July 22, 2025, 8:49 pm
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युवा और नशा समाधान है ‘संघ के संस्कार’ हमारी संस्कृति का नवोदय: भीम सिंह कासनियां

जयपुर। आज का भारत युवाओं का देश है। विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी हमारे पास है, लेकिन दुर्भाग्यवश यही युवा वर्ग एक गहरे संकट में फँसता जा रहा है। नशे की आदत शहरों से लेकर गांवों तक, स्कूल-कॉलेज से लेकर मोहल्लों के नुक्कड़ तक, नशे का जाल युवाओं को तेजी से अपने गिरफ्त में ले रहा है। यह केवल एक सामाजिक बुराई नहीं, बल्कि हमारे राष्ट्र की ऊर्जा और भविष्य का ह्रास है।

प्रवासी संघ राजस्थान प्रदेश संयोजक भीम सिंह कासनियां ने बताया कि नशा सिर्फ शराब, तंबाकू या ड्रग्स तक सीमित नहीं रहा है। अब यह डिजिटल नशा, मोबाइल और सोशल मीडिया की लत तक फैल चुका है। युवा दिशाहीन हो रहे हैं, क्योंकि उनके पास मूल्य आधारित जीवन की शिक्षा नहीं है। घरों में संयुक्त परिवार खत्म हो रहे हैं, स्कूलों में नैतिक शिक्षा गौण हो गई है, और समाज में भी अनुशासन की भावना कमज़ोर हो चुकी है। एक समाधान जो सीधा दिख रहा है वह है संघ के संस्कार ।

आज यदि किसी चीज़ की सबसे अधिक आवश्यकता है, तो वह है संघ के संस्कारों की पुनः स्थापना। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) वर्षों से भारत के युवाओं में राष्ट्रभक्ति, अनुशासन, सेवा और संयम का बीज बोता आया है। शाखा में खेल, शारीरिक व्यायाम, देशभक्ति गीत, आत्मचिंतन, बौद्धिक चर्चाएं और सेवा कार्य ये सब मिलकर एक युवा के चरित्र निर्माण का आधार बनते हैं।

जब कोई युवा प्रतिदिन शाखा में जाता है, तो वहाँ उसका मन नकारात्मकता और नशे की ओर नहीं जाता, बल्कि वह देश, समाज और परिवार के प्रति उत्तरदायित्व समझता है। संघ के संस्कार उसे आत्मबल, आत्मसंयम और आत्मविश्वास देते हैं , जो किसी भी प्रकार के नशे या भटकाव से बचाने के लिए सबसे बड़ा अस्त्र हैं। परिवार और समाज की भी इसमें अहम भूमिका है।

हर माता-पिता को यह समझना होगा कि केवल डिग्री और करियर ही नहीं, अपने बच्चों को संस्कार देना भी आवश्यक है। स्कूल और कॉलेज प्रशासन को भी चाहिए कि वे छात्रों को राष्ट्रीय, सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से जोड़ें।

स्थानीय समाज और ग्राम पंचायतें मिलकर युवा केंद्र, व्यायामशालाएं, पुस्तकालय और सेवा कार्यों को बढ़ावा दें, जिससे युवाओं का मन सही दिशा में लग सके।

यदि हम चाहते हैं कि हमारा युवा वर्ग नशे से दूर रहे और राष्ट्रनिर्माण में भागीदार बने, तो संघ जैसे संगठनों से जुड़ना और उनके संस्कारों को आत्मसात करना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। भारत को विश्वगुरु बनाना है, तो पहले हमें अपने युवाओं को संस्कारों से सज्ज करना होगा।

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