जयपुर। डॉ. विक्रम अरोड़ा, सीनियर कंसल्टेंट यूरोलॉजी और डॉ. मनोज खंडेलवाल, कंसल्टेंट एंडोक्राइनोलॉजी, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हॉस्पिटल जयपुर के डॉक्टर्स डे पर सुझाव दिए है। डॉ. विक्रम अरोड़ा, सीनियर कंसल्टेंट यूरोलॉजी, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हॉस्पिटल जयपुर ने कहा “डॉक्टरों पर मरीजों और उनके परिवारों के लिए उपचारक, निर्णयकर्ता और भावनात्मक सहारा बनने की बड़ी जिम्मेदारी होती है।
लेकिन इन जिम्मेदारियों को निभाते हुए वे अक्सर अपने मानसिक स्वास्थ्य को पीछे छोड़ देते हैं। लगातार भावनात्मक दबाव, लंबी कार्य अवधि, गंभीर निर्णय लेना और रोगियों की पीड़ा से रोजाना सामना करना धीरे-धीरे बर्नआउट, चिंता और भावनात्मक थकान जैसी समस्याओं का कारण बन सकता है।”
डॉ. मनोज खंडेलवाल, कंसल्टेंट एंडोक्राइनोलॉजी, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हॉस्पिटल जयपुर ने कहा “भारत में, जहां मरीज और डॉक्टर का अनुपात अक्सर बहुत कम होता है, वहां डॉक्टरों पर दबाव और बढ़ जाता है। ऐसे में तनाव प्रबंधन सिर्फ महत्वपूर्ण ही नहीं, बल्कि डॉक्टरों की भलाई और मरीजों को मिलने वाली देखभाल की गुणवत्ता के लिए भी जरूरी हो जाता है। लंबे समय तक बना रहने वाला और अनसुलझा तनाव करुणा की थकान, खराब कार्य-जीवन संतुलन और अवसाद या चिंता जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े सामाजिक विकार के कारण कई डॉक्टर समय रहते मदद लेने से भी हिचकिचाते हैं।”
डॉक्टरों के लिए तनाव प्रबंधन की रणनीतियाँ:
तनाव के शुरुआती संकेतों को समय रहते पहचानना और सक्रिय मानसिक स्वास्थ्य रणनीतियों को अपनाना बेहद जरूरी है। कुछ प्रमाण-आधारित उपाय जो डॉक्टरों के लिए विशेष रूप से सहायक सिद्ध हुए हैं, ये हैं:
माइंडफुलनेस और ध्यान: रोजाना सिर्फ 10–15 मिनट का ध्यान कोर्टिसोल (तनाव हार्मोन) के स्तर को घटा सकता है और मानसिक शांति बहाल कर सकता है।
सहकर्मी सहायता समूह: साथियों से अनुभव साझा करने से भावनात्मक बोझ कम होता है और एकजुटता की भावना मिलती है।
शारीरिक गतिविधि: नियमित व्यायाम – चाहे हल्की सैर हो या स्ट्रेचिंग – मूड सुधारने और चिंता घटाने में बहुत मदद करता है। किसी खेल या पसंदीदा शौक को नियमित जीवनशैली में शामिल करना भी तनाव दूर करने में बहुत सहायक होता है।
निर्धारित ब्रेक और शौक: अस्पताल के काम से दूर समय बिताने से डॉक्टर खुद से जुड़ पाते हैं और बर्नआउट से बच सकते हैं।
पेशेवर परामर्श: मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से सलाह लेना पूरी तरह सामान्य होना चाहिए और अस्पतालों में इसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।