जयपुर। देश में आज महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है। पुरे देश में महिलाओं को आरक्षण देने के कार्य पर फोकस किया जा रहा है। ऐसे में जगतपुरा के हरे कृष्ण मार्ग पर स्थित श्रीकृष्ण बलराम मंदिर में रविवार को अनूठी पहल की गयी। मंदिर में हरे कृष्ण महामंत्र एवं वैदिक रीति से संपन्न हुए दीक्षा कार्यक्रम में 42 लोगों ने दीक्षा ली। मंदिर को विशेष फूलों से सजाया गया था। दीक्षा लेने वालो में 25 महिलाएं एवं 17 पुरुष शामिल थे। इस अवसर पर दीक्षा लेने वालों को नया आध्यात्मिक नाम देकर नया नामकरण किया गया। दीक्षा कार्यक्रम में सभी दीक्षार्थी पुरुष सफेद धोती चद्दर पहनकर आये।
दीक्षा कार्यक्रम की शुरुआत मंदिर के अध्यक्ष अमितासन दास एवं उपाध्यक्ष राधाप्रिय दास एवं अन्य कृष्ण भक्तों ने करवाई।विश्वव्यापी हरे कृष्ण मूवमेंट की संस्थापक एवं प्रेरणा स्रोत श्रील प्रभुपाद के द्वारा 9 जुलाई 1977 को लिखित पत्र के अनुसार ऋत्विक पद्धति के अंतर्गत दीक्षा समारोह आयोजित किया गया जहां दीक्षा लेने वालो भक्तों ने श्रील प्रभुपाद दीक्षा गुरु के रूप में स्वीकार किया।
इस अवसर पर वैदिक मंत्र एवं हरे कृष्ण महामंत्र के उच्चारण के बीच श्रीकृष्ण एवं राधा रानी की आराधना, वैष्णव आचार्यों, चैतन्य महाप्रभु और श्रील प्रभुपाद की आराधना एवं स्तुति की गई | सबको भक्ति वेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद की शिक्षाओं एवं चार नियामक सिद्धांतों को पालन करने की शपथ दिलाई गई। दीक्षा के दौरान सबके नए आध्यात्मिक नाम घोषित किए गए।
प्रभुपाद की शिक्षाओं को अपनाये – अमितासन दास
दीक्षा कार्यक्रम के दौरान मंदिर अध्यक्ष अमितासन दास ने कहा कि दीक्षा प्राप्त करना इसलिए जरूरी है ताकि वह शुद्ध भक्त बन सके। उन्होंने कहा कि दीक्षा प्राप्त करने के बाद जन्म जन्मांतर से जीवन के जन्म मृत्यु में फसे लोगों को मुक्ति का मार्ग मिल सकता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जिस तरह शादी के बाद पति पत्नी एक दूसरे के लिए जीवन जीते हैं। उसी तरह दीक्षा के बाद भक्त भगवान श्री कृष्ण की सेवा में हमेशा रहते है। उन्होंने दीक्षा के बाद जो नियम अपनाकर भक्ति मार्ग पर किस प्रकार आगे बढ़ना है उसके बारे में निर्देश दिये।