जयपुर। अपने सितार की मधुर झनकार से देश दुनिया में नाम कमाने वाले कोलकाता के पं. देबाजीत चक्रवर्ती और कहरवा फ्यूजन रचना के प्रणेता तबला वादक डॉ. विजय सिद्ध ने मंगलवार को राजस्थान यूनिवर्सिटी परिसर में अपने फन का प्रदर्शन किया। दोनों कलाकारों का ये कार्यक्रम दोपहर 12 बजे से यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ म्यूज़िक के ऑडिटोरियम में आयोजित किया गया।
‘सितार रिसाइटल’ नामक ये कार्यक्रम भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की नॉर्थ जोनल इकाई की ओर से यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान के सहयोग से परिषद की ‘होरीजोन सीरीज़’ के तहत आयोजित किया गया।
सुर, लय और ताल के बेहतरीन समन्वय से सराबोर इस कार्यक्रम में जहां सितार वादक देबाजीत चक्रवर्ती ने परिवेश में सुरों की मिठास घोली वहीं तबला वादक डॉ. विजय सिद्ध ने तीन ताल और रूपक तालों के जरिए सुरों में लय, ताल का समावेश कर प्रस्तुति को और भी आकर्षक बना दिया।
देबाजीत चक्रवर्ती ने राग गौड़ मल्हार और मिश्र काफी को अपनी प्रस्तुति का माध्यम बनाया। राग गौड़ मल्हार के दौरान देबाजीत ने सुरों की वर्षा का माहौल बनाया जबकि मिश्र काफी राग के दौरान संगीत प्रेमियों को उनके सुरों में लोक संगीत की चंचलता महसूस हुई। राग मिश्र काफी का लोक संगीत से काफी से घनिष्ठ संबंध है और अनेकों लोक गीतों में इसके सुरों की चंचल और शोख तासीर सहज ही महसूस की जा सकती है।
प्रस्तुति के दौरान विजय सिद्ध ने तीन ताल और रूपक तालों में अनेक प्रकार की लय, उन पर चलन और लय बांट का कुशलता से प्रदर्शन किया। तबले की स्पष्ट ‘चांट’ ताल की एक एक मात्रा को सहज ही जीवंत कर रही थी।
इससे पूर्व कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जाने-माने चित्रकार पद्मश्री तिलक गिताई ने दोनों कलाकारों का और म्यूज़िक डिपार्टमेंट की हैड डॉ. वंदना कला ने गिताई का अभिनंदन किया।