June 30, 2025, 4:07 am
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पारंपरिक वस्त्रों में सज-धज कर महिलाओं ने निभाई ‘सिंदूर खेला’ की रस्म

जयपुर। जयपुर के महिला संगठन, शक्ति फाउंडेशन द्वारा शुक्रवार शाम को जयपुर के होटल ग्रैंड उनियारा में पश्चिम बंगाल की पारंपरिक ‘सिंदूर खेला’ की रस्म उत्साह और उमंग के साथ निभाई गई। कार्यक्रम की शुरुआत ‘सिंदूर खेला’ की परंपरा और इसके महत्व के बारे में विस्तार से बताने के साथ हुई। जिसके बाद विधिवत पूजा का आयोजन हुआ। बंगाल की पारंपरिक लाल बॉर्डर वाली सफेद रंग की साड़ी में सजी-धज्जी महिलाओं ने पहले मां दुर्गा को पान के पत्ते से सिंदूर अर्पित किया, फिर एक दूसरे को सिंदूर लगाकर ‘सिंदूर खेला’ की रस्म निभाई। इस आयोजन के लिए मां दुर्गा की इको-फ्रेंडली मूर्ति, पांरपरिक वस्त्र और पूजा के थाल विशेषकर कोलकाता से मंगवाए गए थे।

रस्म के दौरान महिलाओं ने एक-एक कर मां दुर्गा की आरती की और अपने सुहाग की लंबी उम्र और अपने घर में सुख-समृद्धि की कामना की। जिसके बाद महिलाओं ने एक-दूसरे को मिठाई खिलाई और नृत्य किया। इस रस्म में न केवल विवाहित महिलाएं बल्कि अविवाहित महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और आपसी प्रेम व सौहार्द का संदेश दिया। कार्यक्रम में शक्ति फाउंडेशन की फाउंडर सोनाक्षी वशिष्ठ, को-फाउंडर शैलजा शर्मा सहित अन्य सदस्य हीना, अनुपमा अग्रवाल, डॉ. सुप्रिया गुप्ता, निमिषा गुप्ता, रश्मि बहेती, श्रुति लूथरा उपस्थित रहीं।

इस अवसर पर शक्ति फाउंडेशन की संस्थापक, सोनाक्षी वशिष्ठ ने कहा कि पिछले पांच वर्षों की तरह फाउंडेशन द्वारा इस वर्ष भी जयपुर में धूमधाम से ‘सिंदूर खेला’ की रस्म निभाई गई। यह रस्म न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि समाज में महिलाओं की भूमिका और एकता को भी दर्शाता है। इस पर्व ने महिलाओं के सामूहिक रूप से एकत्रित होने और आपस में प्रेम और स्नेह का आदान-प्रदान करने का एक अनूठा अवसर प्रदान किया। कार्यक्रम में कोलकाता, जयपुर, जोधपुर, अजमेर से लकेर राजस्थान के अन्य शहरों से भी फाउंडेशन की सदस्यों ने भाग लिया।

सोनाक्षी ने बताया कि फाउंडेशन की पहल पर हर वर्ष इस समारोह के दौरान एक यंग महिला एंटरप्रिन्योर को मंच प्रदान किया जाएगा। इस वर्ष इसकी शुरुआत करते हुए कार्यक्रम में यंग एंटरप्रिन्योर रिनाज ने अपने स्टार्ट-अप ‘बेज़ेला’ को प्रमोट किया, जो कि एक हैंडक्राफ्टेड सिल्वर ज्वैलरी ब्रांड है।

सिंदूर खेला केवल एक पर्व नहीं, बल्कि यह बंगाल की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है। गौरतलब है कि दुर्गा पूजा के आखिरी दिन बंगाली समुदाय द्वारा सिंदूर खेला की रस्म निभाई जाती है। बंगाली परंपरा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा अपने चार बच्चों के साथ धरती पर आती हैं। जब देवी अपने मायके आती हैं, तो इस अवधि को दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। त्योहार के अंतिम दिन उदासी का माहौल छा जाता है, जब देवी दुर्गा को विदा किया जाता है। ऐसा मानना है कि देवी दुर्गा के आंसू बहे थे, इसलिए सिंदूर अर्पित करने से पहले उनके गालों को पान के पत्तों से पोंछा जाता है। इसके बाद उनकी मांग में और पारंपरिक चूड़ियों पर सिंदूर अर्पित करते हैं। फिर महिलाएं सुखी जीवन और परिवार की खुशहाली के लिए दुर्गा मां के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेती हैं। बाद में सभी महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर मिठाई खिलाती हैं।

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