रामलला प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव: अयोध्या में राम मंदिर- लक्ष्य नहीं, पड़ाव है

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जयपुर। आखिरकार करीब 500 वर्षों के लम्बे इंतजार के बाद वो घड़ी आ ही गई जब करोड़ों हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक रामलला टूटे-फूटे टैंट के स्थान पर एक भव्य मंदिर में विराजमान होंगे। जब गुलामी और बर्बरता के प्रतीक बाबरी खंडहरों के स्थान पर प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव होगा। गौरतलब है कि 30 अक्टूबर 1990 को लाखों राम भक्त छिपते-छिपाते पुलिस से बचते हुए अयोध्या पहुंचे थे और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह की इस अहंकारी घोषणा कि “अयोध्या में कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता” को झूठा साबित कर दिया था।

आज मोदी-योगी युग में उसी सरयू नदी पर लाखों दीये अपने राम भक्तों के स्वागत के लिए जगमगा रहे हैं। वही पुलिसकर्मी संतों,महात्माओं और राम भक्तों को कोई असुविधा न हो, इस व्यवस्था में लगे हैं। उस समय सरकारी हेलीकॉप्टर से निगरानी की गई थी कि कहीं कोई राम भक्त तो नहीं छिपा है, जबकि अब वहीं उसी सरकारी हेलीकॉप्टर से रामभक्तों पर पुष्प वर्षा होने वाली है।

33 वर्ष पूर्व का वह दृश्य आज भी मानस पटल पर अंकित है जब 72 स्वयंसेवक ट्रेन से दिल्ली से लखनऊ होते हुए गोंडा गए थे । जहां से उन्हे गांव-गांव होकर पैदल ही पुलिस से बचते हुए अयोध्या पहुंचना था। 109 कि.मी. की 8 दिन की पैदल यात्रा में 70 साथी कहीं न कहीं गिरफ्तार हो गए और केवल 2 स्वयंसेवक किसी तरह सरयू नदी पार कर अयोध्या पहुंचे। इस पदयात्रा के वैसे तो अनेकों खट्टे-मीठे अनुभव हैं लेकिन एक घटना जो कभी नहीं भूलती और जो बताती है कि यदि ईश्वर का कार्य करेंगे, तो ईश्वर हमारा कार्य करते हैं। हुआ यूं कि पुलिस से बचते-बचाते 72 स्वयंसेवकों में से केवल 2 अयोध्या नगरी के किनारे एक गाय भैंस के तबेले में रात्रि किसी तरह पहुंचे थे।

अब चुनौती थी सरयू नदी को पार करने की, क्योंकि पुल पर चारों ओर पुलिस का सख्त पहरा था। एक मल्लाह किसी तरह नाव में ले जाने को तैयार हुआ। लेकिन साथ ही उसने चेतावनी भी दे डाली कि यदि पुल पर से पुलिस ने देख लिया तो वहीं से गोली भी चल सकती है और ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है। तभी उस तबेले का मालिक यादव आया और उसने आश्वासन दिया कि वह सभी को अयोध्या पहुंचा देगा और इसकी व्यवस्था करके वह जल्दी आता है।

यह कह कर वह तो चला गया, लेकिन वह समझ गए कि वो अयोध्या नहीं बल्कि जेल पहुंचाने की व्यवस्था करने गया है। कुछ उपाय नहीं सूझा तो सभी वहां से निकल लिये सरयू नदी की ओर जहां चारों ओर केवल दल-दल था और नदी पार करने की कोई संभावना नहीं थी। अब वह पूरी तरह से बेबस और असहाय हो चुके थे। कोई रास्ता नहीं बचा था। खैर प्रभु श्रीराम और हनुमान जी को याद करते हुए सभी साथियों ने कहा कि अब केवल एक अंतिम हथियार बचा है- या तो अयोध्या पहुंच जाएंगे या फिर जेल या फिर स्वर्ग। इसके बाद दो स्वयंसेवक सीधे पुल पर चढ़ गए, जहां चारों ओर से पुलिस ने दोनों को घेर लिया और पूछताछ शुरु कर दी।

इनमें से एक ने बताया कि वह पत्रकार है और दिल्ली से रिपोर्टिंग करने आए है औऱ दूसरा उसका सहायक है। पुलिस ने पहचान पत्र मांगा तो उन्होंने कहा कि वो तो रास्ते में ही खो गया है। इतनी देर में लाल-बत्ती लगी चार-पांच पुलिस जीप आ गई और कुछ वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी आ गए। जहां एक अधिकारी को यही परिचय दिया तो उसने दोनों को जीप में बैठने का आदेश दिया और कहा कि आपको वह अयोध्या लेकर जाएंगे और वहीं पूछताछ करेंगे। क्योंकि यहां हर ओर कर्फ्यू लगा है। यह कहते हुए उनके चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कुराहट दौड़ रही थी जो बहुत कुछ कह रही थी।

