जयपुर। नर्सिंग कर्मियों के लिये नवजात शिशुओं में श्वास संबंधी देखभाल की ट्रेनिंग महत्वपूर्ण होती है। यह ट्रेनिंग नवजातों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने में मदद करती है और जीवन में श्वास सम्बन्धी बीमारियों से होने वाली समस्याओं के इलाज में प्रवीणता प्रदान करती है। इसी उद्देश्य से शहर के रुक्मणी बिरला हॉस्पिटल में एक वर्कशॉप आयोजित की गई जिसमें नर्सिंग स्टाफ को नॉन इनवेजिव रेस्पीरेटरी सपोर्ट के बारे में ट्रेनिंग दी गई। इस वर्कशॉप में शहर के 8 सरकारी एवं गैर सरकारी अस्पताल के नर्सिंग कर्मियों ने हिस्सा लिया |
श्वास सम्बन्धी समस्याएं प्रीमेचयोर शिशुओं में ज्यादा पाई जाती हैं | उनके फेफड़े पूर्णतया विकसित नहीं होते है जिनके कारण वो प्रभावी तरीके से सांस नहीं ले पाते हैं | बबल सीपेप एवं एचएचएफएनसी विधियां बच्चे को साँस लेने में सहायता करती है और उनके लिये प्राणदायक होती है | इन विधियों के कारण श्वास समस्याओ से ग्रसित ज्यादातर शिशुओं को इनवेजिव वैंटिलेशन जो कि एक ज्यादा साइड इफ़ेक्ट वाली जटिल विधि है ,की जरूरत नहीं पड़ती |
हॉस्पिटल के सीनियर पीडियाट्रिशन एवं नीओनेटोलॉजिस्ट डॉ. जेपी दाधीच ने बताया कि इस दौरान प्रतिभागियों को एचएचएफएनसी मशीन और बबल सीपेप मशीन पर हैंड्स ऑन ट्रेनिंग भी दी गई। वर्कशॉप में रुक्मणी बिरला हॉस्पिटल की वरिष्ठ पीडियाट्रिशन डॉ. ललिता कनोजिया ने भी नवजात शिशुओं में होने वाली श्वास संबंधी समस्याओं के बारे में जानकारी दी।
हॉस्पिटल की मेडिकल सुप्रीटेंडेंट डॉ. सुहासिनी जैन ने बताया कि कार्यशाला में नर्सिंग स्टाफ को नवजात देखभाल की ट्रेनिंग में नवजातों के सांस लेने की प्रक्रिया, सांस संबंधी समस्याओं की पहचान, और उनके लिए आवश्यक उपकरणों का उपयोग सिखाया गया। यह ट्रेनिंग उन्हें नवजातों के श्वास की गति का मूल्यांकन करने में भी सहायक होती है। इस दौरान हॉस्पिटल के यूनिट हेड अनुभव सुखवानी ने कहा कि इस ट्रेनिंग का उद्देश्य नर्सिंग स्टाफ को नवजातों के स्वास्थ्य की निगरानी करने और समस्याओं को पहचानने के लिए अनुभव देना था जो कि उन्हें दैनिक कार्य में ज्यादा निपुण बनायेगा |