“फेवी क्विक से चिपके होंठ, मुंह में पत्थर – कहाँ जा रही हैं संवेदनाएँ?”

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A newborn baby found with a stone in his mouth in Bhilwara
A newborn baby found with a stone in his mouth in Bhilwara

राजस्थान के भीलवाड़ा जिले से आई खबर ने हर संवेदनशील हृदय को विचलित कर दिया है। एक नवजात शिशु के मुंह में पत्थर ठूंसकर और उसके होंठों को फेवी क्विक से चिपकाकर जिस अमानवीय कृत्य को अंजाम दिया गया, उसने न केवल कानून-व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगाया है बल्कि समाज की नैतिकता और मानवीय संवेदनाओं को भी गहरे पैमाने पर झकझोर दिया है।

स्थानीय पुलिस और प्रशासन की जानकारी के अनुसार, यह नवजात शिशु लावारिस हालत में मिला। जब लोगों ने उसे देखा तो उसके होंठ फेवी क्विक से बुरी तरह से चिपके हुए थे और मुंह में पत्थर डालकर उसे सांस लेने तक से वंचित करने की कोशिश की गई थी। चिकित्सकों की त्वरित देखभाल के कारण शिशु की जान बचाई जा सकी। लेकिन इस नृशंस घटना ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि एक मासूम, जिसने अभी दुनिया देखना भी शुरू नहीं किया, उसके प्रति इतनी नफरत और निर्दयता क्यों?

समाज में आज भी कन्या भ्रूण हत्या, लिंग भेद और अवैध संबंधों की उपज जैसे मुद्दे मौजूद हैं। कई बार नवजात को बोझ या शर्म समझकर इस तरह की अमानवीय घटनाएँ सामने आती हैं। यह घटना बताती है कि कुछ लोगों में इंसानियत का अस्तित्व लगभग खत्म हो चुका है। बच्चा, चाहे बेटा हो या बेटी, ईश्वर का उपहार है। उसे ठुकराना या इस तरह निर्दयता से मारने की कोशिश करना, मानवता के विरुद्ध अपराध है। इस तरह की घटनाएँ यह दर्शाती हैं कि बाल संरक्षण कानून और जागरूकता अभियानों के बावजूद ज़मीनी स्तर पर संवेदनशीलता नहीं बढ़ पाई है।

भारत में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, बाल अधिकार संरक्षण कानून और महिला एवं शिशु संरक्षण अधिनियम जैसे कई प्रावधान मौजूद हैं। लेकिन समस्या कानून के अनुपालन और सख़्त कार्रवाई की कमी में है। जब तक दोषियों को त्वरित और कड़ी सजा नहीं मिलेगी, तब तक ऐसे अपराधियों के हौसले बुलंद रहेंगे।

हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह ऐसी घटनाओं की न केवल निंदा करे बल्कि इसके पीछे छिपे कारणों को समाप्त करने में भी योगदान दे। यदि कोई नवजात परित्यक्त मिलता है तो उसे तुरंत पुलिस, अस्पताल या चाइल्डलाइन (1098) जैसी सेवाओं को सौंपना चाहिए। बेटियों और नवजातों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करना समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।

भीलवाड़ा की यह घटना केवल एक बच्चे पर अत्याचार नहीं है, बल्कि यह हमारी सामूहिक संवेदनशीलता की परीक्षा है। हमें यह तय करना होगा कि हम कैसा समाज बनाना चाहते हैं— क्रूरता से भरा हुआ या करुणा और संवेदनाओं से संपन्न। जरूरत है कि दोषियों को कठोर सजा मिले, समाज में जागरूकता बढ़े, और हर नागरिक यह संकल्प ले कि किसी भी मासूम के साथ अन्याय न होने पाए।

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