वायलिन के उस्तादों ने पेश की मंत्रमुग्ध कर देने वाली संगीतमय शाम

जयपुर। मणिपाल यूनिवर्सिटी जयपुर (एमयूजे) में भारतीय शास्त्रीय संगीत महोत्सव कला समागम का आयोजन किया गया। एमयूजे के कैम्पस में शारदा पाई सभागार में आयोजित कार्यक्रम में वायलिन के उस्तादों ने अपनी मनमोहक प्रस्तुतियों से समा बांध दिया। भारत के सांस्कृतिक राजदूत और वायलिन के उस्ताद, प्रख्यात भारतीय शास्त्रीय संगीतकार डॉ. मैसूर एम. मंजूनाथ द्वारा मंत्रमुग्ध कर देने वाले रागों की एक श्रृंखला प्रस्तुत की गई।

सबसे कम उम्र के केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार विजेताओं में से एक डॉ. मंजूनाथ के साथ आज के सबसे सम्मानित मृदंगम कलाकारों में से एक विद्वान अर्जुन कुमार और जयपुर घराने के महान तबला कलाकार पंडित महेंद्र शंकर डांगी भी थे। शाम का सबसे उल्लेखनीय हिस्सा डॉ. मंजूनाथ की बेटी सुश्री मालवी मंजूनाथ की उपस्थिति थी, जो पहली बार अपने पिता के साथ संगीत कार्यक्रम में शामिल हुईं और प्रस्तुति दी।

कला समागम की शुरुआत कार्यक्रम के गणमान्य व्यक्तियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुई। इस दौरान एमयूजे के अध्यक्ष डॉ. जीके प्रभु की पत्नी मालिनी प्रभु, प्रो प्रेसिडेंट डॉ. थम्मैया सीएस के साथ उनकी पत्नी रोशनी थम्मैया, रजिस्ट्रार डॉ. नीतू भटनागर, प्रोफेसर अनिल दत्त व्यास, डॉ. संध्या व्यास, डॉ. कोमल औदिच्य, कला संकाय के डीन और प्रमुख मानव संसाधन, श्रीधर एम.एस उपस्थित रहे। संगीतमय शाम में जयपुर के महान वायलिन कलाकार रविशंकर भट्ट तैलंग, प्रोफेसर मधु भट्ट तैलंग, डॉ. श्याम सुंदर शर्मा, संगीत विभाग के प्रमुख, सेंट विल्फ्रेड कॉलेज, जयपुर और एमयूजे के छात्र और प्रोफेसर भी मौजूद रहे।

शाम की पहली प्रस्तुति राग सरस्वती से शुरू हुई, जिसके बाद राग हिंडोला प्रस्तुत किया गया। फिर राग कपि शाम का आकर्षण था, जिसमें कलाकारों ने जगत उद्धारं पार्थी उद्धारं बजाया। संगीत समारोह के समापन से पहले हर कोई उस्ताद पं.महेंद्र शंकर डांगी द्वारा तबला और विद्वान अर्जुन कुमार द्वारा मृदंगम की जुगलबंदी देखकर आश्चर्यचकित रह गए। अंत में डॉ. मंजूनाथ ने दो भजन रघुपति राघव राजा राम और वंदे मातरम प्रस्तुत किये।

डॉ मंजूनाथ ने अपने अनुभव और कौशल के साथ कहा कि भारतीय संगीत पूरी तरह से आशुरचना और आत्म-साक्षात्कार के बारे में है। यह लोगों की भावनाओं और दिलों और आत्माओं से जुड़ा है। उन्होंने यह भी कहा कि संगीत दिलों की भाषा है और यह धर्म, भेदभाव और भाषाई बाधाओं से परे है। कोई भी व्यक्ति किसी भी पेशे से जुड़ा हो, उनके दिलों में संगीत हमेशा मौजूद रहता है।

कार्यक्रम श्रीधर एमएस और डॉ. प्रशस्ति जैन द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ समाप्त हुआ। कार्यक्रम के अंत में विश्वविद्यालय अधिकारियों द्वारा कलाकारों को आभार व्यक्त किया गया।कलाकारों के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन ने इस कार्यक्रम में मंत्रमुग्ध कर देने वाला संगीतमय माहौल बना दिया। वे दर्शकों को एक ऐसी दुनिया में ले गए जहां संचार केवल संगीत के माध्यम से होता है। विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए मणिपाल यूनिवर्सिटी जयपुर द्वारा नियमित अंतराल पर इसी तरह के आयोजन किए जाते रहते हैं।

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