जयपुर। चांदपोल बाजार स्थित श्री रामचंद्रजी मंदिर से सोमवार को 131 साल पुरानी भरत मिलाप परिक्रमा निकाली गई।रामचंद्रजी मंदिर को अयोध्या मानते हुए भरत और शत्रुघ्न सांगानेरी गेट को अयोध्या की सीमा मानते हुए राम-सीताजी और लक्ष्मण को भव्य शोभायात्रा के साथ लेकर आए।
चांदी के साजो सामान से सुसज्जित रियासतकालीन रथ पर सवार होकर भरत और शत्रुघ्न अपने बड़े भ्राता राम, सीताजी और लक्ष्मण को लेने के रवाना हुए तो मंदिर जयकारों से गूंज उठा।सांगानेरी गेट स्थित हनुमानजी के मंदिर के बाहर राम और भरत मिलाप हुआ। भरत और शत्रुघ्न चौदह साल का वनवास पूरा कर लौटे भगवान श्रीराम और सीताजी के चरणों में गिर पड़े।
भगवान राम ने भरत को गले लगाया। राम और भरत के मिलन का यह दृश्य देखकर लोगों की आंखें नम हो गई। भरत ने भगवान श्रीराम की पूजा कर आरती उतारी। इसके बाद राजसी वेशभूषा धारण कर राम-सीता और लक्ष्मण बने स्वरूप बालक रथ पर सवार होकर चांदपोल स्थितराम चंद्रजी मंदिर के लिए रवाना हुए। करीब डेढ़ सौ श्रद्धालु भजन करते और नाचते हुए चल रहे थे। परिक्रमा का काफिला आगे बढ़ा तो और लोग जुड़ते गए। मार्ग में आए मंदिरों के बाहर रथ में विराजमान स्वरूप सरकारों की पूजा-अर्चना की गई।
पूरे रास्ते ठाकुरजी के रथ पर पुष्प वर्षा की गई।जगह-जगह हुआ पुष्प वर्षा से स्वागत:सबसे आगे पचरंगा ध्वज लिए हाथी चल रहा था। उसके पीछे ऊंट, घोड़े, बैंड, बग्गी, लवजामा था। सेवागीर चंवर डुलाते चल रहे थे। श्रद्धालु भजन-कीर्तन करते हुए चल रहे थे। जगह-जगह पुष्प वर्षा कर शोभायात्रा का स्वागत किया गया। सांगानेरी गेट से रथ बड़ी चौपड़, त्रिपोलिया गेट, छोटी चौपड़ होते हुए चांदपोल बाजार स्थित रामचंद्रजी मंदिर पहुंचा।
मंदिर महंत नरेंद्र कुमार तिवारी एवं अन्य ने मंदिर परिसर के मुख्य द्वार हाथी पोल पर भगवान राम की भव्य आरती की गई। सभी स्वरूप सरकारों को कंधों पर बैठाकर मंदिर में लाया गया। मंदिर के दूसरे द्वार सिंहपोल पर भी आरती हुई। उसके बाद मंदिर प्रांगण के अंदर सिंहासन पर सभी को विराजमान करके सत्कार किया गया। पुष्पमाला पहनाई गई।