June 28, 2025, 10:04 am
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जवाहर कला केन्द्र में शास्त्रीय विधाओं की प्रस्तुति के साथ 100वें तानसेन समारोह का आगाज

जयपुर। ‘वायलिन की मधुर धुन, तबला वादन और गायन प्रस्तुति में शास्त्रीय राग-रागनियों की गूंज।’ जवाहर कला केन्द्र में शुक्रवार को शास्त्रीय विधाओं की सम्मिलित प्रस्तुतियां हुई। मौका रहा मध्य प्रदेश शासन संस्कृति विभाग और जवाहर कला केन्द्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 100वें तानसेन समारोह का। “तानसेन शताब्दी समारोह” के अंतर्गत राष्ट्रीय “आगाज” श्रृंखला की शुरुआत जयपुर से हुई। विभिन्न शहरों में भी समारोह का आयोजन किया जाएगा।

रंगायन में दोपहर को तानसेन केंद्रित संगोष्ठी में विशेषज्ञों ने विचार रखा। चर्चा में वरिष्ठ ध्रुवपद गायिका प्रो. डॉ. मधु भट्ट तैलंग, वरिष्ठ कला समीक्षक और संस्कृतिकर्मी डॉ. राजेश कुमार व्यास और प्रख्यात सुरबहार वादक डॉ. अश्विन दलवी ने हिस्सा लिया। विशेषज्ञों ने संगीत सम्राट तानसेन की जीवनी, शास्त्रीय संगीत में उनके अद्वितीय योगदान पर प्रकाश डाला। डॉ. मधु भट्ट तैलंग ने बताया कि ध्रुवपद गायिकी तानसेन की देन हैं, तानसेन महान कलाकार थे जिनकी महत्ता को सभी धर्मों और हर काल में स्वीकार किया गया।

उन्होंने यह भी बताया कि शास्त्रीय गायन में विभिन्न वाणियां के जनक भी तानसेन ही रहे। डॉ. राजेश कुमार व्यास ने कहा कि आधुनिक भारतीय संगीत की कल्पना तानसेन की बिना नहीं की जा सकती, उन्होंने ध्रुवपद को परिष्कृत कर जन जन तक पहुंचाया। डॉ. अश्विन दलवी ने एक किस्से का जिक्र करते हुए बताया कि जब अकबर ने तानसेन से पूछ कि आपसे श्रेष्ठ कौन है तो उन्होंने अपने गुरु हरिदास के बारे में बताया। यह बात न केवल गुरु शिष्य परंपरा का महत्व बताती है बल्कि कलाकार का व्यवहार किस तरह सरल और सहज होना चाहिए इस बात पर जोर देती है।

शाम को शास्त्रीय संगीत की महफिल सजी जिसमें वायलिन वादन, तबला वादन और शास्त्रीय गायन की प्रस्तुति हुई। पं. प्रवीण शेविलकर एवं चेताली शेविलकर ने वायलिन वादन किया। राग यमन के साथ उन्होंने प्रस्तुति की शुरुआत की और विभिन्न राग प्रस्तुत की। रामेन्द्र सिंह सोलंकी ने तबले पर संगत की। इसके बाद प्रो. प्रवीण उद्धव व श्रुतिशील उद्धव ने अपना परंपरागत स्वतंत्र तबला वादन सर्वलोक प्रिय ताल ’तीन ताल’ में प्रस्तुत किया। जिसमें विलंबित लय में आलापचारी सरदृश्य पेशकार दिल्ली, फर्रुखाबाद और पंजाब की खुशबू के साथ मुक्त रूप से विस्तारित करते हुए अजराड़ा, बनारस और लखनऊ घरानों के विशिष्ट कायदों, बांट , गत कायदे आदि के साथ कायदे के विविध प्रकार प्रस्तुत किये। प्रो प्रवीण उद्धव व श्रुतिशील उद्धव जी ने अपने स्वतंत्र वादन के प्रस्तुतीकरण की एक अलग शैली विकसित की है।

आपके वादन में मंद्र और तार दो सप्तक के तबले की नादात्मकता का आनंद श्रोताओं को प्राप्त हुआ। अपने परंपरा गत वादन पद्धति के साथ-साथ आधुनिक वादन भी प्रस्तुत किया। इनके वादन में नाद विविधता, भाषा सौंदर्य, साहित्य, काव्यात्मकता, जाति,छंद आधारित अनेक रचनाओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया तत्पश्चात मध्य लय में पंजाब घरानें और बनारस की छंदाधारित गत,लमछड़ चक्रदार बंदिशे, अलग-अलग जातियों के रेलें आदि प्रस्तुत किया। संपूर्ण तबला वादन में सभी घराने के बंदिशों के साथ-साथ घराने के मूर्धन्य विद्वान पंडित किशन महाराज, उस्ताद अल्ला रखा खां साहब, पंडित सुरेश तलवलकर, उस्ताद जमाल खां,उस्ताद अफाक हुसैन खान साहब ,पंडित अनोखेलाल जी ,पंडित सामता प्रसाद जी आदि अनेक विद्वानों की रचनाओं को प्रस्तुत कर उनके चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित किया। पं. धर्मनाथ मिश्र ने हारमोनियम पर संगत की। मुंबई की सुप्रसिद्ध गायिका गौरी पठारे ने शास्त्रीय गायन की प्रस्तुति दी। उन्होंने शास्त्रीय रागों की विभिन्न बंदिशे गाकर श्रोताओं को मंत्र मुग्ध किया। सुप्रिया जोशी ने तबले पर संगत की।

गौरतलब है कि संगीत नगरी ग्वालियर में संगीत सम्राट तानसेन की समाधि स्थल पर प्रतिवर्ष आयोजित किया जाने वाला विश्व प्रसिद्ध “तानसेन संगीत समारोह” का यह 100वां वर्ष है। तानसेन समारोह के 100 वर्षों की यात्रा को अनुभव करने के साथ ही विविध कला-संस्कृति-साहित्य के रंगों को देखने का अवसर भी संगीत प्रेमियों को प्राप्त होगा। इसके तहत ग्वालियर के अलावा प्रदेश व देश के महत्वपूर्ण शहरों में तानसेन शताब्दी समारोह के विविध आयोजन होंगे। राष्ट्रीय आगाज श्रृंखला का आयोजन जयपुर के अलावा 24 नवम्बर, 2024 को फैकल्टी ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स, महाराजा सयाजी राव विश्वविद्यालय, वडोदरा (गुजरात), 26 नवम्बर, 2024 को इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ (छत्तीसगढ़) और राष्ट्रीय आगाज श्रृंखला का अंतिम आयोजन महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में होगा।

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