जवाहर कला केन्द्र: कथक में बसंत की सुहानी यात्रा को मंच पर किया साकार

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Jawahar Kala Kendra: The pleasant journey of spring in Kathak realized on stage
Jawahar Kala Kendra: The pleasant journey of spring in Kathak realized on stage

जयपुर। मन बसंत, मौसम बसंत और बासंती बयार, हूं मैं इतना मतवाला बसंत कि सभी को अपने रंग में रंग दूं। इसी एहसास के साथ सभी में हर्ष, उल्लास का संचार करने वाले बसंत पर्व में कथक के माध्यम से कलाकारों ने ऋतुराज की मानभावन क्रीड़ा को मंच पर साकार किया। कथक केन्द्र की आचार्य डॉ. रेखा ठाकर के निर्देशन में परिकल्पित प्रस्तुति ने सभी का मन मोह लिया। सभी कलाकारों ने बसंतु की सुहानी यात्रा को कथक के माध्यम से सभी के सामने रखा। इसी के साथ जवाहर कला केन्द्र की ओर से बसंत के स्वागत में आयोजित तीन दिवसीय बसंत पर्व का बुधवार को समापन हुआ।

गणेश वंदना से प्रस्तुति की शुरुआत हुई। कवि केदारनाथ की पंक्ति ‘हवा हूं हवा में बसंती हवा हूं, बड़ी बावरी हूं’ पर ताल धमार में बंदिश, चक्रधार और लयकारी के माध्यम से बासंती रंग को फिजा में घुलते हुए दिखाया गया। बसंत की मनोरम आहट के बाद तीन ताल में ‘कोयलिया बोले अमबुआ की डाल’ बंदिश पर कलाकारों ने नृत्य किया। दर्शाया गया कि किस तरह कोयल की कुहू से सभी को बसंत के आगमन की सूचना मिलती है। तीन ताल में ‘ऋतु बसंत मन भाए सखी री’ बंदिश पर थिरकते कदमों और आंगिक भाव से बसंत के सौंदर्य को बयां किया गया। डॉ. हरिराम आचार्य की रचना, ‘कुंज कुंज वन निकुंज, मधु ऋतु मन भाए’ से बसंत आगमन से प्रकृति की इठलाती छवि को जाहिर किया गया।

‘होली खेलत नंदलाल’ पर पीले फूलों की उड़ती पंखुड़ियों के साथ थिरकते कदमों ने विराम लिया। पखावज पर डॉ. प्रवीण आर्य, तबले पर मुजफ्फर रहमान और सितार पर पंडित हरिहर शरण भट्ट ने संगत की। पंडित मुन्ना लाल भाट ने गायन तो डॉ. रेखा ठाकर ने पढ़ंत किया। कथक प्रस्तुति देने वाले कलाकारों में कनिका कोठारी, वाणी पांडे, देवांशी दवे, अनन्या दलवी, हरिजा पांडे, मेघा गुप्ता, वंशिका और चित्रांश तंवर शामिल रहे।

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