तात्कालिक अर्थ तो उस मुस्कुराहट’’ कार्य ही था कि हिरण स्वयं शेर के मुंह में आ रहा है यानि रामभक्त स्वयं को पुलिस के समक्ष गिरफ्तार करा रहा है। उनके पास कोई उपाय नहीं था, सो वह चुपचाप पुलिस वैन में बैठे कर सरयू नदी पार करते हुए अयोध्या पहुंच गए। वहां पहुंच कर उस पुलिस अधिकारी ने उन्हे पुलिस स्टेशन के बाहर रोक दिया और कहा कि वह पांच मिनट में आ रहा है तब तक यहीं प्रतीक्षा करना। लेकिन बाहर ना जाना क्योंकि कर्फ्यू लगा है। यह कहकर वह स्वंय अन्दर चला गया। उसका संदेश स्पष्ट था जो उनकी समझ में भी आ गया था और कुछ समय पूर्व उसकी छुपी हुई मुस्कुराहट का रहस्य भी समझ आ गया था। वह तुरन्त वहां से निकल लिये और गली-गली होते हुए दिगम्बर अखाड़ा पहुँच गए। जहां 3-4 दिन रहकर 30 अक्तूबर को रामजन्मभूमि पर पहुंचे।

वहां महंत नृत्यगोपाल दास, परमहंस रामचन्द्र महाराज जैसे सन्तों के साथ छोटी छावनी, दिगम्बर अखाड़ा आदि स्थानों में रहने की व्यवस्था थी और तय किया गया था कि 30 अक्टूबर को प्रातः 8 बजे घर-घर से, हर गली-मोहल्ले से, मंदिर-अखाड़ों से एक साथ सभी रामभक्त बाबरी खंडहरों की ओर अशोक सिंघल के नेतृत्व में प्रस्थान करेंगे। सरकार को और पूरे देश को लग रहा था कि राम मंदिर आंदोलन विफल हो गया है और कुछ भी बड़ी घटना नहीं होगी। लेकिन जैसे ही घड़ी ने आठ बजाए मानो पूरे अयोध्या में जन-सैलाब आ गया।

चारों ओर से संत महात्मा और रामभक्तों का रैला निकल पड़ा। आसमान गूंज रहा था, जय श्री राम के उद्घोष से, नारे लग रहे थे-“बच्चा-बच्चा राम का, जन्मभूमि के काम का”“सौगन्ध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे”“3 नहीं तो 30 हजार, नहीं रहेगी कोई मजार”“जिस हिन्दू का खून न खौले, खून नहीं वो पानी है”लेकिन रामभक्तों के इन नारों के बीच शीघ्र ही आने लगी गोलियों की गूंज, लाठियां चलने की आवाजें, चीख-पुकार। दिखने लगे लाशों के ढेर। करीब 11 बजे खून से लथपथ अशोक सिंघल को पुलिस वैन में बैठा कर होस्पीटल ले जाया गया और तभी समाचार आया कि कलकत्ता से आए दो कोठारी बन्धु, जो कल तक हमारे साथ ही रह रहे थे, बाबरी खंडहरों के गुम्बद पर चढ़ गए और भगवा पताका फहरा दिया। चारों ओर नाच-गाने और जीत के उद्घोष होने लगे । लेकिन बौखलाई हुई सरकार के आदेश के कारण पुलिस बर्बरता भी अपना रंग दिखा रही थी।

बहुत से घायल राम भक्त अधमरी अवस्था में थे तो अनेकों अपनी जान भी गंवा चुके थे। जिनकी तैरती लाशें उन्होंने अगले दिन सरयू नदी में देखी और शाम तक उपरोक्त कोठारी बंधुओं को भी समाजवादी पार्टी सरकार ने मौत के घाट उतार दिया था। खैर समय ने करवट ली है। भाजपा की कल्याण सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी। खंडहर ढह गए,लम्बी कोर्ट की प्रक्रिया के बाद अब मंदिर निर्माण का प्रथम चरण पूरा हो रहा है। ये वास्तव में जीत है धर्म की, संगठित शक्ति की, जागृत हिन्दू समाज की, मानवता और मर्यादा की। लेकिन ये लम्बी यात्रा का एक पड़ाव मात्र है, लक्ष्य नहीं।

अभी तो अनेकों संघर्षों और बलिदानों के बाद केवल एक मंजिल तय हुई है। लक्ष्य तो अभी कोसों दूर है। ‘संघे शक्ति कलियुगे’ को ध्यान में रखते हुए और अधिक मजबूती के साथ अपने पथ पर आगे बढ़ना है। अनगिनत बाधाएं पहले भी आई थी, आगे भी आएंगी। लेकिन उत्साह और उमंग के वेग को बनाए रखते हुए कंटकाकीर्ण मार्ग पर यदि हम बढ़ते रहे तो स्वंय ईश्वर भी हमारा साथ देंगे। ये दृढ़ विश्वास मन में रखना होगा। हम सभी उन भाग्यशाली रामभक्तों में से है जो 1990 में विपरीत परिस्थितियों में अयोध्या कार-सेवा के लिए पहुंचे थे और अब अनुकूल परिस्थितियों में भी प्राण प्रतिष्ठा समारोह में सम्मिलित होकर चिर-प्रतिक्षित क्षणों के साक्षी बनेंगे।

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