नेट थिएट पर शास्त्रीय संगीत  के रंग जमे

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जयपुर l नेट थिएट कार्यक्रमों की श्रंखला में युवा शास्त्रीय कलाकार *मुज्म्मिल अली ने राग भीम पलासी में  जा जा रे अपने मंदिर वा जा, सुन पावेगी मोरी सांस ननंदिया  को ध्रुरुप्त लय में बड़े सुरीले अंदाज में प्रस्तुत कर दर्शकों की दाद पाई  l

नेट थिएट के राजेंद्र शर्मा राजू ने बताया कि कलाकार मुजम्मिल अली ने शास्त्रीय संगीत की तालीम उस्ताद बुंदू खां और सूफी गायन अपने दादा उस्ताद हाजी टिम्मू गुलफाम और अपने पिता  मुस्तफा अली से ली । इन्होंने अपने गायन की शुरुआत राग जौनपुरी में एक बंदिश *पायल की झंकार बेरनिया झन-झन बाजे ऐसी मोरी* को द्रुत लय में  प्रस्तुत कर अपनी गायकी का परिचय दिया l इसके बाद राग मियां मल्हार में फूल रही सरसों सकल बन, अंबा मोरे गेसू फुटे, गौरी करत सिंगार, मलानिया गरबा लगाया बरसों फूल रही सरसों  सुना कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया  l

इनके साथ तबले पर आसिफ हुसैन ने  अपनी संगत से कार्यक्रम को परवान चढ़ाया l

कार्यक्रम संयोजक नवल डांगी, प्रकाश एवं कैमरा मनोज स्वामी, संगीत विनोद सागर गढ़वाल और मंच सज्जा  जीवितेश, सागर और नोनू की रही l

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