जीवन की रिक्तता की कहानी बयां कर गया “खांचे”

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जयपुर। जिंदगी की भागदौड़ में कुछ पल ऐसे थे, जो खाली रह गए, जिन्हें जीना चाहिए था। यही खाली पल बाद में बहुत सालते हैं। कुछ इसी तरह का संदेश देता नजर आया जवाहर कला केंद्र में प्रस्तुत नाटक “खांचे”। जवाहर कला केन्द्र की पाक्षिक नाट्य योजना के अंतर्गत मंगलवार को अरु स्वाति व्यास के निर्देशन में नाटक का मंचन किया गया।

अभिनय गुरुकुल सांस्कृतिक शैक्षणिक सोसायटी की ओर से प्रस्तुत इस नाटक की पूरी कहानी मुख्य किरदार विनायक आचार्य के इर्द-गिर्द बुनी गई है। विनायक एक ऐसा व्यक्ति है जो अपने जीवन को धीर-गंभीर और अनुशासित रूप से में जीना पसंद करता है। इस बीच वह अपने अति अनुशासित स्वभाव के कारण जीवन के उन पलों का आनंद लेने से महरूम हो जाता है, जो उनको जीने के लिए मिले थे।

बचपन, युवा या वृद्ध आयु में वह आनंद से दूर रहता है। पतंगबाजी हो या सितौलिया खेलना या फिर होली के रंग और दोस्तों के साथ मटरगश्ती, विनायक इन सभी से महरूम रहता है। अंत समय में उनके जीवन में एक रिक्त स्थान रह जाता है। इन्हीं रिक्त स्थान को “खांचे” नाम दिया गया है।

इस नाटक की कहानी मूल रूप से रघुनंदन त्रिवेदी की है। इसका नाट्य रूपान्तरण अरु व्यास ने तैयार किया है और नाटक को स्वाति अरु व्यास ने निर्देशित किया है। मुख्य किरदार विनायक के बचपन, युवा और वृद्धावस्था को तीन अलग-अलग कलाकारों ने मंच पर अपने अभिनय से जीवंत किया है। नाटक में लक्ष्मण चौहान, प्रफुल्ल बोराना, हिमांशु सिंघवी, कीर्ति बोराना, स्वाति व्यास समेत अन्य कलाकारों ने अपनी प्रभावी प्रस्तुति पेश की है।

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