‘विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, यह शान है-यही गौरव हमारा’

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'Victorious world loves the tricolor, this is our pride, this is our glory'
'Victorious world loves the tricolor, this is our pride, this is our glory'

जयपुर। जवाहर कला केन्द्र की ओर से स्वतंत्रता दिवस के मद्देनजर बुधवार को विशेष नाट्य प्रस्तुति का आयोजन हुआ। वरिष्ठ नाट्य निर्देशक सलीम आरिफ़ के निर्देशन में नाटक ‘बॉस्की के कप्तान चाचा’ का मंचन किया गया। नाटक की कहानी मशहूर साहित्यकार गुलज़ार ने लिखी है। नाटक आमजन मुख्यतः: बच्चों में देशभक्ति का जज्बा जगाने के साथ-साथ राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के महत्व और गरिमा पर प्रकाश डालता है।

नाटक की प्रासंगिकता को ध्यान में रखते हुए माह-ए-आज़ादी में अतुल्य अगस्त के अंतर्गत स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर केन्द्र की ओर से यह नाट्य प्रस्तुति आयोजित हुई। पहले शो में स्कूली बच्चों ने हिस्सा लिया जबकि दूसरे शो में हर उम्र के कला प्रेमी दर्शक बने।

इस कहानी के सूत्रधार और आधार दोनों बच्चे है। पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए सलीम आरिफ़ ने बताया कि गुलज़ार ने अपनी बेटी बॉस्की (मेघना गुलज़ार) को इस नाटक की कहानी तोहफ़े के रूप में दी थी। बॉस्की के कप्तान चाचा का यह 11वां और राजस्थान में पहला शो रहा। नाटक के नायक है कप्तान चाचा। कारगिल वॉर में हिस्सा ले चुके कप्तान अब रिटायर्ड हो चुके हैं और मुंबई की चॉल में रहने आए हैं। पूर्व सैनिक के सीने में देशभक्ति का वही जज्बा अब भी बरकरार है और वे चाहते हैं कि देश के सभी नागरिक देश से प्रेम करें और राष्ट्रीय अस्मिता को समझे। चॉल में अलग-अलग धर्मों के लोग मिलजुल कर रहते हैं।

चाचा बच्चों को सेना और स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियां सुनाते-सुनाते उनके कप्तान बन जाते हैं। अब यह टोली मिलकर स्वतंत्रता दिवस पर चॉल में ध्वजारोहण की योजना बनाती है। बच्चे जब अपने माता-पिता को यह बात बताते हैं तो पहले वे आनाकानी करते हैं, बच्चों की जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ता है। चंदा इकट्ठा कर पहले पोल और फिर झंडा लाया जाता है। इसी के साथ एक-एक झंडा सभी को घर पर लगाने को दिया जाता है लेकिन लोग इसकी गरिमा को ध्यान में न रखते हुए झंडे को सिर्फ एक कपड़ा समझने लगते हैं।

कप्तान देखता है कि कोई झंडे में खाना बांधकर ले जा रहा है तो कोई परदे की तरह काम ले रहा है। कप्तान पुलिस बुलाता है बात उल्टी पड़ जाती है और उसे ही जेल जाना पड़ता है। कप्तान के बिना बच्चों की दुनिया उदास हो जाती है अंतत: सभी लोगों को अपनी गलती का एहसास होता है और वे कप्तान को छुड़ाकर लाते हैं। बाद में पूरे सम्मान के साथ ध्वजारोहण किया जाता है।

नाटक में अर्श सैय्यद, मयंक विश्वकर्मा, हिमांशु राय, भिषक मोहन, विकास कुमार, पूर्णिमा, फ़राज़ सलीम जैसे प्रोफेशनल एक्टर्स भी दिखे। इसी के साथ ढाई अक्षर एनजीओ की ओर से वर्सोवा स्लम एरिया के बच्चों को अभिनय सिखा कर मंचीय प्रस्तुति का मौका भी दिया गया। अभिनेत्री लुबना सलीम ने प्रोड्यूसर की भूमिका निभाई। मिलिंद वानखेड़े ने संगीत तो रोहित चिपलूनकर ने प्रकाश संयोजन संभाला। निर्देशक सलीम आरिफ़ ने कहा कि इस मुहिम का उद्देश्य बच्चों में संस्कार निर्माण करना है इसलिए वंचित वर्ग के बच्चों को अभिनय सिखा कर परफॉर्म करने का मौका दिया गया।

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