जयपुर। आराध्य देव गोविंद देवजी मंदिर के सत्संग हॉल में द्वादश ज्योतिर्लिंग कथा महोत्सव प्रबंध समिति जयपुर के तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय मीरा चरित्र कथा के दूसरे दिन महंत अंजन कुमार जी गोस्वामी के सानिध्य में कथा वाचक महाराज आशीष व्यास के श्रीमुख से मीराबाई के चरित्र पर दिव्य कथा का शुभारंभ हुआ। कथा के आरंभ कमलेश देवी,रमेश जायसवाल,आशा देवी राधाकृष्ण नई वाले, मान देवी,मंजू अग्रवाल, जगमोहन विजय ने व्यास पीठ को माला व दुपट्टा पहनाया ।
इस अवसर पर त्रिवेणी धाम के राजपाल दास महाराज कनक बिहारी मंदिर के महंत सियाराम दास महाराज सरस कुंज के अलबेली शरण महाराज और विभिन्न मंदिर मठों के संत महंत कथा में शामिल हुए । जयपुर की महापौर कुसुम यादव उपमहापौर पुनीत कर्णावत एवं विभिन्न समाजों संस्थाओं से पधारे सदस्यों का आयोजन समिति के द्वारा माला दुपट्टा पहन कर अभिनंदन किया । समिति के रामबाबू झालानी ने बताया की कथा का कल अंतिम दिवस है और कथा मध्यान ठीक 12 आरंभ होगी।
आज की कथा में महाराज ने बताया कि मीरा ने लोक लाज सब त्यागकर गिरधर को भजती और गिरधर को पाया । जीव जब लोक लाज ,मोह ,माया छोड़कर वह गिरधर में समा जाता है तो स्वयं ईश्वर तत्व हो जाता है । उन्होने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में राम और काम दोनों है परंतु जब कोई व्यक्ति अपनी सर्वप्रिय वस्तु को ठाकुर को अर्पण करता है खुश होता है उसमें राम है और जो स्वयं उस वस्तु का उपभोग करने की सोचता है उसमें काम है। महाराज ने बताया कि वैष्णव जनों को अपने आहार की शुद्धता पर ध्यान अवश्य देना चाहिए, क्योंकि वैष्णव भोजन नहीं करते ईश्वर का प्रसाद पाते हैं ,तो उसमें शुद्धता अति आवश्यक है “जैसा खाओगे अन्न वैसा हो जाएगा मन ।
मीरा ने अपने जीवन के सभी प्रिय वस्तु अपने ठाकुर जी को समर्पित की, ठाकुर की सेवा, श्रृंगार, प्रसाद, शयन आदि किसी भी भाव में उन्हें कोई कमी दिखती थी तो उनके मन में विक्षेप होता था वह तो निश्चल भाव से उन्हीं के भाव में रहती गुणगान स्वरूप उनके पद गाती और जब वह ठाकुर के पद गाती तो उनके नयन सजल हो जाते।
मीरा बाई ने ठाकुर को अपने नैनों में बसने के लिए इसलिए कहा कि इन नैनों से जब संसार को देखें और उसमें आप बसे हो, तो समस्त संसार में केवल ठाकुर आप ही नजर आएंगे और आपकी छवि के निरंतर मुझे दर्शन होते रहेंगे।
महाराज ने कथा के माध्यम से बताया की सेवा की सार्थकता तब है जब चित्त का लय उस सेवा में हो तो निश्चित सफलता मिलती है । आपने भगवान को क्या दिया इसका कोई मूल्य नहीं है ,परंतु आपने किस भाव से दिया उसका मूल्य है यदि आपको भगवत प्राप्ति करना है तो उसके एक भाव से रहना पड़ेगा एक भाव को स्वीकार करना पड़ेगा उसे भाव में डूबना पड़ेगा तब परमात्मा की कृपा प्राप्त होती है।
भक्ति मार्ग भी गणितीय सिद्धांत की तरह होता है इसमें पहले मानना पड़ता है बाद में सिद्ध होता है। मीरा ने कृष्ण को अपना पति माना और वह एक भाव में ही ईश्वर भक्ति में लीन रही और ठाकुर को वह भाव सिद्ध करना पड़ा । मीरा को रैदास जी के रूप में अपने आध्यात्मिक गुरु की प्राप्ति हुई, जो भगवान कृष्ण की प्रेरणा से अपने शिष्य को पाने के लिए स्वयं उनके घर पधारे थे। रैदास ने मीरा के मुख मंडल की आभा को देखकर मन में सोचा कि यह तो ठाकुर जी मुझे केवल श्रेय दे रहे हैं ।
मीरा तो साक्षात कई आध्यात्मिक गुरुओं की गुरु प्रतीत होती हैं। उन्होंने सहज भाव से उन्हें शिष्य के रूप में अपना लिया lउन्होने कहा कि एक लक्ष्य एक भाव एक लगन जब मनुष्य के मन में जागृत होती है तो वह लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। यदि वह कई लक्ष्यों पर बिना भाव के काम करता है तो उसे कोई भी लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती है।