एमएसएमई को भुगतान से संबंधित धारा 43 बी बनी व्यापारियों के गले की फाँस

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Section 43B relating to payments to MSMEs has become a noose around traders
Section 43B relating to payments to MSMEs has become a noose around traders

जयपुर। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले साल अपने बजट अभिभाषण में आयकर धारा 43 बी की घोषणा की थी। इसमें एमएसएमई से खरीद के बाद उसका भुगतान 45 दिन में करना अनिवार्य है, यदि कोई एग्रीमेंट नहीं है तो 15 दिन में भुगतान करना पड़ेगा अन्यथा बकाया भुगतान की राशि आपकी आय में जोड़ दी जाएगी । यह प्रावधान 1 अप्रैल 2023 से लागू किया गया था, लेकिन अब यह प्रावधान व्यापारियों के लिए मुसीबत का कारण बन गया है। जिसकी वजह से बडे खरीदार एमएसएमई से माल खरीदने से कतरा रहे हैं।

फोर्टी अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल का कहना है की इस प्रावधान के पीछे सरकार का उद्देश्य एमएसएमई के हितों की रक्षा करना है, लेकिन वर्तमान में इसका विपरीत असर पड़ रहा है। इससे खरीदार बड़ी कंपनियां माल खरीदने के लिए भी लार्ज स्केल कंपनियों की ओर रुख कर रही हैं। इससे इस प्रावधान की मूल भावना ही समाप्त हो जाती है। इसलिए इस प्रावधान में संशोधन की आवश्यकता है।

फोर्टी टैक्‍स कमेटी के चेयरमैन डॉ अभिषेक शर्मा का कहना है कि
इन नये प्रावधानों के अनुसार आप 31 मार्च को केवल उन्हीं लेनदारों की राशि बकाया रख सकते है जिन्हें सप्लाई किए 45/15 दिन से अधिक समय नहीं हुआ हो लेकिन ये व्‍यवहारिक नहीं है क्योंकि बहुत सी इकाइयां ऐसी हैं जहाँ उत्पाद की प्रकृति ही ऐसी है जिसमे खरीदार और आपूर्तिकर्ता के मध्य क्रेडिट पीरियड 45 दिन से ज़्यादा है । अतः आयकर अधिनियम की धारा 43 बी में उन व्यापारियों को राहत दी जानी चाहिए जो आपसी सहमति से क्रेडिट अवधि को 45/15 दिन से बढ़ाना चाहते है, अन्यथा एमएसएमई के स्थान पर ख़रीदार बड़ी इकाइयों को ज्यादा तवज्जो देंगे एवं केन्द्र सरकार का इस प्रावधान को लागू करने का मूल उद्देश्य पूरा नहीं हो पायेगा !

क्या है प्रावधान- यदि किसी व्यापारी ने एमएसएमई से 1 करोड़ का माल खरीदा। इसके बाद उसने एमएसएमई को 45 दिन के भीतर 60 लाख का भुगतान कर दिया ,लेकिन वित्तीय वर्ष की समाप्ति यानी 31 मार्च तक भी 40 लाख की राशि का भुगतान 45 दिन के बाद भी बकाया है तो इस 40 लाख की राशि को कर की गणना करते समय वापस आय में जोड़ दिया जायेगा । अपनी सामान्य आय के अलावा खरीदार व्यापारी को इस पर भी टैक्स देना पड़ेगा ।

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