सामूहिक पुंसवन संस्कार में शहर भर से आई गर्भवती महिलाओं ने श्रद्धा उत्सव के साथ भाग लिया

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Pregnant women from across the city participated in the mass Punsavan Sanskar with devotion.
Pregnant women from across the city participated in the mass Punsavan Sanskar with devotion.

जयपुर। आराध्य देव श्री गोविंद देवजी मंदिर प्रांगण में रविवार का दिन आध्यात्मिक वातावरण, मंत्रोच्चार और सांस्कृतिक संवेदना से सराबोर रहा। गर्भस्थ शिशु के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास के उद्देश्य से आयोजित सामूहिक पुंसवन संस्कार में शहरभर से आई गर्भवती महिलाओं ने श्रद्धा और उत्साह के साथ भाग लिया। मंदिर महंत आंजन कुमार गोस्वामी के सान्निध्य में सम्पन्न इस संस्कार में एक दर्जन से अधिक महिलाओं ने गर्भोत्सव संस्कार कराया, जहाँ विधि-विधान के बीच मातृत्व की पावन यात्रा को दिव्य स्पर्श मिला।

कार्यक्रम का शुभारंभ मंदिर के सेवाधिकारी मानस गोस्वामी द्वारा देव माता गायत्री, ठाकुर श्री राधा गोविंद देवजी और गुरु सत्ता के समक्ष दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। उन्होंने संबोधन में बताया कि भारतीय संस्कृति में वर्णित सोलह संस्कारों की परंपरा अत्यंत गौरवशाली रही है, जो मानव जीवन के सर्वांगीण निर्माण का आधार मानी जाती है। किंतु आधुनिक जीवनशैली की भागदौड़ में लोग इन संस्कारों से दूर होते जा रहे हैं। इसीलिए मंदिर प्रबंधन ने निश्चय किया है कि समय–समय पर इन जीवनोपयोगी संस्कारों का आयोजन कर समाज में सांस्कृतिक चेतना को पुनर्जीवित किया जाएगा।

कार्यक्रम में युग तीर्थ शांतिकुंज, हरिद्वार से संबद्ध गायत्री शक्तिपीठ ब्रह्मपुरी के दिनेश आचार्य ने पुंसवन संस्कार का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि गर्भवती स्त्री के खान-पान, विचार और भावनाओं का सीधा प्रभाव गर्भस्थ शिशु के व्यक्तित्व पर पड़ता है। यही कारण है कि भारतीय परंपरा गर्भकाल को ही संस्कारित और गुणात्मक संतति निर्माण का प्रथम चरण मानती है।

इस अवसर पर डॉ. अजय भारद्वाज ने हुए कहा कि गर्भावस्था मात्र शारीरिक स्थिति नहीं, बल्कि सृष्टि के नए तत्व के निर्माण का संवेदनशील काल है। गर्भवती महिलाओं को पूरे गर्भकाल में यह सकारात्मक भावना रखनी चाहिए कि उनके गर्भ में एक श्रेष्ठ, प्रकाशमान आत्मा पल रही है, जो संस्कारित वातावरण से उर्जित होती है।

संस्कार के दौरान महिलाओं को वट वृक्ष की जटा, पीपल की कोपल और गिलोय से तैयार विशेष औषधि सुंघाई गई। इन दिव्य वनस्पतियों के गुणों का चिंतन कराया गया, जिससे मन और शरीर दोनों में सकारात्मक ऊर्जा का संचार हुआ। गर्भवती मातृ शक्तियों ने अक्षत और पुष्पों से गर्भ का पूजन किया, वहीं उनके पति और परिजनों ने गर्भस्थ शिशु को श्रेष्ठ वातावरण प्रदान करने का संकल्प लिया। पूरे वातावरण में श्रद्धा, भाव-विभोरता और आनंद की छटा बिखरी रही।

समारोह के अंत में उपस्थित श्रद्धालुओं ने पुष्प वर्षा कर भावी संतति के मंगलमय जीवन की कामना की। गर्भस्थ शिशु के सर्वांगीण विकास के लिए गाय के दूध से बनी खीर की विशेष आहुति अर्पित की गई। गायत्री परिवार, जयपुर द्वारा “आओ गढ़ें संस्कारवान पीढ़ी” का संपूर्ण किट सभी गर्भवती माताओं को उपहार स्वरूप प्रदान किया गया।

इस अवसर पर आयोजित पंच कुंडीय गायत्री महायज्ञ में सैकड़ों श्रद्धालुओं ने गायत्री एवं महामृत्युंजय मंत्र के साथ आहुतियां प्रदान की । एक बुराई छोड़ने और एक अच्छाई ग्रहण करने के भाव के साथ महा पूर्णाहुति की। आगामी रविवार 30 नवंबर को भी सुबह 9 से 11 बजे तक निशुल्क पंच कुंडीय गायत्री महायज्ञ का आयोजन किया जाएगा।

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