जयपुर। मिथिलांचल के नवविवाहिताओं का पर्व मधुश्रामणी रविवार को धूमधाम से मनाया गया। नवविवाहिताएं यह व्रत अपने सुहाग की रक्षा एवं गृहस्थाश्रम धर्म में मर्यादा के साथ जीवन निर्वाह के लिए रखती है। प्रवासी मैथिल महिलाओं की संस्था मैथिली महिला मंच की अध्यक्ष बबीता झा ने बताया कि 14 दिन पूर्व से ही प्रतिदिन नवविवाहिताएं पुष्प-पत्र इत्यादि को एकत्रित कर विष हर अर्थात मिट्टी के नाग-नागिन, हाथी इत्यादि बनाकर दूध-लावे के साथ कजरी और ठुमरी जैसी पारंपरिक लोक गीतों के ज़रिए गौरी शंकर की पूजा करती हैं। रविवार को इसका समापन हुआ। इसमें नवविवाहिताओं ने 13 दिन तक अलग अलग पौराणिक कथायें सुनीं । यह एक तरह से नव विवाहिताओं का मधुमास है।
राजस्थान मैथिल परिषद् की उपाध्यक्ष हेमा झा ने बताया की आज अंतिम दिन व्रती के ससुराल से व्रती एवं उनके स्वजन के लिए क्षमतानुरूप फल, मिष्ठान एवं अन्य उपहार आते है ।इस मौके पर क्षमतानुसार सहभोज का भी आयोजन किया गया।
आमेर लाल बाज़ार निवासी ममता झा ने बताया की इस पूजन में महिला ही पुरोहित की भूमिका निभाई ।इस पूजा के दौरान महिलाओं ने बासी फूलों से ही पूजा की जिसे एक दिन पहले तोड़ा जाता है । यह पर्व स्त्री शक्ति को प्रदर्शित करता है।
क्या है टेमी प्रथा
मैथिली महिला मंच की कोषाध्यक्ष अंजू ठाकुर ने बताया की मधुश्रावणी पर्व के आखिरी दिन नव विवाहित महिलाओं को टेमी दागा गया ।नवविवाहिता के घुटने पर पान का पत्ता रखकर जिस जगह पर टेमी दागा गया वहां पर पान के पत्ते में छेद किया गया ।फिर उसी जगह पर जलती हुई बाती से दागा गया ।पति ने पान के पत्ते से पत्नी की आंखें बंद की और टेमी दागने की प्रक्रिया पूर्ण की ।गौरतलब है कि कई लोग इस जलाने की प्रथा का विरोध करते हैं तो अब इसे बुझाकर दागा जाता है । इसे शीतल टेमी कहते हैं ।नवविवाहिता उर्वशी झा ने बताया मधुश्रावणी उत्सव में आज कई स्थानों पर मिथिला की महिलाओं ने एकत्र होकर पूजा अर्चना की और बिना नमक का भोजन किया ।