लोकरंग महोत्सव में छऊ, थय्यम और कांगड़ा लोक नृत्य ने बांधा समां

0
66

जयपुर। जवाहर कला केंद्र में जारी 28वें लोकरंग महोत्सव के दसवें दिन पर मध्यवर्ती का मंच देशभर की लोक परंपराओं से सराबोर हो गया जहाँ लोक नृत्य और संगीत की अनूठी झलक देखने को मिली। राजस्थान से लेकर केरल, तमिलनाडू और जम्मू-कश्मीर तक के कलाकारों ने अपनी मनमोहक प्रस्तुतियों से शाम को लोक संस्कृति के रंगों में रंग दिया।

शाम का आगाज़ लोक कलाकार शेर मोहम्मद, निहाल खान और जलाल खान के लोक गीतों से हुआ। प्रस्तुति की शुरुआत बच्चों द्वारा लोक गायन से हुई जिसके बाद सारंगी, खड़ताल, भपंग, तालकचहरी, मोरचंग और ढोल की तानों पर जुगलबंदी ने माहौल को रोमांचित कर दिया। शेर मोहम्मद ने सुरीला समां बांधते हए ‘लेता जाइजो रे दिलडा देता जाइजो’ गीत में जोशीली प्रस्तुती दी।

इसके बाद कविता सक्सैना व समूह के कलाकारों ने माखन चोरी ब्रज नृत्य में लोक-नाट्य परंपरा को जीवंत कर दिया। इस प्रस्तुति में भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की माखन चोरी की मनोहर लीलाओं को दर्शाया गया, जिसमें ब्रज की गोपियाँ बालकृष्ण की शरारतों से परेशान होकर उन्हें पकड़ने की योजना बनाती हैं। नृत्य में कोमल भाव-भंगिमाओं, पद संचालन और मधुर संगीत ने मिलकर रमणीय वातावरण बना दिया।

छत्तीसगढ़ के कलाकारों ने अपनी पारंपरिक मांदरी नृत्य प्रस्तुति से लोकरंग के मंच को उत्सवमय बना दिया। इस लोकनृत्य की जड़ें वहां की आदिवासी संस्कृति में गहराई से बसती हैं। वनांचल क्षेत्र में नवाखाई, आमा जोगनी, दिवाली और अन्य पारंपरिक पर्वों पर किया जाने वाला यह नृत्य देवी-देवताओं के प्रति आस्था और नई फसल के आगमन की खुशी का प्रतीक है।

मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र से आए कलाकारों ने पारंपरिक कांगड़ा नृत्य की प्रस्तुति में लोक विधा गायन और नृत्य दोनों का सुंदर संगम साकार किया। यह नृत्य विभिन्न त्यौहारों पर उत्सवों के मौकों पर किया जाता है जिससे सामाजिक मेलजोल भी बढ़ता है। इसके बाद राजस्थान के कलाकारों ने पारंपरिक घूमर नृत्य की मनोहारी प्रस्तुति दी, जिसमें राजस्थानी लोक संस्कृति की सौंदर्य, सादगी और उमंग झलक उठी। रंग-बिरंगे परिधानों में सजी कलाकाराओं की लयबद्ध घूम ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

केरल के कलाकारों द्वारा थय्यम की प्रस्तुति दी गई जो स्थानीय प्राचीन पारंपरिक कला है। प्रस्तुति में देवी-देवताओं की पूजा और लोककथाओं का मंचन किया गया और दर्शकों ने आध्यात्मिक अनुभव महसूस किया। जम्मू-कश्मीर के कलाकारों ने डोगरी नृत्य के माध्यम से अपनी पारंपरिक लोक संस्कृति की झलक प्रस्तुत की, जिसमें रंग-बिरंगे परिधान और ऊर्जावान लय ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। वहीं, केरल के कलाकारों ने मयूरम नृत्य के माध्यम से मनमोहक मुद्राओं और तालबद्ध गतियों से दर्शकों को नृत्य की नई अनुभूति कराई।

देश के कोने-कोने से आए लोक कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियों से भारत की लोक विविधता को मंच पर साकार किया। दर्शकों ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ कलाकारों का उत्साह बढ़ाया।झारखंड से आए सुधीर एवं समूह ने अपने लोक नृत्य छऊ से दर्शकों को रोमांचित कर दिया। प्रस्तुति में कलाकारों ने नृत्य महिषासुर वध की कहानी गढ़ते हुआ देवी मां की शक्ति और न्याय का स्वरूप मंच पर साकार किया और बड़े-बड़े वज़नदार मुखौटे मुख पर लगाए हुए शक्ति और समर्पण को सजीव रूप दिया।

तमिलनाडु के कलाकारों ने महेश्वरन थपट्टा कलाई नृत्य प्रस्तुत किया। यह नृत्य आराध्य को समर्पित है और 15 कलाकारों के समूह ने इसे मंच पर आखिरी प्रस्तुति में पेश किया। शाम की आख़िरी प्रस्तुति में गुजरात के भरूच रतनपुर से आए कलाकारों ने अफ्रीकी आदिवासी समूह की शैली में सिद्दी धमाल प्रस्तुत किया। अनोखी वेशभूषा और अफ्रीकी भाषा के गीत पर हुई इस प्रस्तुति में बाबा गोर की वंदना की गई, जो दर्शकों के लिए रोमांचक अनुभव साबित हुई।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here