जयपुर। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय जयपुर परिसर में प्रबंधन में प्रमाण पत्र कार्यक्रम का समापन हुआ। समापन समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रो. बोध कुमार झा ने कहा कि जीवन में किसी भी प्रकार का यदि बिखराव है तो उसको व्यवस्थित करना ही प्रबंधन होता है, फिर वह चाहे शारीरिक साज साज से लेकर के मानसिक अस्त्त-व्यस्ता का ही पक्ष क्यों ना हो।
अत: हमें शारीरिक, मानसिक, आर्थिक प्रत्येक प्रकार के प्रबंधन की आवश्यकता है। मुख्य अतिथि डॉ. कृष्ण कुमार कुमावत ने कहा कि किसी भी व्यक्ति के पीछे सफल या असफल होने का मुख्य कारण समय का प्रबंधन करना है।
कार्यक्रम की संयोजिका डॉ. रेखा शर्मा ने प्रबंधन पाठ्यक्रम की आवश्यकता और भारतीय प्रबंधन के विस्तार पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वर्तमान में जितनी भी समस्याएं उत्पन्न हो रही है उनका एकमात्र कारण जीवन में प्रबंधन की कमी ही है। भारतीय शास्त्रों का जो प्रबंध है वह न केवल व्यक्ति को बाहरी रूप से अपितु आत्मिक रूप से प्रतिबंधित करता है। डॉ. शर्मा ने कहा कि केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय भारतीय ज्ञान परंपरा में समाहित ज्ञान को अन्वेषित करने में एक नवीन पहल कर रहा है।
ऐसा प्रत्येक विषय जो हम केवल आधुनिक धारा से ही पढ़ते हैं उसे भारतीय संस्कृति के परिपेक्ष में यदि पढ़ा जाए तो निश्चित रूप से वह न केवल शारीरिक अपितु आत्मिक विकास करने वाला होगा और प्रत्येक विषय में यदि भारतीय शिक्षा समाहित होगी तो आने वाली जो पीढ़ी होगी वह भारतीय संस्कारों से जुड़ी होगी। ऐसे उत्तम प्रयासों के लिए उन्होंने विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी द्वारा मार्गदर्शित ऐसे पाठ्यक्रमों के लिए धन्यवाद भी ज्ञापित किया।
वक्ताओं ने रखे सारगर्भित विचार:
तृतीय सत्र में मुख्य वक्ता राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ तिरुपति की सहायक आचार्य डॉ.एस वैष्णवी ने भारतीय शास्त्रों, विशेष रूप से रामायण, महाभारत, चाणक्य नीति, अर्थशास्त्र के अनुसार श्रेष्ठ प्रबंधन के उदाहरणों को छात्रों के समक्ष रखते हुए कहा कि छात्र अपने जीवन में इन शास्त्रों का अध्ययन करके श्रेष्ठ प्रबंधन स्थापित कर सकते हैं।
डॉ. यदु शर्मा ने कहा कि जब तक हम जीवन में आत्म प्रबंधित नहीं होंगे तब तक एक सकारात्मक बदलाव नहीं आ सकेगा। राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ तिरुपति के सहायक आचार्य डॉ सीताराम शर्मा ने भी शिक्षण प्रबंधन के अनेक पक्षों को भावी अध्यापकों को व्यवहार में उतारने के लिए आग्रह किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ नरेश सिंह ने किया।