राजस्थान लंबे समय से बाल विवाह की कुरीति के लिए जाना जाता रहा है। सामाजिक परंपराओं और ग्रामीण जीवनशैली के कारण यहाँ बालिकाओं की शादी उनकी बाल्यावस्था में ही कर दी जाती थी। बाल विवाह केवल बच्चों के अधिकारों का हनन नहीं करता, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और संपूर्ण सामाजिक विकास को भी प्रभावित करता है। ऐसे में यह अत्यंत उत्साहजनक है कि हालिया रिपोर्टों में राजस्थान में बाल विवाह की दर में ऐतिहासिक गिरावट दर्ज हुई है। 2022 से 2024 के बीच लड़कों में 67% और लड़कियों में 66% की कमी देखने को मिली।
यह उपलब्धि संयोग नहीं, बल्कि लंबे समय से चल रही योजनाओं और जागरूकता अभियानों का परिणाम है। राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही शिक्षा और महिला सशक्तिकरण की योजनाओं ने इस दिशा में ठोस प्रभाव डाला है। पंचायत स्तर पर निगरानी, स्कूलों में शिक्षा को प्रोत्साहन, और समुदायों में सामाजिक संवाद ने इस बदलाव को संभव बनाया है। “बाल विवाह मुक्त राजस्थान” अभियान ने समाज में इस दिशा में चेतना और सहयोग का संदेश फैलाया है।
हालांकि, चुनौतियाँ अब भी विद्यमान हैं। ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में गरीबी, अशिक्षा और परंपरागत सोच बाल विवाह को बढ़ावा देती है। कई बार परिवार आर्थिक या सामाजिक दबाव के चलते बालिकाओं की शादी जल्दी कर देते हैं। इसके अलावा, स्वास्थ्य, वेलनेस और सुरक्षा जैसी चिंताएँ भी महिलाओं को प्रभावित करती हैं। इन चुनौतियों से निपटना केवल सरकारी नीतियों से संभव नहीं है; समाज की मानसिकता में बदलाव भी उतना ही आवश्यक है।
राजस्थान की यह उपलब्धि पूरे देश के लिए प्रेरक मॉडल है। यह दिखाती है कि शिक्षा, जागरूकता और कानूनी संरक्षण के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों को बदलना संभव है। भविष्य में इसे स्थायी बनाने के लिए आवश्यक है कि रोजगार और महिला सशक्तिकरण की योजनाओं को और मजबूत किया जाए, बाल विवाह के खिलाफ कानूनी प्रवर्तन को कड़ा किया जाए और समुदाय स्तर पर सक्रिय निगरानी जारी रखी जाए।
बाल विवाह मुक्त राजस्थान न केवल बालिकाओं के जीवन को सुरक्षित और उज्ज्वल बनाएगा, बल्कि राज्य के समग्र विकास और महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी मील का पत्थर साबित होगा। यह मॉडल पूरे भारत के लिए एक सकारात्मक संदेश है कि सामाजिक परिवर्तन कठिन जरूर है, लेकिन असंभव नहीं।