July 20, 2025, 4:28 pm
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“विद्यालयों में सनातन शिक्षा का समावेश: भावी भारत की आधारशिला”

जयपुर। आज जब हमारा देश विकास की नई ऊँचाइयाँ छू रहा है,तब हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ न केवल तकनीकी रूप से सशक्त हों, बल्कि नैतिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी समृद्ध बनें। इस उद्देश्य की प्राप्ति तभी संभव है जब हम अपने बच्चों को सनातन धर्म के मूल्यों और भगवद्गीता जैसे दिव्य ग्रंथों की शिक्षा से जोड़ें।

प्रवासी संघ राजस्थान प्रदेश संयोजक भीम सिंह कासनियां का कहना है कि विद्यार्थी ही राष्ट्र की नींव होते हैं। जिस प्रकार किसी भवन की मजबूती उसकी नींव पर निर्भर करती है, उसी प्रकार राष्ट्र की दिशा और दशा विद्यार्थियों के चरित्र व संस्कारों पर निर्भर करती है। आज की शिक्षा व्यवस्था में जहाँ भौतिक विकास पर अत्यधिक बल दिया जा रहा है, वहीं आध्यात्मिक एवं नैतिक शिक्षा की उपेक्षा एक बड़ी कमी बनकर उभरी है। इस कमी को केवल सनातन ज्ञान ही पूरा कर सकता है।

सनातन धर्म केवल एक आस्था नहीं, एक जीवन पद्धति है – जो सत्य, अहिंसा, संयम, सेवा, कर्तव्य और आत्मबोध जैसे सार्वभौमिक सिद्धांतों पर आधारित है। यदि इन मूल्यों को प्रारंभिक स्तर से ही विद्यालयों में सिखाया जाए, तो विद्यार्थी केवल अच्छे डॉक्टर, इंजीनियर या अफसर नहीं बनेंगे, बल्कि वे समाज और राष्ट्र के लिए उत्तरदायी, संवेदनशील और संस्कारित नागरिक बनेंगे।

विशेष रूप से भगवद्गीता को पाठ्यक्रम में अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। गीता न केवल धर्म का मर्म सिखाती है, बल्कि जीवन के हर संघर्ष में निर्णय लेने की क्षमता, आत्मबल, कर्तव्यनिष्ठा और मानसिक संतुलन प्रदान करती है। यह एक ऐसा ग्रंथ है जिसे पढ़कर विद्यार्थी न केवल ज्ञान प्राप्त करते हैं, बल्कि आत्मविकास की दिशा में भी अग्रसर होते हैं।

प्रवासी संघ राजस्थान की ओर से प्रदेश संयोजक भीम सिंह कासनियां भारत सरकार और राज्य सरकारों से यह मांग करते है कि हर स्कूल में सनातन धर्म की मूल शिक्षाओं को स्थान दिया जाए और श्रीमद्भगवद्गीता को पाठ्यक्रम में अनिवार्य रूप से लागू किया जाए। यह केवल एक धार्मिक आग्रह नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण की एक अनिवार्य प्रक्रिया है।

हमें यह समझना होगा कि जो विद्यार्थी सनातन मूल्यों से जुड़ता है, वही सत्य का पक्षधर, राष्ट्र का प्रहरी और मानवता का रक्षक बनता है। यही विद्यार्थी कल का भारत गढ़ेगा – एक ऐसा भारत जो विज्ञान में अग्रणी, संस्कृति में समृद्ध और मूल्यों में विश्वगुरु होगा।

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