May 14, 2025, 11:53 pm
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वर्ल्ड युनिवर्सिटी ऑफ डिजाइन के अन्वेषण 2025 ने वैश्विक मंच पर भारतीय ज्ञान व्यवस्था को प्रदर्शित किया

नई दिल्ली। वर्ल्ड युनिवर्सिटी ऑफ डिजाइन के स्कूल ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स ने नई दिल्ली के प्रतिष्ठित त्रिवेणी कला संगम में अपने वार्षिक इंटरनेशनल परफॉर्मिंग आर्ट्स कॉन्फ्रेंस अन्वेषण 2025 का उद्घाटन किया। भारतीय कला और अकादमिक क्षेत्र में एक ऐतिहासिक पहल इस सम्मेलन में जबरदस्त उत्साह दिखा जहां देशभर से प्रख्यात विद्वान, कलाकार, शिक्षक और विद्यार्थी शामिल हुए।

इस वर्ष का अन्वेषण “इंडियन नॉलेज सिस्टम एंड परफॉर्मिंग आर्ट्स इन ए ग्लोबल कांटेक्स्ट” की थीम पर केंद्रित है जहां यह संभावना तलाशी जा रही है कि कैसे पारंपरिक भारतीय कलात्मक रूपरेखा, वैश्विक दृष्टिकोण के साथ सार्थक हो सकती है। इस थीम ने सांस्कृतिक विरासत, कलात्मक नवप्रवर्तन और अकादमिक जिज्ञासा को लेकर भावी संवाद का आधार तैयार किया है।

उद्घाटन सत्र की शुरुआत, वर्ल्ड युनिवर्सिटी ऑफ डिजाइन के कुलपति डाक्टर संजय गुप्ता के स्वागत भाषण के साथ हुई जिसके बाद डाक्टर सचिदानंद जोशी (सदस्य सचिव, कार्यकारी एवं अकादमिक, आईजीएनसीए), नई दिल्ली और श्री प्रभात सिंह (रंगमंच एवं पारंपरिक कलाओं के विशेषज्ञ व प्रख्यात पत्रकार) ने प्रमुख भाषण दिया। इनके संबोधन में भारतीय ज्ञान प्रणालियों की कालातीत प्रासंगिकता पर जोर दिया गया और पारंपरिक प्रस्तुति रूपरेखा के भीतर समकालीन नवप्रवर्तन को एकीकृत करने की तत्काल जरूरत बताई गई।

इस सम्मेलन के महत्व को रेखांकित करते हुए वर्ल्ड युनिवर्सिटी ऑफ डिजाइन के कुलपति डाक्टर संजय गुप्ता ने कहा, “अन्वेषण महज कला का उत्सव नहीं है, बल्कि संस्कृति, संवाद और नवप्रवर्तन के जरिए शिक्षा की नए सिरे से कल्पना करने की एक प्रतिबद्धता है। हमारा प्रयास इन कलाओं को ज्ञान और पहचान के लिहाज से राष्ट्रीय विमर्श के केंद्र में लाना है।”

इस सम्मेलन की संयोजक डाक्टर पारुल पुरोहित वत्स, डीन स्कूल ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स ,वर्ल्ड युनिवर्सिटी ऑफ डिजाइन ने कहा, “इस सम्मेलन ने आदान प्रदान और परिवर्तन के लिए एक उर्वरक भूमि तैयार करते हुए विभिन्न कलात्मक आवाजों को एक मंच प्रदान किया है। अन्वेषण परंपरा और भविष्य, अनुसंधान और प्रस्तुति एवं स्थानीय और वैश्विक के बीच अंतर को पाटने के लिए हमारे विजन की एक झलक है।”

इस आयोजन में अन्वेषण 2025 कार्यवाही का औपचारिक विमोचन भी किया गया जिसमें देशभर से विद्वानों ने अपने लेखों के माध्यम से योगदान किया है और इस प्रकाशन ने इस सम्मेलन के लिए अकादमिक स्वर तय किया है।

इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के तौर पर ओड़िसी नृत्यांगना शैरोन लोवेन, कथक विशेषज्ञ पंडित राजेंद्र गंगानी और ध्रुपद संगीतकार उस्ताद एफ. वसीफुद्दीन डागर की उपस्थित ने इस आयोजन का महत्व बढ़ा दिया और परंपरागत कलाओं को आज की उभरती व्यवस्थाओं के साथ जोड़ने के विचार का समर्थन किया।

इस दो दिवसीय आयोजन के दौरान, कई शोध पत्र प्रस्तुत किए गए जिनमें पारंपरिक भारतीय नृत्य में कला अनुष्ठान प्रथाएं, शिक्षण में भावनात्मक बुद्धिमत्ता, क्लासिकल-ट्राइबल इंटरफेस के तौर पर छाऊ, मंदिर प्रदर्शन स्थान की ध्वनिक डिजाइन से लेकर भरतनाट्यम में लिंग की बदलती गतिशीलता तक के विषय शामिल थे। वहीं, कार्यशालाओं ने व्यवहारिक आयाम प्रस्तुत किए जिसमें निखिल बोरा का सुधा तांडव का पुनर्गठन, श्रमाना बनर्जी का मूवमेंट लैब रसत्मा और त्रिपुरा कश्यप द्वारा डांस मूवमेंट थैरेपी पर एक सहभागी मुख्य भाषण शामिल रहा।

भारतीय प्रदर्शन कलाओं की ऊर्जा और रचनात्मकता वाली प्रस्तुतियों से हर शाम जीवंत हो उठी। इनमें शिमरन जमान द्वारा नवारकाना, सुब्बुलक्ष्मी द्वारा नृत्य संप्रणाम और त्रिभुवन और रजनी महाराज की टीम द्वारा कथकनाट्यम प्रमुख रूप से शामिल रहे। काली, ट्रांसकल्चरल अफेक्शंस, आई एम दि ओनली मैन और पिया तोरी बतिया जैसी प्रयोगात्मक प्रस्तुतियों ने साहसिक, काव्य अभिव्यक्ति की पेशकश की। गुरु मालती श्याम की मंडली द्वारा खयाल के साथ इस सम्मेलन का समापन हुआ। यह भारत की जीवंत नृत्य परंपराओं को एक श्रद्धांजलि थी।

अन्वेषण 2025 के साथ वर्ल्ड युनिवर्सिटी ऑफ डिजाइन ने विभिन्न पीढ़ियों और विषयों में विचारों और रचनात्मकता साझा करने के लिए एक सार्थक मंच का निर्माण किया है। यह एक ऐसा स्थान रहा जहां परफॉर्मिंग आर्ट्स के एक उज्ज्वल और समावेशी भविष्य को आकार देने के लिए ज्ञान, कला और सांस्कृतिक विरासत एक साथ आए।

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