जयपुर। सिद्धि विनायक प्राच्य विद्या एवं ज्योतिष शोध संस्थान की ओर से पिंजरापोल गौषाला सांगानेर ‘‘सुरभि सदन’’ में पार्थिव शिव का पूजन का कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में 65 जोडों ने 75 से अधिक विद्वानो के सानिध्य में पार्थिव शिव का निर्माण कर रुद्राभिषेक किया। सिद्धि विनायक प्राच्य विद्या एवं ज्योतिष शोध संस्थान के अध्यक्ष आचार्य लीलाधर शर्मा ने बताया कि पार्थिव लिंग की पूजा करने से अनेक मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं।
व्यस्त जीवन में साधकों के मानसिक तनाव को दूर करने, प्रदेश में सुख समृद्धि और महिला उत्पीड़न बंद हो इसी कामना के साथ यह कार्यक्रम रखा गया। गणपति पूजन के साथ प्रारम्भ हुए कार्यक्रम में रूद्र पाठ कर पार्थिव शिव का गाय के दूध, दही, घी, शहद, बूरा, गन्ने का रस व औषधियों से स्नान कराया गया। वही हरिद्वार से लाये हुए गंगाजल से पूजन और शिवाभिषेक किया गया।
कार्यक्रम में धर्मप्रेमियों ने उपस्थित होकर अभिषेक किया। इस दौरान विशेष रूप से इस अवसर पर नेपाल से लाए गए सप्तमुखी रूदाक्ष और गौ-संवर्धन से जुड़ी दिव्य सामग्रियों का प्रयोग कर शिवाभिषेक किया गया। इस मौके पर शिव पंचायत का विशेष पुष्पो से श्रृंगार किया गया।
सांयकाल गोधूलि वेला में धूप और दीप जलाकर भगवान शिव की 1100 दीपको से महाआरती की गई। बाबा भोलेनाथ की महाआरती में “ॐ नमः शिवाय“ मंत्र के जाप से परिसर गुंजायमान हो गया। कार्यक्रम के समापन के मौके पर आगन्तुक अतिथियों का सम्मान भी किया गया। इस दौरान धर्मप्रेमियों ने भोजन प्रसादी का भी आन्नद लिया।
पार्थिव शिव की पूजा का विशेष महत्व
पार्थिव शिवलिंग अभिषेक पुण्यदायी पूजा विधि है। पार्थिव शिवलिंग अभिषेक से सभी दोषों का नाश होता है। आयु, आरोग्य और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
कब हुई शुरुआत
पार्थिव शिवलिंग की पूजा सबसे पहले भगवान श्रीराम ने लंका कुच करने से पहले पार्थिव शिवलिंग व महा रुद्राभिषेक की पूजा की थी। भोलेनाथ की कृपा से रामचंद्रजी लंका पर विजय प्राप्त किए थे। शनिदेव ने अपने पिता सूर्यदेव से अधिक शक्ति पाने के लिए काशी में पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा की थी।
पार्थिव शिवलिंग की पूजा सामग्री
मिट्टी, पंचामृत यानि दूध, दही, घी, शक्कर और शहद, वस्त्र, यज्ञोपवीत, चंदन, रोली, अक्षत्, फूल, बेलपत्र, दीप, नैवेद्य, फल, गाय का घी, कपूर आदि।