जयपुर। जवाहर कला केन्द्र की ओर से आयोजित रंगरीत कला महोत्सव का शनिवार को दूसरा दिन रहा। वैदिक चित्रकार रामू रामदेव के संयोजन में अलंकार दीर्घा में देश के विभिन्न भागों से आए कलाकारों का जमावड़ा शुरू हो गया और सभी ने अपने चित्रों को पूर्णता देने के प्रयास किए। इसी सिलसिले में कला गुरु गोविन्द रामदेव, वीरेन्द्र बन्नू और सुधीर वर्मा ने अपने अपने चित्रों को पूर्णता की ओर अग्रसर किया। इन तीनों के चित्रों की खासियत ये है कि इन्होंने कुमार संभव में वर्णित भगवान शिव और पार्वती की लीलाओं का अपने अपने अंदाज में चित्रण किया है।
कार्तिकेय के जन्म से पहले नृत्य मुद्रा में शिव पार्वती
चित्रकार गोविन्द रामदेव ने अपने सृजन में कुमार संभव में वर्णित कार्तिकेय के जन्म से पहले भगवान शिव और पार्वती को नृत्यमयी अंदाज में चित्रित किया है। कलाकार ने बताया कि कामदेव को भस्म करने के बाद शिव और पार्वती प्रसन्न मुद्रा में नृत्य कर रहे हैं, इस नृत्य के बाद कार्तिकेय का जन्म होता है। उन्होंने इसमेें पीले रंग को प्रमुखता दी है जो कि पारंपरिक देव रंग गोगूली स्टिक से लिया गया है।
विवाह के बाद रमण पर निकले शिव पार्वती
यथार्थ शैली के नामी चित्रकार सुधीर वर्मा ने कुमार संभव में वर्णित उस घटनाक्रम को चित्रित किया है जिसके अनुसार विवाह के बाद भगवान शिव और पार्वती ने गंधमादन पर्वत पर 100 वर्ष तक रमण किया था। इस चित्र में नंदी पर सवार रमण को निकले शिव पार्वती का अक्स है। उन्होंने गंदमाधन पर्वत की लालिमा को ध्यान में रखते हुए अपनी चित्र आकृति में लाल रंग को प्रमुखता दी है।
जीवंत हुआ शिव पार्वती का प्रथम मिलन
पारंपरिक कला के सशक्त हस्ताक्षर वीरेन्द्र बन्नू ने वसली पेपर पर बनाई जा रही अपनी चित्र आकृति में शिव पार्वती के प्रथम मिलन को दर्शाया है। उन्होंने सिंदूर में खड़िया मिलाकर पार्वती के स्किन टोन की लालिमा को उभारा है जबकि शिव की आकृति में उन्होंने नीले रंग की प्रधानता रखते हुए नील का उपयोग किया है।
रविवार को होगी पारम्परिक कला की दशा और दिशा पर चर्चा
समारोह संयोजक रामू रामदेव ने बताया कि समारोह के तीसरे दिन रविवार को कलाकारों का सृजन जारी रहेगा, यहां शाम 4.30 बजे से ‘पारम्परिक कला की दशा और दिशा’ विषय पर चर्चा आयोजित की जाएगी जिसमें समदर सिंह खंगारोत ‘सागर’, वीरेन्द्र बन्नू, गोविन्द रामदेव, शैल चोयल सहित कई कलाकार अपने विचार रखेंगे।