जयपुर। ठिकाना मंदिर गोविंद देवजी की ओर से रामगंज चौपड़ स्थित मुरली मनोहर जी मंदिर में देवशयनी एकादशी पर रविवार, 6 जुलाई को सुबह आठ से दस बजे तक मंदिर महंत अंजन कुमार गोस्वामी के सान्निध्य में पंच कुंडीय गायत्री महायज्ञ के साथ विद्यारंभ संस्कार महोत्सव का आयोजन किया जाएगा। गोविंद देवजी मंदिर के सेवाधिकारी मानस गोस्वामी ने बताया कि यज्ञ में सभी को आहुतियां अपित करने का अवसर प्राप्त होगा। किसी भी तरह के सामान लाने की आवश्यक्ता नहीं है।
यज्ञ के दौरान पहली बार विद्यालय जाने वाले बच्चों के लिए विद्यारंभ संस्कार भी निशुल्क कराया कराया जाएगा। बच्चा पढ़ाई-लिखाई में श्रेष्ठ प्रदर्शन करे इसके लिए मां सरस्वती का पूजन किया जाएगा। कॉपी या स्लेट पर बच्चे से ओम लिखवाया जाएगा। उपस्थित श्रद्धालु पुष्प वर्षा कर बच्चे की उज्जवल भविष्य की कामना करेंगे। विभिन्न कक्षाओं में अध्ययनरत विद्यार्थियों के लिए सरस्वती गायत्री मंत्र से विशेष आहुतियां प्रदान की जाएगी।
यज्ञ से पूर्व ठाकुर श्री गोविंद देवजी, मुरली मनोहर जी, वेदमाता गायत्री और गुरु सत्ता का पूजन किया जाएगा। गायत्री शक्तिपीठ ब्रह्मपुरी के विद्वानों की टोली यज्ञ संपन्न कराएगी। विद्यारम्भ संस्कार से बालक- बालिका में उन मूल संस्कारों की स्थापना का प्रयास किया जाता है, जिनके आधार पर उसकी शिक्षा मात्र ज्ञान न रहकर जीवन निर्माण करने वाली हितकारी विद्या के रूप में विकसित हो सके।
क्या है विद्यारंभ संस्कार
गायत्री परिवार राजस्थान के समन्वयक ओम प्रकाश अग्रवाल ने बताया कि जब बालक-बालिका की आयु शिक्षा ग्रहण करने योग्य हो जाती है तब उसका विद्यारंभ संस्कार कराया जाता है। इस संस्कार से जहां एक ओर बालक में अध्ययन का उत्साह पैदा किया जाता है, वही अभिभावकों, शिक्षकों को भी उनके इस पवित्र और महान दायित्व के प्रति जागरूक कराया जाता है कि बालक को अक्षर ज्ञान, विषयों के ज्ञान के साथ श्रेष्ठ जीवन के सूत्रों का भी बोध और अभ्यास कराते रहे।
प्रत्येक अभिभावक का यह धर्म और कर्तव्य है कि बालक को जन्म देने के साथ- साथ आई हुई जिम्मेदारियों में से भोजन, वस्त्र आदि की शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति होने पर उसकी शिक्षा- दीक्षा का प्रबंध करे । जिस प्रकार कोई माता- पिता जन्म देने के बाद उसके पालन- पोषण की जिम्मेदारी से इंकार कर उसे कहीं झाड़ी आदि में फेंक दें, तो वे अपराधी माने जाएंगे ।
ठीक उसी प्रकार जो लोग बच्चों की शिक्षा- दीक्षा का प्रबंध न करके, उन्हें मानसिक विकास एवं मानव जाति की संगृहीत ज्ञान- सम्पत्ति का साझेदार बनने से वंचित रखते हैं, वे भी उसी श्रेणी के अपराधी हैं, जैसे कि बच्चों को भूखों मार डालने वाले। इस पाप एवं अपराध से मुक्ति पाने के लिए हर अभिभावक को अपने हर बच्चे की शिक्षा का चाहे वह लडक़ी हो या लडक़ा, अपनी सामथ्र्य के अनुसार पूरा- पूरा प्रबंध करना होता है।
देवताओं की साक्षी में होगा संस्कार:
इस धर्म कर्तव्य की पूर्ति का, अनुशासन का पालन करते हुए बच्चों के अभिभाव कों को अपने उत्तरदायित्व को निभाने की घोषणा के रूप में बालक का विद्यारम्भ संस्कार करना पड़ता है। देवताओं की साक्षी में समाज को यह बताना पड़ता है कि मैं अपने परम पवित्र कर्तव्य को भूला नहीं हूं, वरन उसकी पूर्ति के लिए समुचित उत्साह के साथ कटिबद्ध हो रहा हूं। ऐसा ही प्रत्येक मनुष्य को करना चाहिए । किसी को भी अपनी संतान को विद्या से वंचित नहीं रहने देना चाहिए।