राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान को मिला 36वां देहदान: विद्यार्थियों को मिलेगा अध्ययन और शोध का लाभ

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National Institute of Ayurveda receives 36th body donation
National Institute of Ayurveda receives 36th body donation

जयपुर। जोरावर सिंह गेट स्थित राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान (एनआईए) को एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त हुई है। संस्थान को हाल ही में 36वां देहदान प्राप्त हुआ। यह देहदान शहर के समाजसेवी निर्मल पिपाड़ा ने अपनी पत्नी अरुणा जैन (आयु 67 वर्ष) का किया। उल्लेखनीय है कि यह देहदान जैन सोशल ग्रुप (जेएसजी) सेंट्रल संस्थान की प्रेरणा और सहयोग से सम्पन्न हुआ तथा समूह का यह 300वां देहदान भी रहा।

देहदान को लेकर आयोजित विशेष कार्यक्रम में संस्थान के कुलपति प्रो. संजीव शर्मा ने कहा कि देहदान करना किसी भी व्यक्ति के लिए अत्यंत साहसिक और प्रेरणादायी कदम है। यह निर्णय आसान नहीं होता, लेकिन समाज और आने वाली पीढ़ियों के लिए इसका महत्व अतुलनीय है। उन्होंने कहा कि मानव शरीर को समझे बिना चिकित्सा अधूरी है और चिकित्सा शिक्षा में देहदान की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। विद्यार्थियों को देहदान के माध्यम से शरीर की अंग प्रणाली, संरचना और कार्यप्रणाली का गहन ज्ञान प्राप्त होता है। इसका सीधा लाभ सर्जरी और शोध कार्यों में होता है।

प्रो. शर्मा ने बताया कि राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान ने देहदानों से प्राप्त शरीरों के अध्ययन के लिए विशेष संग्राहलय एवं अत्याधुनिक प्रयोगशाला (लैब) विकसित की है। यहां विद्यार्थी और शोधकर्ता व्यावहारिक शिक्षा प्राप्त करते हैं। इस प्रयोगशाला को देखने के लिए देश-विदेश से छात्र एवं शोधार्थी आते हैं। यह सुविधा संस्थान की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है और आयुर्वेद शिक्षा को आधुनिक शोध दृष्टिकोण से जोड़ने का कार्य करती है।

देहदान उपरांत आयोजित कार्यक्रम में छात्रों और अधिकारियों ने प्रतिज्ञा ली कि वे इस महान कार्य का सदैव सम्मान करेंगे और देहदान के प्रति समाज में जागरूकता फैलाएँगे। संस्थान की परंपरा के अनुसार, स्व.अरुणा जैन की स्मृति में बकुल पौधा रोपण भी किया गया। संस्थान के धन्वंतरि उपवन में संचालित महर्षि दधिची देहदान वाटिका में प्रत्येक देहदान की स्मृति स्वरूप पौधारोपण किया जाता है, जिसकी नियमित देखभाल भी की जाती है।

कार्यक्रम में कुलपति ने कहा कि आम तौर पर समाज में देहदान के मामले कम सामने आते हैं, लेकिन समाजसेवी संगठनों और जागरूकता अभियानों से लोगों में इसके प्रति सकारात्मक सोच विकसित हो रही है। जैन सोशल ग्रुप के सहयोग से यह 300वां देहदान होना न केवल संस्थान बल्कि पूरे समाज के लिए गर्व की बात है।

कुलपति ने कहा कि पिपाड़ा का यह निर्णय विद्यार्थियों के अध्ययन और अनुसंधान के लिए अमूल्य योगदान है। यह कदम समाज को भी प्रेरित करेगा कि अधिक से अधिक लोग देहदान जैसे महादान की ओर आगे आएं।

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