जवाहर कला केन्द्र में विरासत से विकास में दिखा हैंडलूम का बेशकीमती खजाना

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जयपुर। जवाहर कला केन्द्र की ओर से नेशनल हैंडलूम के मद्देनजर अतुल्य अगस्त के अंतर्गत आयोजित विरासत से विकास उत्सव की रविवार को शुरुआत हुयी। केन्द्र की अतिरिक्त महानिदेशक प्रियंका जोधावत ने दीप जलाकर कार्यक्रम का आगाज किया। रघुकुल ट्रस्ट के क्यूरेशन में हो रहे इस कार्यक्रम में जहां हैंडलूम की विरासत को संजोया गया है वहीं रमा सुंदरम से सुरीली आवाज में संत कबीर और नामदेव आदि संतों की वाणी भी गूंजी।

अलंकार गैलरी जो टाइमलेस टेक्सटाइल एग्जिबिशन का गवाह बनी है आगामी तीन दिनों के लिए अजायबघर में तब्दील हो गयी है। पुराने दौर में प्रचलित परिधान जो अब विरासत बन गए हैं उन्हें देश के अलग-अलग इलाकों से एकत्रित कर यहां प्रदर्शित किया गया है। प्रदर्शनी में प्रवेश करते ही अलग-अलग तरह कै हैंड ब्लॉक पर नज़र ठहर जाती है।

हवा में लहराती विभिन्न प्रदेशों की सिल्क की आकर्षक साड़ियां सभी का ध्यान अपनी ओर खींचती हैं इनमें असम का मोगा सिल्क, बनारसी जामेवार सिल्क, तनचोई साटन सिल्क, आंध्र प्रदेश की पोचमपल्ली आदि की साड़ियां है। पंजाब, चंबा, कच्छ में प्रचलित एम्ब्रोयडरी, लखनऊ की चिकनकारी, वेलवेट पर ज़रदोज़ी वर्क, 1920 में बना पीला ओढ़ना, 1900 में बनी यूपी की बनारसी अचकन, ज़री, बंधेज, लहरिया जैसे हेरिटेज हैंडलूम यहां देखने को मिलेंगे।

राजस्थान के वस्त्र डाल रहे प्रदर्शनी में जान

राजा रवि वर्मा के ओरिजिनल प्रिंट, राजस्थान में जैसलमेर, बाड़मेर, उदयपुर, जोधपुर, बीकानेर और पचेवर क्षेत्र में प्रचलित वस्त्र, कोटा की विशेष कोटा डोरिया साड़ी, इसी के साथ पश्चिम बंगाल के कांथा वर्क में लंका दहन और महिषासुर मर्दिनी को दर्शाया गया है, आंध्र प्रदेश की कलमकारी में कपड़े पर गणेश जी को नृत्य करते हुए चित्रित किया गया है।

फेस्टिवल क्यूरेटर साधना गर्ग ने बताया कि यह प्राचीन परंपरा को पुनर्जीवित करने का प्रयास है। इसमें विजेंद्र बंसल, रूपी मिन्हाज, स्वर्ण सिंह खनूजा, ब्रजभूषण बसीन, सुधीर कासलीवाल आदि संग्रहकर्ताओं का महत्त्वपूर्ण योगदान है। वहीं ट्राइबल आर्ट शो में गोंडा और जोगी आर्ट का सौंदर्य देखने को मिलेगा। अलंकार के प्रथम तल पर वेस्ट मटेरियल से बने आर्ट वर्क को एग्जीबिट किया गया है।

रंगायन में रमा सुंदर रंगनाथन की सुरीली गायन प्रस्तुति हुई। बरसते बादलों ने भी म्यूजिक ऑफ चरखा कॉन्सर्ट में ताल से ताल मिलाई। इंदौर घराने की गायिका रमा ने संत तिरुवल्लुवर की वाणी को हिंदी में अनुवादित कर तैयार कम्पोजीशन से शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने कबीर, नामदेव और बाबा बुल्ले शाह की वाणी से जीवन की सीख दी। महात्मा गांधी के भजन रघुपति राघव राजा राम के साथ उन्होंने प्रस्तुति का समापन किया। तबले पर तानसेन श्रीवास्तव, सारंगी पर दयाल अली ने संगत की। गौरव शर्मा ने मंच संचालन किया।

हैंडलूम की विरासत और सांस्कृतिक वैविध्य से होगा साक्षात्कार

जवाहर कला केन्द्र की महानिदेशक और कला एवं संस्कृति विभाग की प्रमुख शासन सचिव गायत्री राठौड़ ने कहा कि विरासत से विकास उत्सव का उद्देश्य देश की समृद्ध हैंडलूम विरासत और सांस्कृतिक वैविध्य से आमजन का साक्षात्कार करवाना है। यहां शोकेस प्रत्येक आर्टिकल इस बात को दर्शाता है कि भारत में कपड़ों को विशेष बनाने के लिए भी कितने रचनात्मक प्रयोग किए जाते रहे हैं।

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