चार माह बाद योग निंद्रा से उठेंगे ठाकुरजी, दो दिन रहेगी देवउठनी एकादशी

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Devuthani Ekadashi on November 12
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जयपुर। चार माह से योग निद्रा में शयन कर रहे भगवान श्रीहरि विष्णु कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि (देवउठनी या देवोत्थान एकादशी) को जाग्रत होंगे। देवोत्थान एकादशी का शुभ पर्व एक-दो नवंबर को मनाया जाएगा। खाटूश्यामजी मंदिर में एक नवंबर को एकादशी मनाई जाएगी। उदियात तिथि के अनुसार दो नवंबर को एकादशी व्रत रहेगा। गोविंद देवजी, गोपीनाथ जी, राधा दामोदर जी, सरस निकुंज, लाड़लीजी सहित ज्यादातर वैष्णव मंदिरों में दो नवंबर को ही एकादशी उत्सव मनाया जाएगा।

उत्तिष्ठो उत्तिष्ठ गोविंदा उत्तिष्ठ गरुड़ ध्वज उत्तिष्ठ कमलाकांत त्रैलोक्यं मंगलम् कुरु… मंत्र के साथ ठाकुरजी को जगाने का भाव किया जाएगा। इस दौरान शंख-घंटा-घडिय़ाल की मंगल ध्वनि की जाएगी। भगवान विष्णु के जागरण के साथ ही सभी शुभ और मांगलिक कार्यों का शुभारंभ हो जाएगा। चार माह से बंद गृहप्रवेश, विवाह, यज्ञोपवीत, नामकरण एवं नए प्रतिष्ठानों के उद्घाटन जैसे कार्य अब पुन: आरंभ होंगे। हर ओर शहनाइयों की मधुर ध्वनि गूंजेगी।

शंख-घंटा-घडिय़ाल बजाकर ठाकुरजी को जगाएंगे

पंडित श्रीकृष्ण चंद्र शर्मा के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन जाग्रत होते हैं। देवोत्थान के दिन मंदिरों में भगवान विष्णु का पंचामृत से अभिषेक कर पूजन, दीपदान और शंख-घंटा बजाकर आराधना की जाएगी। इस दिन भगवान विष्णु के नाम का कीर्तन करना चाहिए। दीप प्रज्ज्वलित करें और गरीबों और गौमाता को भोजन कराना चाहिए। इस दिन गोभी, पालक, शलजम और चावल का सेवन वर्जित है। बाल और नाखून नहीं कटवाने चाहिए, पेड़-पौधों की पत्तियां नहीं तोडऩी चाहिए और किसी से कड़वी वाणी नहीं बोलनी चाहिए। दूसरे के घर का भोजन भी ग्रहण न करें।

शाम को दीपदान- तुलसी विवाह
दो नवंबर को तुलसी शालिग्रामजी का विवाह होगा। जो दंपत्ति कन्या-दान का अवसर नहीं पा सके, वे तुलसी का कन्यादान करके अत्यंत पुण्य अर्जित कर सकते हैं। शाम को दीपदान करने से महान पुण्य की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में देवोत्थान एकादशी का व्रत हजार अश्वमेध यज्ञों और सौ राजसूय यज्ञों के बराबर बताया गया है। इस दिन विष्णु सहस्रनाम, भगवद्गीता, अष्टाक्षर या द्वादशाक्षर मंत्र का जप विशेष फलदायी होता है। रात्रि में जागरण कर कीर्तन करने से जीवन में सुख, समृद्धि, संतान एवं सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यदि कोई अन्न का पूर्ण त्याग न कर सके, तो केवल चावल का त्याग करना पर्याप्त है।

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