जयपुर। कांति चंद्र रोड, बनी पार्क स्थित कथा पंडाल शिव भक्ति की दिव्यता से सराबोर रहा, जहां शिव महापुराण कथा समिति के तत्वावधान में आयोजित दिव्य शिव महापुराण कथा के चौथे दिवस का आयोजन श्रद्धा और उत्साह के साथ संपन्न हुआ। व्यासपीठ से संतोष सागर महाराज ने सत्ती चरित्र, पार्वती जन्म और शिव-पार्वती विवाह प्रसंग का भावपूर्ण और रोचक वर्णन किया।
महाराज ने कहा कि आत्मा का परमात्मा से मिलन ही शिव में लीन होना है। उन्होंने शिव को वैराग्य, योग और भक्ति का प्रतीक बताते हुए कहा कि गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी शिव की तरह साधना, समर्पण और धर्म का पालन संभव है। कथा के दौरान विवाह प्रसंग को विस्तार से वर्णित करते हुए उन्होंने बताया कि किस प्रकार माता पार्वती ने शिव को प्राप्त करने के लिए तपस्या की, शिव की तंद्रा भंग हुई और तारकासुर वध के उद्देश्य से यह दिव्य विवाह संपन्न हुआ। मंगल गीतों और भजनों ने वातावरण को भक्तिमय कर दिया।
शिव परिवार की विविधताओं का उदाहरण देते हुए संतोष सागर महाराज ने कहा – नंदी, शेर, मूषक, मोर सभी यह सिखाते हैं कि जीवन में विविधताओं के साथ सहिष्णुता और समरसता कैसे संभव है। उन्होंने मछुआरे और मछली के दृष्टांत से यह भी समझाया कि जो भगवान से दूर होता है, वह माया में फंसता है, और जो ईश्वर से जुड़ा रहता है, वही सच्चा सुखी होता है।
यह शरीर नश्वर है, केवल शिव ही सत्य हैं महाभारत के यक्ष-युधिष्ठिर संवाद का उल्लेख करते हुए उन्होंने मृत्यु की अनिवार्यता को रेखांकित किया और कहा कि सत्संग से बुद्धि निर्मल होती है, भक्ति एकनिष्ठ होनी चाहिए, कामना के आधार पर ईश्वर नहीं बदलने चाहिए।
श्री शिव महापुराण कथा समिति के महामंत्री अरुण खटोड़ ने बताया कि 30 जून को गंगा अवतरण, समुद्र मंथन, अर्धनारीश्वर कथा, 1 जुलाई को कार्तिकेय जन्म, गणपति जन्म उत्सव, 2 जुलाई को दुर्वासा, हनुमान, भैरव अवतार, जलंधर वध, तुलसी विवाह, 3 जुलाई को द्वादश ज्योतिर्लिंग प्राकट्य कथा, 4 जुलाई को शिव भक्त चरित्र, महामृत्युंजय एवं पंचाक्षर मंत्र महिमा, शिव साधना प्रसंग की कथा आयोजित कीि जाएगी।