नहीं बल्कि वॉल्व में सिकुड़न, लीकेज की समस्याओं में भी लगातार इजाफा हो रहा है। हार्ट की वॉल्वुलर डिजीज के इलाज के लिए स्ट्रक्चरल हार्ट विशेषज्ञों की जरूरत तेजी से बढ़ रही है। यह बात देश के प्रसिद्ध इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट प्रवीण चंद्रा ने रूक्मणी बिरला हॉस्पिटल की ओर से आयोजित नॉलेज शेयरिंग प्रोग्राम में कही। कार्यक्रम में हॉस्पिटल की कार्डियक साइंस टीम के सीनियर इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. संजीब रॉय, डॉ. अमित गुप्ता और सीनियर कार्डियक सर्जन डॉ. आलोक माथुर भी मौजूद थे। 

एओर्टिक वॉल्व की बीमारी में कारगर टावर तकनीक –

डॉ. प्रवीण चंद्रा ने कहा कि दुनिया में हार्ट के एओर्टिक वॉल्व के सिकुड़ने की बीमारी एओर्टिक स्टेनोसिस की समस्या तेजी से फैल रही है जिसे बिना सर्जरी के ट्रांस कैथेटर एओर्टिक वॉल्व रिप्लेसमेंट (टावर) तकनीक से ठीक किया जा सकता है। 65 से अधिक उम्र के एओर्टिक स्टेनोसिस के मरीजों में टावी तकनीक सबसे उपयुक्त उपचार है और कुछ विशेष मामलों में यह तकनीक कम उम्र के मरीजों में भी काफी कारगर साबित हुई है। इस थेरेपी में मरीज 2-3 दिनों में ही सामान्य जीवन शैली में आ जाता है।

एओर्टिक के अलावा अब माइट्रल वॉल्व भी बिना सर्जरी के होगा इंप्लांट —   

डॉ. अमित गुप्ता ने बताया कि एओर्टिक वॉल्व के अलावा माइट्रल वॉल्व को भी ट्रांस कैथेटर के जरिए इंप्लांट किया जा सकता है। कई ऐसे मरीज जिन्हें ओपन हार्ट सर्जरी की सलाह दी जाती है लेकिन उनकी सर्जरी करने से बेहद जोखिम हो सकता है, उन्हें ट्रांस कैथेटर माइट्रल वॉल्व रिप्लेसमेंट (टीएमवीआर) के जरिए ठीक किया जा सकता है। माइट्राक्लिप, हार्ट फेलियर के रोगियों के लिए वरदान की तरह है। हृदय की कार्यक्षमता कम होने के कारण माइट्रल वॉल्व लीक होने लगता है और लंग्स में पानी व प्रेशर बढ़ने लगता है। इसे बिना सर्जरी के क्लिप द्वारा माइट्रल वॉल्व रिपेयर किया जा सकता है और मरीज को बार-बार हॉस्पिटल में भर्ती होने से बचाया जा सकता है। 

ट्रांस कैथेटर थैरेपी से कम हो जाते जोखिम –

डॉ. संजीब रॉय ने बताया कि अधिक उम्र में एओर्टिक वॉल्व स्टेनोसिस या माइट्रल वॉल्व लीकेज में सर्जिकल ट्रीटमेंट की जगह ट्रांस कैथेटर थैरेपी से जोखिमों में कमी और बेहतर परिणाम आ रहे हैं। टावर तकनीक से बिना सर्जरी के वॉल्व रिप्लेसमेंट से मरीज बहुत जल्दी अपनी पुरानी दिनचर्या में वापस लौट रहे है।

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