सात दिवसीय श्रीमद्भागत कथा का समापन

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Conclusion of the seven-day Shrimadbhagat Katha
Conclusion of the seven-day Shrimadbhagat Katha

जयपुर। निवारू रोड झोटवाड़ा के शक्तिनगर में सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा का गुरुवार को विश्राम हुआ। अंतिम दिन सुदामा चरित्र, कलियुग वर्णन, नवयोगेश्वर संवाद, भागवत सार, नाम महिमा और परीक्षित मोक्ष के प्रसंग पर प्रवचन हुए। हाथोज धाम के स्वामी तथा हवामहल विधायक बालमुकुंदाचार्य, बड़ पीपली वाले महाराज, सैंथल साईधाम के महाराज सहित अनेक विशिष्टजनों की गरिमामयी उपस्थिति रही।

प्रारंभ में व्यासपीठ का पूजन कर आरती उतारी गई तथा अतिथियों का सम्मान किया गया। व्यासपीठ से वृंदावन धाम के सुधीर कृष्ण उपाध्याय महाराज ने सुदामा प्रसंग में कहा कि भगवान की भक्ति कभी भी स्वार्थ के भाव से नहीं करनी चाहिए। भक्ति के बदले कभी कुछ प्राप्त होने की कामना भी नहीं करनी चाहिए। भक्ति निष्काम और निस्वार्थ भाव से ही करनी चाहिए। भक्ति के बदले कुछ प्राप्त होने की अपेक्षा भक्ति को व्यापार बना देगी।

परीक्षित मोक्ष प्रसंग में उन्होंने कहा कि भागवत सात दिन में पूरी होती है। व्यक्ति की मृत्यु भी सात दिनों में ही होती है। इसलिए सप्ताह के सातों दिन अच्छे कार्य करते रहे, पता नहीं किस दिन किसकी मौत आ जाए। मृत्यु शाश्वत है, अटल है। जिसका जन्म हुआ उसकी मौत उसी दिन लिखी जा चुकी है। मृत्यु नए जीवन की शुरुआत है, इसका शोक नहीं करना चाहिए। गीता जिस प्रकार जीवन जीने की कला का ग्रंथ है उसी प्रकार भागवत मृत्यु सीखाने वाला महागंरथ है।

कलियुग में भगवान के नाम की महिमा का बखान करते हुए कलियुग केवल नाम अधारा जपत जपत नर उतरहि पारा…की व्याख्या करते हुए कहा कि कलियुग में यज्ञ, दान-पुण्य, बड़े अनुष्ठान संभव नहीं हो तो प्रभु का नाम सतत रूप से जपते रहे। इस मौके पर बड़ी संख्या में महिलाओं ने भागवत जी की परिक्रमा की। जयकारों के साथ कथा का विश्राम हुआ।

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