जयपुर। स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) फर्जी डिग्री और सर्टिफिकेट जारी करने के मामले में गिरफ्तार गैंग के सदस्यों से लगातार पूछताछ कर रही है। पूछताछ में सामने कि गैंग के सदस्य अब तक करीब 200 से अधिक लोगों को सरकारी नौकरी लगा चुके है। लोगों को जाल में फंसाने के लिए आरोपी सोशल मीडिया पर विडियों बनाकर डालते थे।
डीआईजी परिस देशमुख ने बताया कि गैंग के सदस्य फर्जी डिग्री, स्पोट्र्स सर्टिफिकेट, फर्जी मेडल और बैक डेट में एडमिशन दिलाने का काम करते थे। मामले में सुभाष पूनिया (52) निवासी बेरासर घुमाना, राजगढ़ (चूरू), उसके बेटे परमजीत हाल पीटीआई राजकीय उच्च माध्यमिक स्कूल बसेड़ी (धौलपुर), प्रदीप शर्मा निवासी सरदार शहर चूरू को गिरफ्तार किया गया है। पूछताछ के बाद बीकानेर सीबीईओ ऑफिस में यूडीसी मनदीप सांगवान, उच्च माध्यमिक स्कूल देशनोक (बीकानेर) में यूडीसी जगदीश और फर्जी डिग्री प्रिंट करने वाले राकेश कुमार निवासी सरदारशहर (चूरू) को भी गिरफ्तार किया गया। पकड़े गए सभी 6 आरोपी 16 अप्रैल तक रिमांड पर है। गिरोह में शामिल 20 सदस्यों को एसओजी टीम ने चिह्नित किया है, जिनको पकड़ने के लिए दबिश दी जा रही है।
पूछताछ में सामने आया है कि प्रदेश में यह गैंग करीब 12 साल से सक्रिय है। फर्जी डिग्री गिरोह में बड़ी संख्या में सदस्य जुड़े हुए हैं। कई यूनिवर्सिटी में काम करने वाले लोगों के साथ ही सरकारी नौकरी में लगे लोग भी गिरोह से जुड़े हैं। करोड़ों रुपए वसूलकर गिरोह अभी तक 200 से अधिक लोगों को फर्जी डिग्री, मेडल और सर्टिफिकेट दिलाकर सरकारी नौकरी लगवा चुका है।
आरोपी सुभाष पूनिया पहले चूरू जिले के राजगढ़ में स्थित ओपीजेएस यूनिवर्सिटी में कार्यरत था। इसके चलते यूनिवर्सिटी में उसकी अच्छी जान-पहचान थी। जॉब पर रहने के दौरान कुछ लोगों को उसने फर्जी डिग्री बनवाकर दी। करीब 10 साल पहले जॉब छोड़ने के बाद वह फर्जी डिग्री बनवाकर देने लग गया। उसके घर पर तलाशी में 8 विश्वविद्यालयों की 70 डिग्रियां बरामद की गई।
यूडीसी मनदीप सांगवान और जगदीश ने लोगों को फंसाने के लिए यूट्यूब पर चैनल बना लिए थे। चैनल के जरिए वह कॉम्पिटिशन एग्जाम को लेकर अपने वीडियो जारी करते थे। वीडियो में कॉम्पिटिशन एग्जाम की तैयारी से लेकर जॉब लगने में आने वाली परेशानियों को बताते थे। परेशानी दूर करने के लिए दिए गए मोबाइल नंबर पर कॉन्टैक्ट करने की सलाह दी जाती थी। यूट्यूब चैनलों पर वीडियो देखकर अभ्यर्थी अपनी-अपनी समस्या को लेकर कॉल करते। सरकारी नौकरी लगाने का वादा कर गिरोह के सदस्य उन्हें मिलने बुलाते थे। मिलने पहुंचने पर उसके डॉक्यूमेंट को देखकर समस्या दूर करने के लिए कहते थे। जल्द निकलने वाली भर्ती में आवेदन करने के लिए भी कहा जाता था। आवेदन के लिए फर्जी डिग्री, स्पोट्र्स सर्टिफिकेट के बदले में रेट कार्ड बताते थे।
हर काम के अलग अलग-अलग दाम
गिरोह की तरफ से फर्जी डिग्री दिलवाने के एवज में 1.50 से 2 लाख रुपए, स्पोर्ट्स सर्टिफिकेट (नेशनल और स्टेट लेवल) के लिए 50 हजार से 1 लाख रुपए, मेडल दिलवाने के एवज में 20 से 50 हजार रुपए, बैक डेट में एडमिशन के लिए यूनिवर्सिटी फीस के साथ अपना कमीशन ऐड कर बताया जाता था। फर्जी डिग्री से लेकर जॉब तक कुछ नहीं करने वाले अभ्यर्थी से भर्ती पैकेज के हिसाब से लाखों रुपए की मोटी रकम वसूली जाती थी। प्रोफेशनल खिलाड़ियों को खिलवाकर मेडल दिलवाते थे गैंग के सदस्य पैसे लेकर खिलाड़ियों के एडमिशन के साथ-साथ प्रोफेशनल खिलाड़ियों का भी एडमिशन करवाते थे।
स्पोर्ट्स कॉम्पिटिशन जैसे रस्साकशी, वुड बॉल, टारगेट बॉल खेलों में प्रोफेशनल खिलाड़ियों को डमी के रूप में विश्वविद्यालय की ओर से खिलाते थे। इससे वे मेडल जीत जाते थे तो फायदा अभ्यर्थी को मिलता था। यूनिवर्सिटी में एडमिशन और एंट्री के नाम पर पैसे वसूले जाते थे। इसके साथ ही जिस डिग्री की व्यवस्था सुभाष विश्वविद्यालय से नहीं कर पाता तो राकेश उसकी प्रिंटिंग प्रेस में छपवा देता था।