मांगणियार गायन में सावन और विरह का गान, विभिन्न राज्यों के लोक नृत्यों से सजा मंच

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The song of Sawan and separation in Manganiyar singing
The song of Sawan and separation in Manganiyar singing

जयपुर। जवाहर कला केंद्र में जारी 28वां लोकरंग महोत्सव धीरे-धीरे परवान चढ़ रहा है। कला प्रेमी प्रतिदिन नई लोक विधाओं से रूबरू हो रहे है, लोक संस्कृति का ये रंग उन्हें खूब रास आ रहा है। शुक्रवार को करवा चौथ के विशेष अवसर पर भी बड़ी संख्या में दर्शक कलाकारों के हुनर की झलक देखने को पहुंचे। शिल्पग्राम में महिलाएं खरीददारी करती नजर आई। मध्यवर्ती और शिल्पग्राम का मंच लोक कलाकारों की प्रस्तुतियों से जीवंत हो उठा। 17 अक्टूबर लोकरंग यूं ही लोक संस्कृति की महक फैलाता रहेगा।

मध्यवर्ती में राजस्थानी मांगणियार गायकों के सधे स्वरों के साथ महफिल की शुरुआत हुई। उस्ताद शाकर सद्दीक खां मांगणियार व समूह के कलाकारों ने ढोलक, करताल, भपंग, सिंधी सारंगी, मटके और हारमोनियम की धुन के साथ अपनी आवाज का जादू दिखाया। ‘झिरमिर बरसे मेह’ में वर्षा ऋतु के सौंदर्य का बखान किया गया वहीं ‘हिचकी’ गीत में विरक वेदना में तड़प रही नायिका की भवनाएं झलकी।

इसके बाद हिमाचल प्रदेश से आए कलाकारों ने ‘रिहालटी-गी’ नृत्य में पहाड़ी संस्कृति का सुंदर परिचय कराया। सिरमौर जिले के लोग मेलों, धार्मिक उत्सवों और त्यौहारों में यह नृत्य करते हैं। उत्तर प्रदेश के कलाकारों ने ‘ढेड़िया’ नृत्य प्रस्तुत किया, जिसमें ग्रामीण जीवन के उल्लास और परंपरा की झलक देखने को मिली। राजस्थान के पारसमल समूह के कलाकारों द्वारा ‘आंगी गैर’ की प्रस्तुति ने सभी को उत्साह से भर दिया।

हरियाणा से आए कलाकारों ने ‘फाग’ लोक नृत्य प्रस्तुत किया, जो फाल्गुन महीने और होली के उत्सव का प्रतीक है। ढोलक, मंजीरा और नगाड़े की थाप पर गीत गाते और नाचते हुए पुरुषों और महिलाओं ने गांव की खुशियों का दृश्य मंच पर जीवंत किया। इस नृत्य में हास्य, प्रेम और श्रृंगार के रंग झलकते हैं, जो हरियाणा की लोक आत्मा का परिचायक हैं। राजस्थान के मावा राम समूह ने ‘गरासिया’ जनजातीय नृत्य की प्रस्तुति दी, जिसमें पारंपरिक जीवनशैली, रीति-रिवाज और सामाजिक मान्यताओं की छवि दिखी। इसके बाद मध्यप्रदेश से आए गोंड जनजातीय कलाकारों ने ‘रीना-सैला’ लोकनृत्य प्रस्तुत किया। पुरुषों ने हाथों में लकड़ी की लाठियाँ और महिलाओं ने रुमाल लेकर सामूहिक उत्साह के साथ नृत्य कर परंपरागत संस्कृति को जीवंत किया।

राजस्थान के नारायण डामोर व समूह के कलाकारों ने ‘डांगड़ी डोला’ नृत्य की मनभावन प्रस्तुति दी, जिसके ऊर्जा-भरे कदमों ने मंच पर रंग भर दिए। ओडिशा से आए कलाकारों ने ‘डाल खाई’ नृत्य प्रस्तुत कर अपने राज्य की सांस्कृतिक विविधता और ग्रामीण उत्सवों की झलक दिखाई। अंत में पंजाब के कलाकारों ने ‘जिंदवा’ नृत्य की प्रस्तुति दी, जिसकी तेज लय और उत्सवधर्मिता ने दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया। कार्यक्रम के दौरान केंद्र परिसर लोक धुनों, तालों और रंगों से गूंजता रहा। दर्शकों ने सभी प्रस्तुतियों का भरपूर आनंद लिया और तालियों की गड़गड़ाहट से कलाकारों का उत्साह बढ़ाया।

हस्तशिल्प मेले में दिखी त्योहारी रंगत

जवाहर कला केंद्र के शिल्पग्राम में जारी राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले में त्योहारी सीजन की रौनक देखने को मिल रही है। यहां 150 से अधिक स्टॉल्स पर विभिन्न राज्यों से आए दस्तकारों ने अपने उत्पादों की प्रदर्शनी लगायी है जो आगंतुकों को काफी पसंद आ रही है। यहां डूंगरपुर हट के मुख्य मंच पर रोज़ाना लोक कलाओं की अनूठी झांकी भी देखने को मिल रही है। यहां मंच पर चकरी नृत्य, राजस्थान का कालबेलिया, भवाई, असम का बिहू, जम्मू कश्मीर का बच्च नगमा, उत्तराखंड के घसियारी जैसे लोक नृत्य प्रस्तुत किए गए।

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