वैभव नगरी जयपुर की आभा और फिल्मी सितारों से चमका जयरंगम

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Jayarangam shines with the aura of the glorious city Jaipur and film stars
Jayarangam shines with the aura of the glorious city Jaipur and film stars

जयपुर। गुलाबी नगरी के सुनहरे इतिहास पर चर्चा, युवा रंगकर्मियों की नाट्य प्रस्तुति और फिल्मी सितारों की चमक से सजा मंच। यह दृश्य देखने को मिला जयपुर रंग महोत्सव के चौथे दिन। थ्री एम डॉट बैंड थिएटर फैमिली सोसाइटी की ओर से कला एवं संस्कृति विभाग, राजस्थान और जवाहर कला केन्द्र, जयपुर के सहयोग से सात दिवसीय फेस्टिवल का आयोजन किया जा रहा है। 

रचनात्मक रंगों से लिखा ‘प्रेम पत्र’

स्पॉटलाइट में युवा निर्देशक चिन्मय मदान के निर्देशन में युवा कलाकारों ने मिलकर ‘प्रेम पत्र’ नाटक खेला। चार प्रेम कहानियों को समाहित करने वाले प्रेम पत्र का हर एक शब्द युवा मन की रचनात्मकता के रंगों से लिखा गया है। पहली प्रेम कहानी 50 के दशक में बसी है। तमाम बंदिशों और संचार के साधनों के अभाव के बावजूद अपनी मोहब्बत को अंजाम देते प्रेमी जोड़े की जद्दोजहद को बयां किया गया। वहीं स्ट्रीट वेंडर की कहानी में पारिवारिक रिश्तों की मधुरता को दर्शाया। निराश वेंडर को उसका परिवार संबल देता है, सभी मिलकर उसके ठेले को तैयार करते है जिससे वह आजीविका चलाता है।

वर्तमान समय में गौण हो रहे पारिवारिक प्रेम को बड़ी संजीदगी से दिखाया गया। फिर शुरू होती है छोटे बच्चे की कहानी। यह बच्चा दर्शकों से सीधा संवाद करता है और बढ़ती उम्र के साथ इंसान की मासूमियत व स्वतंत्रता छीनने पर खेद जताता है। दुल्हन बनने जा रही बेटी अपनी मां को पत्र लिखकर भावों को व्यक्त करती है, भाव विभोर करने वाली कहानी से नाटक का समापन होता है।

चिन्मय मदान ने बताया कि प्रेम पत्र मल्टीसेंसरी थिएटर फॉर्म पर आधारित नाटक है। कैथलीन क्रशॉअ ने इसे डिजानइ किया है। चिन्मय मदान, संजय चारण, निष्ठा लाटा, ट्विंकल विजयवर्गीय, मिली शर्मा, युवराज सिंह राठौर, भूपेंद्र परिहार ने किरदार निभाए। टीम में चेल्सी पाठक,मान मदान, देशराज, एंजेला बिनॉय, स्वप्निल ध्यानी, अंकिता डेविड, अंकित रावत शामिल रहे।

सालों की दुश्मनी भुला भानू दादा ने किया माफ

रंगायन में विनोद सोनी द्वारा लिखित और निर्देशित नाटक में पात्रों ने दर्शकों को खूब गुदगुदाया। शाही खानदान के ​भानु दादा जिनकी आत्मा 400 साल से अपने शत्रु वंश से बदला लेने को भटक रही थी उन्हीं के इर्द-गिर्द यह नाटक घूमता है। इसी हवेली में रहता है उनका वंशज विक्रम सिंह जो हमशक्ल है भानु दादा का। सिंह कर्ज चुकाने को हवेली बेचने की जद्दोजहद में उलझा रहता है। चंदानी सेठ को हवेली बेचने के लिए वह स्वांग रचता है शाही ठाठ-बाठ का। चंदानी जो अपने व्यावसायिक प्रतिद्वंदी होल्कर को नीचा दिखाने को यह पुरानी हवेली खरीदना चाहता है। परिवार संग हवेली में आया चंदानी सौदा तय कर लौट जाता है। आधी रात होती है और समय होता है भानु दादा के आने का।

इसी बीच चंदानी परिवार फिर हवेली में आ पहुंचता है। उनकी मुलाकात भानु दादा से होती है। दो दिन का समय देकर चंदानी फिर लौट जाता है। दो दिन बाद होल्कर और चंदानी दोनों एक साथ हवेली में आ धमकते हैं। बाद में खुलासा होता है कि होल्कर उसी वंश से आता है जिससे भानु दादा बदला लेना चाहता है। सामने आने के बाद भी भानु दादा होल्कर को माफ कर देते है और हमेशा के लिए अनंत में लीन हो जाते है। इसके बाद सौदा हो जाता है भानगढ़ के भानु की हवेली का। राजेंद्र पायल, किरण राठौड़, संदीप लेले, विनोद सोनी, विपुल, प्रकाश दायमा, पल्लवी, सक्षम, लक्षकार ने मंच पर विभिन्न किरदार निभाए।

‘हर गली की अपनी कहानी’

