जेकेके: कबीर अनहद में कलाकारों ने जगाई आध्यात्मिक चेतना

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JKK: Artists awakened spiritual consciousness in Kabir Anhad
JKK: Artists awakened spiritual consciousness in Kabir Anhad

जयपुर। विश्व संगीत दिवस के अवसर पर जवाहर कला केन्द्र की ओर से जारी संगीत और साहित्य को समर्पित कार्यक्रम का शनिवार को दूसरा दिन रहा। कबीर जयंती के दिन दी आर्टशाला स्टूडियो के क्यूरेशन में कबीर—अनहद कार्यक्रम शहरवासियों को अध्यात्मिक शांति से सराबोर कर दिया। इंदौर के राजमल मालवीय ने कबीर वाणी जबकि महेशाराम मेघवाल ने कबीर गायन की प्रस्तुति दी।

वहीं संवाद प्रवाह में कबीर के साहित्य और उसकी प्रासंगिकता विषय पर लोकेश कुमार सिंह ‘साहिल’, सोम प्रकाश शर्मा, जगदीश मोहन रावत, डॉ. सुशीला ‘शील’ ने विचार रखे। वहीं काव्य गोष्ठी में एहजाज उल हक, याचना फांसल, ऋषि दीक्षित, इब्राहिम जीशान, मिरा दिव्या सिसोदिया ने दोहे, छंद व कविताएं सुनाकर समां बांधा। इसी के साथ दो दिवसीय कार्यक्रम का समापन हुआ।

‘मत कर माया को अभिमान…’

इस दिन सूरज की तपिश वैसी नहीं थी, यह सुबह और दिनों से अलग थी। जयपुरवासी जुटे संत कबीर की सरल मगर सारगर्भित सीख से लबरेज गीतों को सुनने के लिए। कृष्णायन में इंदौर के राजमल मालवीय एवं समूह के कलाकारों ने कबीर वाणी की प्रस्तुति दी। उन्होंने ‘झीनी रे झीनी रे चुनरिया’, ‘सद्गुरु में लगन लगी रे मेरे भाई’, ‘बाहर भटके काहे, थारा सतगुरु रहवे घट माही’, ‘मत कर माया को अभिमान’, ‘जरा धीरे गाड़ी हाँको मेरे राम गाड़ी वाले’ सरीखे भजन गाकर संत कबीर के संदेश को लोगों तक पहुंचाया। सह गायन रंजीत अखंड, हारमोनियम पर मायाराम परमार, वायलिन पर संजय डोडियार, ढोलक पर राम सिंह ने संगत की।

‘काव्य गोष्ठी और साहित्यिक चर्चा’

दोपहर का सत्र साहित्य के नाम रहा। कबीर साहित्य और उसकी प्रासंगिकता पर विचार रखते हुए डॉ. सुशीला ‘शील’, जगदीश मोहन रावत और सोम प्रकाश शर्मा ने एकमत होकर कहा कि कबीर का साहित्य मानवता के संरक्षक की तरह है, कबीर की वाणी को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता, ये वह सिद्धांत है जो दुनिया में हमेशा प्रेम, आत्मीयता, प्रभु भक्ति का संचार करते रहेंगे। लोकेश कुमार सिंह ‘साहिल’ ने सत्र का मॉडरेशन किया। चर्चा के बाद युवा कवियों ने अपने काव्य पाठ से श्रोताओं का दिल जीता। मिरा दिव्या सिसोदिया ने ‘सर्वदा आरंभ का यह अंत है, जो सफलता पर गड़ाता दंत है, धरती पर उतरा जब इंसान था, आज हर कोई सामंत है’ कविता पढ़ी।

‘रुक्मण तुम सब जानकर क्यों बैठी हो मौन, मैं राधा हूं पूछती, कृष्ण आपके कौन’ पढ़कर राधा और रुक्मणी संवाद का दृश्य साकार किया। ‘आज जाना है गम की दुनिया में, शक्ल कपड़े बदल रही है दोस्त, होश नीचे गिराएगा इसे, नींद रस्सी पर चल रही है दोस्त’ शायरी के साथ इब्राहिम अली जीशान ने वाहवाही लूटी। ‘यही है इत्मीनान मिट्टी, है इंसान गुमान मिट्टी का, यूं ही मिल नहीं सकते मिट्टी में, देना होगा लगान मिट्टी का’ पढ़कर याचना फांसल ने मिट्टी के कर्ज की बात रखी। एहजाज उल हक की कविता ‘नए सफर पर नया हौसला बनाता है, जुनून ए शौक क्या—क्या बनाता है, मैं भी हैरत में हूं उसकी सादगी पर, वो बुत तराश तो सबके लिए खुदा बनाता है’ का सभी ने तालियां बजाकर स्वागत किया।

‘थारो राम हृदय में बाहर क्यों भटके’

संगीत संध्या के साथ कबीर अनहद कार्यक्रम का समापन हुआ। छतांगर, जैसलमेर के महेशाराम मेघवाल व समूह के कलाकारों ने कबीर गायन की प्रस्तुति दी। गणेश वंदना से आगाज कर उन्होंने, ‘थारो राम ह्रदय में बाहर क्यों भटके’, हेळी गायन ‘गुरु परमानंद औगण बहुत किया’ आदि भजन प्रस्तुत किए। छगना राम ने ढोलक, तेजाराम और रामू राम ने मंजीरे पर संगत की।

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