जवाहर कला केन्द्र: दुल्हन के पैर बने मुसीबत, दिल्ली से लाने पड़े गोरधन के जूते

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जयपुर/उदयपुर। जवाहर कला केन्द्र जयपुर (जेकेके) और पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित युवा नाट्य समारोह का शनिवार को दूसरा दिन रहा। युवा नाट्य निर्देशक देशराज गुर्जर के निर्देशन में हुए नाटक ‘गोरधन के जूते’ ने दर्शकों को खूब हंसाया। रविवार को सायं सात बजे अनुराग सिंह राठौड़ के निर्देशन में वरिष्ठ साहित्यकार मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानी पर आधारित ‘कठपुतलियां’ नाटक होगा। युवाओं को मंच प्रदान करने वाली जेकेके की युवा नाट्य निर्देशक अनुदान योजना 2023-24 के अंतर्गत इन युवा निर्देशकों का चयन किया गया है। आउटरीच प्रोग्राम के तहत उदयुपर में दोनों नाटक मंचन के लिए लाए गए।

‘गोरधन के जूते’ कला प्रेमियों में हलचल पैदा करता है। नाटक की कहानी लोक जगत के साथ—साथ जीवन के अलग—अलग पहलुओं को हांस्य, करूण रस का समावेश करते हुए दर्शकों के समक्ष रखती है। दो दोस्त केसर जमींदार और सरपंच बंसी के समक्ष चुनौती है अपने पिता के वादे के अनुसार दोनों परिवारों की दोस्ती को रिश्ते में बदलने की। केसर के पुत्र दीपू और बंसी की बेटी मथरा की शादी तय हो चुकी है।

छोरी का सपना न देख

सभागार अब शादी का घर बन चुका है। बंसी के घर में मथरा की शादी की तैयारियां चल रही है। महिलाएं मंगल गीत गा रही है। इसी बीच दीपू का पिता केसर मथरा के पैर की नाप लेने आता है। मथरा जो पैर का पंजा बड़ा होने के कारण अब तक अपने पिता की जूतियों को पीछे से मोड़कर पहना करती थी, उसके नाप की चप्पल ढूंढना बंसी के लिए भारी पड़ जाता है। यह सरल सी बात मथरा के लिए समस्या बन जाती है। हीरामल महाराज की ज्योत करवाई जाती है। ‘बंसी तू छोरी का बड़ा पैरा न देख रियो छै, इका बड़ा-बड़ा सपना न देख सारी दिक्कत दूर हो जावे ली, ईश्वर एक बार जीन जसो बणा दिया वो बणा दिया।’

हीरामल महाराज की वाणी बड़ा संदेश देती है लेकिन लोक लाज की रस्सी बंसी और मथरा के गले में फंदे की तरह जकड़ती जाती है। बंसी का भांजा जो शहर से आता है वो दिल्ली से जॉर्डन के जूते लाकर मथरा को पहनाने का सुझाव देता है। विदेशी ब्रांड जॉर्डन गांव में गोरधन के नाम से मशहूर हो जाता है। बंसी और केसर दिल्ली जूते लेने के लिए जाते हैं। शहर में उनके बीच तकरार हो जाती है जिससे शादी रुक जाती है। केसर के काका की सूझबूझ से बात बन जाती है। दीपू बारात लेकर आता है तो मथरा घर छोड़कर जाने लगती है। अंत में वह अपने पिता को बताती है, ‘मेरा नेशनल लेवल बास्केटबॉल टूर्नामेंट में सिलेक्शन हो गया है, मैं अभी शादी करना नहीं खेलना चाहती हूं, मैं जीतूंगी तो तुम्हारा नाम ही रोशन करुंगी।’ दीपू भी मथरा का साथ देता है और दोनों चले जाते है।

इन्होंने निभाई अहम भूमिका

प्रदीप बंजारा ने केसर, आरिफ खान ने बंसी, प्रतीक्षा सक्सेना ने मथरा तो पंकज चौहान ने दीपू का किरदार निभाया। अन्य कलाकारों में सचिन सौखरिया, सुनील सैनी, मधु देवासी, सुरभि दायमा, भानुप्रिया सैनी, दीपक सैनी, नितेश वर्मा, जेडी, कृष्ण पाल सिंह नरुका, शुभम सोयल, मनीष गोरा, जितेंद्र देवनानी, जया शर्मा, विकास शर्मा, वेद प्रकाश, प्रांजल गुर्जर, दीपक सैनी, शालिनी कुमारी शामिल है। शुभम तिवारी, साहिल आहूजा, अरबाज हुसैन ने प्रकाश संयोजन और अनिमेष आचार्य ने संगीत संयोजन संभाला।

जवाहर कला केन्द्र एक नजर में

1993 में स्थापित जवाहर कला केन्द्र स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण तो है ही साथ ही वह अपने में भव्य कला जगत को समेटे हुए है। आर्किटेक्ट चार्ल्स कोरिया द्वारा तैयार जवाहर कला केन्द्र की वास्तु संरचना, 1727 में बसाए गए जयपुर शहर की चौपड़ प्रणाली व नवग्रह के मण्डलों पर आधारित है। जवाहर कला केन्द्र संगीत, नृत्य, वादन, नाट्य, दृश्यकला, साहित्य के विभिन्न रूपों के प्रस्तुतिकरण के साथ-साथ इनके संरक्षण व विकास हेतु सतत् क्रियाशील हैं। एक बहुआयामी सांस्कृतिक संस्थान के रूप में आकल्पित जवाहर कला केन्द्र में आर्ट गैलरियां, कला-स्टूडियो, रंगायन व कृष्णायन सभागार, मध्यवर्ती, अतिथि गृह, पुस्तकालय, शिल्पग्राम, बुक क्लब, कॉफी हाउस तथा कैफे है। जवाहर कला केन्द्र कलाओं के संरक्षण व संवर्धन के लिए सदैव कार्यरत है।

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