जयपुर। ‘लुप्तप्राय वाद्य यंत्रों की लयबद्ध मनमोहक धुन, भारत के सांस्कृतिक वैभव की अद्भुक झांकी और और दीपावली का उत्साह।’ जवाहर कला केन्द्र में शुक्रवार को ऐसा ही दृश्य देखने को मिला। मौका रहा 11 दिनों से लोक कलाओं के लालित्य से सराबोर कर रहे लोकरंग महोत्सव के समापन समारोह का।
जहां राष्ट्रीय लोक नृत्य समारोह के अंतर्गत मध्यवर्ती में विभिन्न राज्यों के लोक कलाकारों ने प्रस्तुति दी, वहीं खास तौर पर 50 से अधिक वाद्य यंत्रों की सिम्फनी, चारों दिशाओं से नृत्य करते कलाकारों के एक मंच पर आने से भारत मिलन का जो दृश्य साकार हुआ उसने कला प्रेमियों के दिल पर अमिट छाप छोड़ दी।
मध्यवर्ती से सभी कलाकार शोभा यात्रा निकालते हुए शिल्पग्राम पहुंचे जहां से लोकरंग के झंडे को उतारकर 11 दिवसीय राष्ट्रीय लोकनृत्य समारोह और राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले का विधिवत समापन हुआ। गौरतलब है कि 7 अक्टूबर से शुरु हुए 11 दिवसीय महोत्सव में 25 राज्यों के लगभग 2500 कलाकारों ने मध्यवर्ती के मंच पर भारत की विविध संस्कृति का अद्भुत और आकर्षक दृश्य प्रस्तुत किया। प्रत्येक दिन विभिन्न राज्यों के कलाकार मंच पर पौराणिक कथाओं और लोक संस्कृति को जीवंत करते रहे।
कार्यक्रम की शुरुआत नाथुराम सोलंकी व समूह ने शंख बम नगाड़ा वादन के साथ की। शंख के नाद से प्रथम पूज्य श्री गणेश को मनाते हुए नगाड़ा की ताल पर दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया। इसके बाद राजस्थान की युवा कलाकारों ने चरी नृत्य की प्रस्तुति से पारंपरिक रीतियों का उदाहरण दिया।
सिर पर मटकी रखकर संतुलन का परिचय देते हुए राजस्थानी लोक गीत पर मनोरम प्रस्तुति दी। मध्यप्रदेश के कोरकू जनजाति के कलाकारों ने गदली थापटी नृत्य के अतंर्गत पारंपरिक गदली–सुसुन नृत्य की प्रस्तुति दी, जिसमें पुरुषों ने ढोलक और बाँसुरी की थाप पर सुसुन नृत्य किया, वहीं महिलाओं ने गदली नृत्य में ताल मिलाई। यह नृत्य उनके पर्वों और समारोहों में आनंद व उत्सव का प्रतीक है।
गुजरात के कलाकारों द्वारा तलवार रास प्रस्तुत किया गया जहां नर्तकों ने तलवारों का उपयोग करते हुए देवी दुर्गा को समर्पित पारंपरिक प्रस्तुति दी। राजस्थान की कलाकार रूपा, राखी एवं उनके समूह ने कालबेलिया नृत्य की मनोहर प्रस्तुति दी, जिसमें उन्होंने लय और मुद्राओं की आकर्षक प्रस्तुति दी।इइस नृत्य में उनका पारंपरिक वस्त्र एवं भाव–भंगिमा दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर गई। यह प्रस्तुति राजस्थान की लोकसंस्कृति एवं सांस्कृतिक पहचान की जीवंत अभिव्यक्ति बनी।
लक्षद्वीप के कलाकारों ने उलाक्कामुत्तु नृत्य में शक्ति, संतुलन और लयबद्धता नमूना पेश किया। यह नृत्य सामूहिक उत्सवों, धार्मिक अवसरों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में प्रस्तुत किया जाता है। जम्मू कश्मीर के कलाकारों द्वारा डोगरी नृत्य की मनोरम प्रस्तुति दी गई। एक मिली-जुली संस्कृति का मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते हुए कलाकारों ने शादी-समारोह के हंसी ठिठोली भरे पलों को साकार किया।