‘देख्यो ना ही जयपुरियो तो जग माई आर की करियो’, जयपुर के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को जाहिर करते हुए इन्हीं शब्दों के साथ रंग संवाद की शुरुआत हुई। वरिष्ठ पत्रकार जितेन्द्र सिंह शेखावत, संस्कृति कर्मी अजय चोपड़ा और कला मर्मज्ञ विनोद सोनी ने ‘जयपुर की अनसुनी कहानियां’ विषय पर अपने विचार रखे। अजय चोपड़ा ने कहा कि तने और पत्तियों की परवाह करने की जगह नींव की देखभाल करेंगे तो पेड़ स्वत: ही हरा भरा हो जाएगा। ऐसे में ऐसे संवाद बहुत प्रासंगिक है जिससे हमें अपनी जड़ों से जुड़ने का मौका मिलता है। जितेन्द्र सिंह ने कहा कि जयपुर ने यों ही दुनिया में पहचान नहीं बनायी है यहां की हर गली और चौराहे के साथ एक कहानी जुड़ी हुई है।

उन्होंने विभिन्न प्रसंगों के जरिए ऐसे ही अनछुए पहलुओं को सभी के सामने रखा। उन्होंने बताया कि सवाई जय सिंह द्वितीय ने 18 नवंबर, 1727 को गंगापोल पर जयपुर की नींव रखी। विधाधर भट्टाचार्य जैसे विद्वान इसके वास्तुकार रहे। जयपुर की बनावट में 9 अंक का विशेष ध्यान रखा गया। 9 वर्ग मील का परकोटा, 9 चौकड़ी, 54 गज, 36 गज, 27 गज और 18 गज के रास्ते जिनका योग भी नौ ही आता है। छोटी चौपड़ पर सरस्वती को विराजमान किया गया इसलिए यहां विद्वानों के निवास स्थान रहे, बड़ी चौपड़ पर महालक्ष्मी विराजित है इसलिए यहां जोहरियों और व्यापारियों को जगह दी गयी, रामगंज चौपड़ पर दुर्गा/काली को स्थापित किया गया इसलिए यहां योद्धाओं के निवास और छावनियां बनायी गयी। जितेन्द्र सिंह ने जयपुर में गलियों के नाम और उनके पीछे की कहानियों पर भी प्रकाश डाला।

उन्होंने बताया कि सवाई जगत सिंह को जब कालसर्प योग की बात बताई गयी तो उन्होंने कुछ दिन पं. शिव नारायण मिश्र को राजगद्दी संभलाकर दान-पुण्य में जुट गए इसलिए इसका नाम मिश्र राजा जी का रास्ता रख दिया गया। ऐसे ही शरणागत चारण कवि की रक्षा के लिए नींदड़ के जोरावर सिंह ने सवाई जयसिंह की सेना से लड़ाई की और बलिदान दिया इसलिए ध्रुव पोल का नाम जोरावर सिंह गेट रख दिया गया। विनोद जोशी ने कहा कि राजा नगर बसाते हैं लेकिन उसे महान जनता ही बनाती है, हम हमारी विरासत से जुड़े और इसे सहेजकर भावी पीढ़ी तक पहुंचाए।  

‘बागी अलबेले’ में चमके फिल्मी सितारे

प्रसिद्ध नाट्य निर्देशक और अभिनेता अतुल कुमार के निर्देशन में मध्यवर्ती में ‘बागी अलबेले’ नाटक का मंचन किया गया। मजबूत निर्देशन के साथ-साथ नाटक में आयशा रज़ा, उज्जवल चोपड़ा, हर्ष खुराना, हर्ष ए. सिंह, शबनम वढ़ेरा सरीखे फिल्मी सितारों ने अपने अभिनय से नाटक को खास बनाया। यह कहानी खुद थिएटर कलाकारों की कहानी है जिसमें कलाकारों की भावनाओं, हास्य, व्यंग्य और आक्रोश को मंच पर साकार किया गया। जोनी और मिनी माखिजा लुधियाना के एक थिएटर ग्रुप के कलाकार होते है। हेमलेट मंचन के बीच ही दर्शकों में से सुखविंदर सिंह जो एक संगठन से जुड़ा होता है उठकर चला जाता है। जोनी को यह बात अखर जाती है।

सुखविंदर मिनी से भी बात कर चुका होता है। इसी बीच सरकार विद्रोही आवाज़ों का दमन करने के लिए कानून लेकर आती है। कलाकारों, पत्रकारों और बुद्धिजीवियों का दमन किया जाता है। सुखविंदर रंगून चला जाता है और अपने समूह के साथ इस कानून के खिलाफ अभियान छेड़ने की तैयारी में जुट जाता है। इसी बीच लुधियाना लौट रहे सरकारी जासूस को वह भूलवश अपनी योजना के विषय में बता देता है। इससे जोनी, मिनी व अन्य कलाकारों की जान पर भी बन जाती है। पुलिस तक पहुंचने से पहले ही जासूस की हत्या कर दी जाती है। अपने साथियों की जान खतरे में देखकर जोन जासूस बनकर सरकारी तंत्र में पैठ जमाता है और अपने साथियों को देश से बाहर निकाल देता है। दो घंटे से भी अधिक समय तक चले इस नाटक में अंत तक दर्शक डटे रहे।

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