July 4, 2025, 6:42 pm
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जटिल फेफड़ों की बीमारियों के सटीक निदान के लिए क्रायो-बायोप्सी की हुई शुरुआत

जयपुर। फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हॉस्पिटल जयपुर ने पल्मोनोलॉजी और क्रिटिकल केयर में एक और महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए क्रायो-बायोप्सी प्रक्रिया की शुरुआत की है। यह एक अत्याधुनिक जांच तकनीक है जो जटिल फेफड़ों की बीमारियों के अधिक सटीक और विश्वसनीय निदान में मदद करती है।

फोर्टिस हॉस्पिटल का यह प्रयास राजस्थान में विश्वस्तरीय स्वास्थ्य तकनीक उपलब्ध कराने की दिशा में एक नया मील का पत्थर है। क्रायो-बायोप्सी प्रक्रिया के जरिए फेफड़ों या मीडियास्टिनल लिम्फ नोड्स से बड़े और बेहतर संरक्षित ऊतक के नमूने लिए जा सकते हैं। इससे लिम्फोमा जैसी गंभीर बीमारियों के निदान, फेफड़ों के कैंसर के स्टेज की पहचान और आणविक (मॉलिक्यूलर) जांच में बड़ी मदद मिलती है।

फोर्टिस जयपुर के पल्मोनोलॉजी विशेषज्ञों के अनुसार, पारंपरिक ईबीयूएस-निर्देशित ट्रांस ब्रोंकियल सुई एस्पिरेशन के मुकाबले क्रायो-बायोप्सी तकनीक में ज्यादा ऊतक सामग्री मिलती है और निदान की सफलता दर भी अधिक रहती है। इससे मरीजों को अधिक सटीक और व्यक्तिगत इलाज की योजना बनाने में सहायता होती है।

डॉ. विनोद कुमार शर्मा, कंसल्टेंट पल्मोनोलॉजी, क्रिटिकल केयर और इंटरवेंशनल ब्रोंकोस्कोपी ने कहा, “क्रायो लिम्फ नोड बायोप्सी हमारे डायग्नोस्टिक में एक परिवर्तनकारी अतिरिक्त तकनीक है। यह उन मामलों में विशेष रूप से उपयोगी है जहां ईबीयूएस-टीबीएनए निर्णायक निदान के लिए पर्याप्त टिश्यू प्रदान नहीं करता है।

प्रक्रिया लिम्फ नोड का पता लगाने के लिए ब्रोंकोस्कोपी और ईबीयूएस से शुरू होती है, इसके बाद टीबीएनए एक एक्सेस पॉइंट बनाने के लिए होता है। फिर क्रायोप्रोब डाला जाता है, टिश्यू को फ्रीज करता है, और नियंत्रित परिस्थितियों में सुरक्षित रूप से एक बड़ा नमूना निकालता है। यह तकनीक सुरक्षित, प्रभावी है, और सामान्य एनेस्थीसिया के तहत की जाती है।”

डॉ. शर्मा ने कहा कि अस्पताल अब रिजिड ब्रोंकोस्कोपी, ईबीयूएस, क्रायो-बायोप्सी और एक्मो (एक्स्ट्राकोर्पोरियल मेम्ब्रेन ऑक्सीजनेशन) सहित उन्नत पल्मोनरी प्रक्रियाओं की एक व्यापक श्रृंखला प्रदान करता है।

डॉ. मनीष अग्रवाल, फैसिलिटी डायरेक्टर, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हॉस्पिटल जयपुर ने कहा, “फोर्टिस में, हम लगातार ऐसी नवीन तकनीकों को पेश करने का प्रयास कर रहे हैं जो रोगियों के परिणामों को बेहतर बनाती हैं। क्रायो-बायोप्सी एक ऐसी ही नई, सुरक्षित और प्रभावशाली तकनीक है।

मैं डॉ. विनोद कुमार शर्मा और पल्मोनोलॉजी टीम को हाल ही में दो क्रायो-बायोप्सी मामलों को सफलतापूर्वक करने के लिए बधाई देना चाहता हूँ – दोनों ही मामलों में कोई जटिलता नहीं हुई और निदान के स्पष्ट परिणाम मिले। यह हमारे अस्पताल के लिए गर्व का क्षण है और इस क्षेत्र में उन्नत स्वास्थ्य सेवा वितरण के लिए एक बड़ा कदम है।”

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