राजस्थान की कलाकार ममता देवी व समूह के कलाकारों ने ने मंच पर चकरी नृत्य की प्रस्तुति दी। छत्तीसगढ़ के कलाकारों ने अपनी पारंपरिक मांदरी नृत्य प्रस्तुति से लोकरंग के मंच को उत्सवमय बना दिया। इस लोकनृत्य की जड़ें वहां की आदिवासी संस्कृति में गहराई से बसती हैं। वनांचल क्षेत्र में नवाखाई, आमा जोगनी, दिवाली और अन्य पारंपरिक पर्वों पर किया जाने वाला यह नृत्य देवी-देवताओं के प्रति आस्था और नई फसल के आगमन की खुशी का प्रतीक है।
इसके बाद महाराष्ट्र से आए कलाकारों द्वारा सौंगी मुखवटे लोक नृत्य प्रस्तुत किया गया जिसने दर्शकों को रोमांचित कर दिया। कलाकारों ने बड़े-बड़े मुखौटे लगाकर अपने आराध्य की उपासना के दृश्य साकार किए। मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र से आए कलाकारों ने पारंपरिक कांगड़ा नृत्य की प्रस्तुति में लोक विधा गायन और नृत्य दोनों का सुंदर संगम देखने को मिला। यह नृत्य विभिन्न त्यौहारों पर उत्सवों के मौकों पर किया जाता है जिससे सामाजिक मेलजोल भी बढ़ता है।
गुजरात के कलाकारों ने अफ्रीकी भाषा के गीत पर सिद्दी धमाल लोक नृत्य से दर्शकों के लिए रोमांचक अनुभव कराया। राजस्थान के सहरिया नृत्य में जनजातीय जीवन की सहजता और सामूहिक आनंद को दर्शाया गया। शाम की आखिरी प्रस्तुति में राजस्थानी कलाकार अशोक शर्मा व उनके समूह ने मयूर नृत्य की मनोरम प्रस्तुति दी। मयूर का रूप धारण किए कलाकारों ने वर्षा ऋतु के आगमन की खुशियां मंच पर बिखेरी और मयूर बने कान्हा ने सभी का मन मोह लिया।
कलाकारों ने म्यूजिक सिम्फनी में 50 से अधिक वाद्य यंत्रों पर छेड़ी तान
इन सभी प्रस्तुतियों के बाद शुरु हुई वह अद्भुत सिम्फनी जिसका सभी को इंतज़ार था। रबाब, शेरपा, तविल, मटका, बीन, नगाड़ा, मोरचंग, ताल कचहरी समेत 50 से अधिक पारंपरिक वाद्य यंत्रों ने एक साथ धुन छेड़कर दर्शकों को रंगों और संगीत से सराबोर कर दिया। साथ ही भारत मिलन यानी कि भारत की सभी प्रमुख लोक नृत्य शैलियों का एक साथ समागम मंच पर देखने को मिला। यह दृश्य था जेकेके के कैनवास पर उकरे भारत का जहां सभी नृत्य कलाओं के कलाकारों ने मध्यवर्ती को दीपमाला से रोशन किया, चारों प्रवेश द्वारों से अलग-अलग राज्यों के कलाकार मंच पर पहुंचे और संयुक्त रूप से भारत मिलन ग्रैंड फिनाले सहित म्यूजिक सिम्फनी की मनोरम छटा बिखेरते हुए 28वें लोकरंग महोत्सव को विदा किया।
कहीं भांगड़ा के कलाकार तो कहीं गैर के कलाकार, कहीं दक्षिण भारतीय के लोक कलाकार तो कहीं उत्तर पूर्व के कलाकार एक ही प्रस्तुति में एक साथ थिरकते दिखे। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, गुजरात, झारखंड, जम्मू और कश्मीर, उत्तराखंड, नागालैंड, मध्यप्रदेश के कलाकार इस प्रस्तुति में शामिल हुए। इसके बाद कलाकारों की शोभा यात्रा शिल्पग्राम में पहुंची और लोकरंग का समापन हुआ।