जयपुर। देवोत्थान एकादशी को भगवान श्री हरि विष्णु अपनी चार माह की योग निद्रा से जाग गए और उनके जागरण के प्रभाव से चातुर्मास में ठप पड़े मांगलिक कार्यों के पुन: आरंभ होने का मार्ग प्रशस्त हो गया। तिलक, गृह प्रवेश, मुंडन, यज्ञोपवीत आदि मांगलिक आयोजन भी आरंभ हो जाएंगे। लेकिन विवाह के लड्डू खाने के लिए लोगों को 18 दिन और प्रतीक्षा करनी होगी। इस बार श्रीहरि के जागरण के 21 दिनों बाद ही 22 नवंबर से विवाह के शुभ मुहूर्त मिलना आरंभ होंगे। इस वर्ष नवंबर और दिसंबर को मिलाकर मात्र आठ दिन ही विवाह के शुभ मुहूर्त उपलब्ध रहेंगे।
ज्योतिषाचार्य डॉ. महेन्द्र मिश्रा ने बताया कि इस वर्ष नवंबर-दिसंबर में केवल आठ दिन ही विवाह के लिए शुभ माने जा रहे हैं। नवंबर में छह दिन 22, 23, 24, 25, 29 और 30 नवंबर को विवाह के लिए लग्न मुहूर्त प्राप्त हैं। वहीं दिसंबर में मात्र दो दिन, चार और पांच दिसंबर को, विवाह के शुभ मुहूर्त मिल रहे हैं।
पांच दिसंबर के बाद छह दिसंबर को मृत्यु बाण योग रहेगा, जिसके कारण इस दिन विवाह योग्य नहीं है। सात और आठ दिसंबर को कोई नक्षत्र नहीं मिल रहा, इसलिए ये दोनों दिन भी विवाह के लिए उपयुक्त नहीं हैं। नौ दिसंबर से शुक्र ग्रह वार्धक्य अवस्था में प्रवेश करेगा। 11 दिसंबर को शुक्र अस्त हो जाएगा और इसके बाद लग्न मुहूर्त समाप्त हो जाएंगे।
16 दिसंबर से खरमास आरंभ होगा। इस बार खरमास आरंभ होने के 11 दिन पूर्व ही सभी लग्न समाप्त हो जाएंगे। खरमास 14 जनवरी 2026 को समाप्त होगा। इसके बाद मकर संक्रांति का पुण्यकाल आरंभ होगा, लेकिन उस समय भी शुक्र ग्रह अस्त रहने के कारण पूरे जनवरी माह में कोई विवाह योग्य लग्न उपलब्ध नहीं रहेगा।
विवाह का अगला दौर चार फरवरी से आरंभ होगा। फरवरी में 14 दिन और मार्च में छह दिन विवाह के लिए शुभ लग्न प्राप्त होंगे। फरवरी में शुभ विवाह तिथियां हैं — 4, 5, 6, 10, 11, 12, 13, 14, 19, 20, 21, 24, 25 और 26 फरवरी। वहीं मार्च में छह दिन — 9, 10, 11, 12, 13 और 14 मार्च — को विवाह के शुभ मुहूर्त प्राप्त होंगे। 15 मार्च से पुन: खरमास लग जाएगा।
विवाह के लिए लग्न शुद्धि अत्यंत महत्वपूर्ण
ज्योतिषाचार्य पंडित सुरेन्द्र गौड़ ने बताया कि इस बार कुछ विवाह लग्न से इतर दिनों में भी रखे गए हैं, जो उचित नहीं हैं। उन्होंने कहा कि कोई भी मुहूर्त देखते समय तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण का विचार अवश्य किया जाता है, किंतु विवाह मुहूर्त में लग्न शुद्धि अत्यंत आवश्यक होती है। लग्न प्रत्येक दो घंटे में बदलते हैं, और यदि लग्न अपने शुद्ध भाव या स्थान पर नहीं हैं तो उसे विवाह योग्य नहीं माना जाता।
कुछ लोग पंचांग का त्रुटिपूर्ण अवलोकन कर केवल तिथि, करण, वार, नक्षत्र और योग देखकर ही शुभ तिथि निर्धारित कर देते हैं, जबकि विवाह के लिए लग्न शुद्धि अत्यंत महत्वपूर्ण तथ्य है। इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए, अन्यथा इसका नकारात्मक प्रभाव वैवाहिक जीवन पर पड़ सकता है।




















