जयपुर। जयपुर में शिल्पकार आर्ट एंड क्राफ्ट प्रदर्शनी जो जवाहर कला केंद्र के सुखृति गैलरी में दर्शकों को भारतीय कला, विरासत और आध्यात्मिक प्रतीकों का अनूठा संगम देखने को मिला, जब चार दुर्लभ उत्कृष्ट कृतियों का भव्य अनावरण किया गया। ये चारों रचनाएँ भारत की अतुलनीय भक्ति, शिल्प कौशल और परंपराओं को नई ऊँचाइयों पर ले जाने वाली हैं। आयोजन का केंद्रबिंदु रहा “गणेश दरबार”, जो प्राकृतिक रूबी (वजन: 491 ग्राम; आकार: 5.5” ऊँचाई × 3.5” चौड़ाई) पर एक ही पत्थर से उकेरी गई अद्वितीय मूर्ति थी।
राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता पवन कुमार कुमावत द्वारा आठ महीनों की कठिन साधना से दुर्लभ कृति को गढ़ा गया था। रूबी जैसे अत्यंत कठोर रत्न कठोरता का अंक 9 है, पर हाथ से की गई नक्काशी में भगवान गणेश राजसी दरबार में विराजमान हैं। चार भुजाओं में अंकुश (आध्यात्मिक नियंत्रण), पाश (नकारात्मकता को वश में करने का प्रतीक), कमल (पवित्रता का प्रतीक) और मोदक (अनुशासन के मधुर फल का प्रतीक) धारण किए हुए गणेश जी अभय मुद्रा में आशीर्वाद दे रहे हैं।
चारों ओर दिव्य दरबार, वृक्षों, अप्सराओं और प्राचीन मंदिर वास्तुकला से प्रेरित बारीक नक्काशी इस मूर्ति को जीवंत बना देती है। पूरी मूर्ति एक ही रूबी क्रिस्टल से तराशी गई है—जहाँ ज़रा-सी गलती भी पत्थर को तोड़ सकती थी, इसलिए यह शिल्प कौशल, धैर्य और आध्यात्मिकता का अद्वितीय संगम है।
इस आध्यात्मिक अद्भुतता को और अधिक शाही स्पर्श देता है “थेवा कला की शाही विरासत को आधुनिक पहचान देता यह अनूठा हार सेट”। इसे तैयार किया है राघव राज सोनी ने, जो 400 साल पुरानी थेवा परंपरा की छठी पीढ़ी के प्रतिनिधि और पद्मश्री स्व. महेश राज सोनी के पुत्र हैं। 23 कैरेट सोने की नक्काशी को रंगीन कांच पर जड़ने की प्राचीन तकनीक में राघव ने आधुनिक डिज़ाइन और एमरल्ड बीड्स का सुंदर संगम किया है। उनकी इस नवाचारी कला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहना मिली और वर्ष 2023 में कज़ाखस्तान में आयोजित अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प प्रतियोगिता में उन्हें इंटरनेशनल हैंडीक्राफ्ट्स विनर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
कला का तीसरा अनमोल पक्ष प्रस्तुत करता है एक दुर्लभ दिल्ली कंपनी कालीन लघुचित्र। लघु चित्रकला की प्रमुख शैलियों—किशनगढ़, मुगल और कांगड़ा—की परंपरा में यह दिल्ली स्कूल अपनी विशिष्ट वास्तविकता और सूक्ष्म विवरण के लिए जाना जाता है। प्राकृतिक रंगों और अर्द्ध कीमती पत्थरों के प्रयोग से बनी यह पेंटिंग यूरोपीय तकनीक से प्रभावित होते हुए भी भारतीय आत्मा को पूर्ण रूप से संजोए रखती है।
रूबी पर उकेरा गया गणेश दरबार, थेवा कला का शाही हार और दिल्ली कंपनी काल का लघुचित्र—ये तीनों ही भारतीय परंपरा, नवाचार और अद्वितीय शिल्प कौशल का जीवंत प्रमाण हैं। ये कृतियाँ केवल कला नहीं, बल्कि भारत की आध्यात्मिकता, धैर्य और रचनात्मकता का वह संदेश हैं जो पीढ़ियों तक प्रेरणा देते रहेंगे। यह प्रदर्शनी केवल कला प्रेमियों और संग्राहकों के लिए ही नहीं, बल्कि उन सभी के लिए आमंत्रण है जो भारतीय विरासत की गहराई, तकनीकी निपुणता और आधुनिक दृष्टि को एक साथ देखना चाहते हैं। आज शिल्पगुरू राम स्वरूप शर्मा, और मोहन सोनी राम रामदेव अवलोकन किया।