अभ्युत्थानम एनजीओ का लक्ष्य इस मानसून में 1 लाख पौधे लगाना

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Abhyutthanam NGO aims to plant 1 lakh saplings this monsoon
Abhyutthanam NGO aims to plant 1 lakh saplings this monsoon

जयपुर। राजस्थान को हरा-भरा बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए, अभ्युत्थानम वेलफेयर फाउंडेशन जयपुर एवं अभ्युत्थानम सोसाइटी (एनजीओ) ने विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर जयपुर के जेएलएन मार्ग पर स्थित महावीर वन से “लक्ष वृक्ष” अभियान का आगाज किया। इस अभियान का उद्देश्य राज्य भर में 1 लाख से अधिक पौधों का रोपण करना है, जिसमें समाज के सभी वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित की गई है, विशेष रूप से युवाओं की सक्रिय भागीदारी को अभियान का मूल स्तंभ बनाया गया है।

पिछले चार वर्षों में अभ्युत्थानम एनजीओ ने राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में पर्यावरण संरक्षण और वृक्षारोपण को लेकर उल्लेखनीय कार्य किया है । इसी प्रयास की निरंतरता में “लक्ष वृक्ष” अभियान को इस बार और भी बड़े पैमाने पर किया जा रहा है।

अभ्युत्थानम एनजीओ के संस्थापक एवं अध्यक्ष एडवोकेट प्रांजल सिंह ने कहा, हमारा उद्देश्य सिर्फ पेड़ लगाना नहीं, बल्कि एक ऐसा जन-आंदोलन खड़ा करना है जिसमें हर नागरिक पर्यावरण संरक्षण में भागीदार बने। ‘लक्ष वृक्ष’ केवल एक अभियान नहीं, बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए हरित विरासत की नींव है। इस कार्यक्रम में अभ्युत्थानम एनजीओ की सचिव एडवोकेट रिद्धि चंद्रावत, उपाध्यक्ष अनुज चांडक, कोषाध्यक्ष अमन झंवर, एडवोकेट सार्थक सक्सैना, अदिति झंवर, खुशी माहेश्वरी, भुवनेश जोशी, जाह्नवी राजावत, समृद्धि राजावत, उज्जवल सोलंकी, गोविंद वर्मा और लाखन सिंह मौजूद रहें।

इस अभियान की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

युवा की भागीदारी: राजस्थान के प्रत्येक जिले और संभाग में स्थानीय युवाओं को जोड़कर मजबूत टीमों का गठन किया गया है, जो अभियान की निगरानी और क्रियान्वयन में अग्रणी भूमिका निभाएंगे।

पौधा बीमा योजना: किसी पौधे की मृत्यु की स्थिति में उसकी जगह नया पौधा लगाया जाएगा, जिससे वृक्षारोपण केवल एक औपचारिकता न रहकर दीर्घकालिक प्रतिबद्धता बने।

पौधा बैंक की स्थापना: लोगों को समय पर और गुणवत्ता युक्त पौधे उपलब्ध कराने हेतु पौधा बैंक की व्यवस्था की गई है।

सांस्कृतिक कार्यक्रम: वृक्षारोपण को सामाजिक उत्सव का स्वरूप देने के लिए स्थानीय सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा, जिसमें लोक कलाएं, गीत-संगीत और परंपरागत विधियों का समावेश होगा।

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