July 2, 2025, 1:51 am
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जवाहर कला केंद्र: राजस्थान दिवस समारोह के अंतर्गत बेगम बतूल ने दी फाग, लोकगीत और कबीर भजनों की सुरीली प्रस्तुति

जयपुर। जवाहर कला केंद्र की ओर से राजस्थान दिवस समारोह के अंतर्गत गुरुवार को विभिन्न कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी गई। इसमें विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर अनिल मारवाड़ी द्वारा लिखित व निर्देशित गणगौर परंपरा पर आधारित नाट्य प्रस्तुति ‘सफ़ेद जवारा’ का मंचन हुआ जिसमें अंधविश्वास पर कटाक्ष किया गया। वहीं राजस्थानी लोकनाट्य समारोह के तहत दुर्गेश व साथी कलाकारों द्वारा तुर्रा कलंगी की प्रस्तुति दी गई। इसी कड़ी में पद्मश्री अलंकृत बेगम बतूल ने भावपूर्ण भजन गायन की सुरीली प्रस्तुति देकर दर्शकों का मन मोह लिया।

शुक्रवार को इंडोवायरस बैंड की प्रस्तुति होगी जिसमें लोक गायिका भंवरी देवी, डीनो बंजारा व एनआरएस और तपेश आर. पंवार की ओर से राजस्थानी संग फ्यूजन बीट्स पर संगीत का अनोखा संगम प्रस्तुत किया जाएगा।

अंधविश्वास को दूर कर ‘सफ़ेद जवारा’ ने किया नई ऊर्जा का संचार

अनिल मारवाड़ी द्वारा लिखित व निर्देशित नाटक ‘सफ़ेद जवारा’ गणगौर परंपरा पर आधारित नाटक है जिसकी कहानी लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाए हुए अंधविश्वास को दूर करने का प्रयास है। गुरुवार को रंगायन सभागार में नाटक का मंचन हुआ। नाटक की कहानी शुरु होती है त्यौहारी माहौल से जहां सभी नवविवाहिता गणगौर मनाने के लिए अपने पीहर जाने की तैयारियां कर रही हैं।

ऐसे में नाटक की नायिका किसी कारण से अपने पीहर नहीं जा पाती और उसे ससुराल में ही अपनी सास व ननदों के साथ त्यौहार मनाना पड़ता है। परंपरा के अनुसार गणगौर के आठवें दिन जवारा बोया जाना है जिसमें सबसे ज्यादा ध्यान रखने योग्य बात है कि सफ़ेद जवारा न उग पाए क्योंकि यह अशुभ माना जाता है। इसके उगने पर धार्मिक अनुष्ठान करवाना आवश्यक हो जाता है।

कहानी दूसरा मोड़ तब लेती है जब नायिका के मन का डर अब उसके सामने आ खड़ा होता है। उसे सफ़ेद जवारा दिखाई देने लगता है जो उसके अस्तित्व पर सवाल करता है कि ये कैसा अंधविश्वास है जिसके बोझ तुम दबे जा रही हो। सफ़ेद जवारा यदि उग गया तो ऐसा क्या अमंगल हो जाएगा? आखिरकार सफेद जवारा उगता है और यह अंकुरण नायिका के जीवन में नई ऊर्जा का संचार करने में सफल होता है। यह नाटक सामाजिक अंधविश्वास पर हास्य व्यंग्य करता नजर आया। मंच पर 25 से ज्यादा लोक-कलाकारों ने अभिनय किया साथ ही लोकनृत्य एवं संगीत से नाटक में रंग भरे गए।

बेगम बतूल ने गाया ‘‘प्यारा गजानन देवा, प्यारा गजानन, घूमतदा घर आओ’

मध्यवर्ती का मंच भावपूर्ण सुरों ने गूंजने लगा जब पद्मश्री अलंकृत, भजन, लोकगीत एवं मांड गायिका बेगम बतूल ने विघ्नहरता श्रीगणेश की वंदना में ‘प्यारा गजानन देवा, प्यारा गजानन, घूमतदा घर आओ’ गाकर कार्यक्रम की शुरुआत की। मौका था मध्यवर्ती में भजन गायन कार्यक्रम का जहां राजस्थानी लोकगीतों और भजनों की अनूठी प्रस्तुति दी गई।

बेगम बतूल ने इस सांस्कृतिक संध्या में ‘केसरिया बालम आओ नी, पधारो म्हारे देस’, ‘राम माने प्यारा लागो सा’ और ‘म्हारा हरिया बन का सूवाटिया’ जैसे मधुर लोकगीतों के साथ फाग गीत और कबीर भजनों से शाम को सुरों में पिरोया। इन गीतों के माध्यम से राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत और भक्ति संगीत की गूंज ने हर किसी को भावविभोर कर दिया।

इन मनमोहक कार्यक्रम में बेगम बतूल के साथ दिलीप रोडू ने हारमोनियम पर, साहिल ने तबला पर, आबिद ने ढोलक पर, भंवर ने की-बोर्ड, गौर ने बांसुरी पर और सन्नू चुनकर ने कोरस में संगत की।

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