जयपुर। ‘मैं रहूँ या न रहूँ, मेरा पता रह जाएगा, शाख़ पर यदि एक भी पत्ता हरा रह जाएगा, बो रहा हूँ बीज कुछ संवेदनाओं के यहाँ, ख़ुश्बुओं का इक अनोखा सिलसिला रह जाएगा’ राजगोपाल सिंह की इन्हीं पंक्तियों के साथ जवाहर कला केन्द्र की अतिरिक्त महानिदेशक प्रियंका जोधावत ने आवाज के मसीहा मो. रफ़ी को श्रद्धांजलि दी। इसी के साथ सावन शृंगार उत्सव के दूसरे दिन गुरुवार को ऑडियो विजुअल प्रेजेंटेशन का आगाज हुआ। जिसमें वृत्त चित्र निर्देशक, लेखक एवं फिल्मकार दीपक महान ने मो. रफ़ी के सुनहरे और सुरीले सफर से सभी को रूबरू करवाया। यह प्रेजेंटेशन रफ़ी साहब के गीतों और अनछुएं किस्सों से सजा ऐसा गुलदस्ता रही जिसकी महक कला प्रेमियों के दिलों में घर कर गयी।
सुश्री प्रियंका जोधावत ने कहा कि 31 जुलाई 1980 को रफ़ी साहब ने दुनिया को विदा कहा तो आसमान से अश्रुओं की धारा बह उठी और बरसते बादलों के साथ हजारों लोगों ने अंतिम यात्रा में हिस्सा लिया। सावन शृंगार में बारिश के बीच कला प्रेमी प्रेमचंद और मो. रफ़ी की याद में मनाए जा रहे उत्सव में हिस्सा ले रहे है यही बात लोगों के लिए दिलों में उनके लिए मौजूद प्रेम को दर्शाता है।
134-135 देशों में सुनते है लोग रफ़ी के गीत
दीपक महान ने बताया कि दुनिया के 134-135 देशों में लोग आज भी मो. रफ़ी के गीत सुनते हैं। बीबीसी ने इंटरनेशनल पोल किया तो मो. रफ़ी के 10 भजन दुनिया के सर्वश्रेष्ठ 10 भजन बताए गए। मो. रफ़ी विविध भावों के गीतों में आवाज देकर उनमें जान डाल देते थे। मो. रफ़ी इस तरह से कैसे गीत गा लेते थे यह पता करने के लिए यूरोप में कई शोध चल रहे हैं। इस दौरान श्रोताओं को पुराने दौर के सुपरहिट सॉन्ग्स और उनके पीछे के अनछुए किस्से सुनने को मिले।
‘इलाही तू सुन ले हमारी दुआ’ छोटे नवाब मूवी के पीछे का किस्सा सुनाते हुए दीपक महान ने बताया कि महमूद से रफ़ी ने सीन पूछा और तुतलाते हुए विमंदित किरदार को जचती आवाज में रफ़ी साहब ने यह गीत गाया जो सभी को भाव विभोर कर देता है। 1960 में जब रफ़ी साहब एक गीत के 25 हजार फीस लिया करते थे उस समय बांग्ला फिल्म इंद्राणी के निर्देशक रफ़ी साहब से गीत गाने की इच्छा लेकर उनके आवास पर पहुंचे। रफ़ी साहब 1 रुपए फीस लेकर गीत गाने को राजी हुए।
उन्होंने निर्देशक से गीत पूछा तो उन्होंने गीत न होने की बात कही तब रफ़ी साहब ने शैलेन्द्र को फोन कर गीत लिखने को कहा। इसके बाद बांग्ला फिल्म में हिंदी गीत ‘सभी कुछ लुटाकर हुए हम तुम्हारे’ में रफ़ी साहब ने आवाज दी। नए निर्देशकों के लिए रफ़ी साहब बड़े मददगार रहे, अधिकतर नए निर्देशक उन्हीं से गीत गवाते थे। एक रुपए फीस लेने पर रफ़ी साहब ने बताया था कि वे फ्री में गीत गाएंगे तो उनमें घमंड आ जाएगा जबकि ये कला उन्हें ईश्वर का आशीर्वाद है, 1 रुपया लेने से कॉन्ट्रेक पूरा हो जाता है।
गौरतलब है कि सावन के सौंदर्य से सराबोर करने और मूर्धन्य साहित्यकार प्रेमचंद व सुरों के सरताज मो. रफ़ी की स्मृति में सावन शृंगार उत्सव का आयोजन किया गया है। सावन शृंगार के अंतिम दिन शुक्रवार शाम 6:30 बजे रंगायन में ताल वाद्य कचहरी प्रस्तुति होगी। इसमें मुजफ्फर रहमान और समूह के कलाकार प्रस्तुति देंगे।
वहीं जवाहर कला केंद्र द्वारा मधुरम श्रृंखला के अंतर्गत शनिवार 3 अगस्त को सायं 5:30 बजे से रंगायन ऑडिटोरियम में सांस्कृतिक एवं जागरूकता कार्यक्रम आशाएं -2 का आयोजन किया जाएगा। इसमें प्रख्यात गायक रविंद्र उपाध्याय के साथ ऑटिज्म कलाकारों ,उनके अभिभावक एवं कुछ शौकिया गायक कलाकार अपनी संगीत प्रस्तुतियां देंगे।