जयपुर। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी बंगाली समाज के तत्वावधान में होने वाली दुर्गा पूजा का आगाज 27 सितम्बर से होगा । जिसका समापन 2 अक्टूबर को किया जाएगा। छह दिवसीय दुर्गा पूजन का आयोजन दुर्गापुरा के समीप तामरा मैरिज गार्डन, टोंक रोड पर किया जाएगा। इस बार दुर्गा पूजन की थीम ऑपरेशन सिंदूर रखी गई है। इस बार सरबोजनिन वेलफेयर एसोसिएशन जयपुर की अध्यक्ष पौशाली चटर्जी एवं सचिव प्रतिमा राय चौधरी ने के सानिध्य में ये सात दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।
पौशाली चटर्जी ने बताया कि हर साल मॉ दुर्गा की पूजा में आने वाले श्रद्धालुओं को वाहनों की पार्किंग को लेकर काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था। लेकिन इस बार गार्डन में एक सात् 4 सौ वाहनों की पार्किंग की व्यवस्था की गई है। जिसके चलते श्रद्धालुओं को परेशान नहीं होना पड़ेगा।
ट्रस्टी सौमेंदु घोष ने बताया मां दुर्गा की पूजा के लिए उनकी मूर्ति बनाने की एक विशेष परंपरा का पालन किया जाता है। इसके अनुसार, मूर्ति बनाने में सोनागाछी (कोलकाता का एक रेड लाइट एरिया) और गंगा नदी के किनारे से लाई गई मिट्टी का उपयोग किया जाता है. मान्यता है कि इन दोनों स्थानों की मिट्टी को मिलाकर देवी की प्रतिमा बनाने से वह पूर्ण मानी जाती है।
सोनागाछी की मिट्टी को इस लिए माना जाता है शुद्ध
सोनागाछी की मिट्टी इस्तेमाल करने के पीछे मान्यता है कि एक वेश्या मां दुर्गा की अनन्य भक्त थी। उसे समाज के तिरस्कार से बचाने के लिए मां दुर्गा ने उसे वरदान दिया था कि जब तक उसके घर की मिट्टी का प्रयोग नहीं होगा तब तक उनकी पूजा पूरी नहीं मानी जाएगी। यही वजह है देवी की प्रतिमा में कोठे के आंगन की मिट्टी का प्रयोग अवश्य रूप से किया जाता है।
कोलकाता से आते है मूर्तिकार
सोमेंदु घोष ने बताया कि सोनागाछी की मिट्टी मूर्तिकलाकार अपने साथ लेकर आता है और जयपुर के ज्योतिनगर इलाके में मूर्ति का निर्माण किया जाता है। नौ दिन की पूजा करने के बाद सभी मूर्तियों को क्रेन की सहायता से आमेर,नेवटा बांध और अन्य जलाशयों में विसर्जित किया जाता है। जलाशयों का पानी भी दूषित ना हो इसके लिए बास की लड़कियों का इस्तेमाल किया जाता है ताकी मूर्ति गल कर वापस मिट्रटी का रुप ले लेती है और पानी की सतह में बैठ जाती है और बांस की लकडियां तैर कर किनारों पर आ जाती है।